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शनिवार, 9 जून 2012

गोनूझाक कबुला

गोनू रहथि विद्वान लोक । ओ कखनो अंधविश्वास आ कि देवता-पितरक कबुला-पाती मे विश्वास नहि राखथि आ तें जन-सामान्य जकाँ देवता-पितर कें कोनो वस्तु आ कि नीक उपजा-बाड़ीक लेल कबुला-पाती नहि करथि । गाम मे लोक कहनि जे अहाँ के देवता-पितर पर विश्वासे नहि अछि । परन्तु हुनक कहब रहनि जे समय पर वारिश हौक आ समयानुसार धान आदि रोपल जाय, तँ नीक धान हेबे करतैक आ ताहि लेल कबुला-पातीक की प्रयोजन? तथापि एकबेर सभ कियो हुनक पाँछा पड़ि गेल जे अहूँ कबुला करियौ जे अहाँ के एतेक ने एतेक धान होयत तँ अहाँ देवता कें किछु ने किछु चढ़ेबनि । गोनू हारि कें गौंआ सभक समक्ष कबुआ केलनि जे हे देवता जँ हमरा नीक उपजा-बाड़ी होयत तँ हम अहाँ के ‘किछ" चढ़ा देब । संयोग सँ एहि बेर नीक वरषा भेलैक आ गोनू कें नीक जकाँ धान भेलनि । आब गौंआ सभ हुनका पाछाँ पड़ि गेल जे अहाँ कबुला पूरा करियौक ।
आब गोनू के फुरेबे ने करनि जे की कयल जाय । कोन वस्तु देवता के चढ़ाओल जाय । चूँकि ओ वस्तुक नाम नियत नहि केने रहथि तें हुनका लोक तरह-तरह के सलाह दैन । कियो कहनि जे पाई चढ़ाऊ, कियो कहनि जे छागर छढ़ाऊ तँ कियो किछु आन वस्तु चढ़ेबाक लेल कहनि । गोनू लाख सोचथि ‘किछ’ भेटबे ने करनि जे ओ देवता कें गछने रहथि । एही तारतम्य मे कतेको मास बीति गेल । यद्यपि गोनू निश्चिंत रहथि तथापि गौंआ सभ कहाँ मानय वला छल । ओ सभ सभ जखन-तखन गोनू के कबुला पूरा करबाक लेल टोकि दैन ।
गोनू एक दिन घुमैत-फिरैत दया बाबूक ओहिठाम गेलाह । हुनका देखितहि दया बाबू आव-भगत केलखिन आ जोर सँ बजलाह जे गोनू अयलाह अछि तें बैसैक लेल ‘किछ’ ला । आँगन सँ एकटा बचिया एकटा पिरही लेने आयल । आब गोनू के कबुला पूरा करबाक लेल ‘किछ’ भेट गेलनि । ओ कनिये काल मे उठलाह आ पिरही लैत दया बाबू सँ कहलाह जे हमरा बहुत दिन सँ कबुला पूरा करबाक लेल ‘किछ’क तलाश छल, से हमरा भेटि गेल । कृपा कय कें हमरा ई ‘किछ’(पिड़ही) देल जाय ताकि हम अपन कबुला पूरा कऽ सकी । ओ ठोकले ग्राम देवताक मंदिर गेलाह आ ओ पीढ़ी चढ़ा कऽ कयल गेल कबुला ‘किछ’ कें पूरा केलनि । हुनक एहि कारनामा पर सभ कियो हँसय लागल ।

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
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हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



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