नशा तो नजरों में है यारों,
वो ज़ाम को बदनाम करते हैं,
पता नहीं, क्या हो गया उन्हें ?
जो मैखनों में नाम करते हैं ||1||
वो ज़ाम को बदनाम करते हैं,
पता नहीं, क्या हो गया उन्हें ?
जो मैखनों में नाम करते हैं ||1||
नज़र तो कातिलाना है,
नशा तो उसमें है यारों,
तो पी दो घूँट कैसे वो ?
खुद सरेआम होते हैं ||2||
नशा तो उसमें है यारों,
तो पी दो घूँट कैसे वो ?
खुद सरेआम होते हैं ||2||
लगाते ज़ाम पे वो ज़ाम,
सुबह से शाम करते हैं,
वो तो बदनाम हो के भी,
वफ़ा का काम कहते हैं ||3||
सुबह से शाम करते हैं,
वो तो बदनाम हो के भी,
वफ़ा का काम कहते हैं ||3||
लड़खराते हैं कदम से वो ,
फ़िर मंजिल ढूँढते हैं वो,
बेगैरत वो जो मदिरालय को ,
मंदिर नाम देते हैं ||4||
फ़िर मंजिल ढूँढते हैं वो,
बेगैरत वो जो मदिरालय को ,
मंदिर नाम देते हैं ||4||
एक दिन मैनें भी सोचा !
कि मै भी ज़ाम को परखूँ ,,,
दुस्साहस उनकी थी कि ,
वो मेरे दोस्त बन बैठे ||5||
कि मै भी ज़ाम को परखूँ ,,,
दुस्साहस उनकी थी कि ,
वो मेरे दोस्त बन बैठे ||5||
••••• Manish Jha
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