(२) श्री मल्लिकार्जुन :-
आंध्रप्रदेश मे कृष्णा नदीक तटपर श्री शैलपर्वत स्थित ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि ।
भगवान शिवक दुनू पुत्र श्री गणेश आओर श्री कार्तिकेय मे सँ किनक विवाह सर्वप्रथम करायल जाय, एहि तरहक समस्याक समाधान हेतु शिवजी दुनू बालक कें पृथ्वीक परिक्रमाक आदेश दए कहलथिन्ह जे पहिने परिक्रमा कय आबि जायब तिनक विवाह सर्वप्रथम कराओल जाएत । श्री कार्तिकेय एहि बात कें सुनिते मयूर पर सवार भय पृथ्वीक परिक्रमा के लेल विदा भऽ गेलाह । श्री गणेश जी सोचय लगलाह जे हुनका मयूर सवारी छनि आ यथा शीघ्र परिक्रमा कय लेताह परन्तु हमरा मूसक सवारी अछि हमरा सँ पृथ्वी परिक्रमा असंभव अछि तथापि बुद्धि विवेकक सहारा लय अपन माता पिताक शरीर मे अखण्ड ब्रह्माण्ड कें समाहित देखि ओ हुनकहि प्रदक्षिणा कऽ हाथ जोड़ि माता पिताक सन्मुख ठाढ़ भय गेलाह । माता-पिता हुनक बुद्धि विवेक देखि हुनक वियाह सिद्धि आओर बुद्धि के साथ करबा देलनि । ओहि मे क्षेम तथा लाभ नामक दु पुत्र भेलनि । जखन कार्तिकेय पृथ्वीक परिक्रमा कऽ भगवान शंकर तथा पार्वतीक पास अयलाह तावत धरि श्री गणेश जीक विवाह भऽ गेल रहनि तथा दू पुत्रक प्राप्ति सेहो भऽ गेल छलनि ।
ई सभ बात देखि कार्तिकेय क्रोधित भय क्रौंच नामक पर्वत पर चलि गेलाह । माता पार्वती रुष्ट पुत्र के वापस लाबय लेल ओहि स्थान पर पहुँचलथि । पाछाँ सँ भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भऽ गेलाह, ताहि दिन सँ मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम सँ प्रख्यात भेलाह । एहि लिंगक पूजा अर्चना सर्वप्रथम मल्लिका पुष्प सँ कएल गेल छल ताहि हेतु मल्लिकार्जुन नाम सँ प्रसिद्ध छथि ।
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