गजल
अप्टन सुन्दरता के बढ़ा रहल छै
पुष्प दूध सं सुनरी नहा रहल छै
कोमल कोमल देह लागैछै दुधिया
आईख सं बिजुरिया गिरा रहल छै
पैढ़लिय इ सुनारी छै खुला किताब
अंग अंग सुन्दरता देखा रहल छै
पातर पातर ठोर लागै छै शराबी
गाल गुलाबी रस टपका रहल छै
घिचल घिचल नाक चमकै छै दाँत
काजर के धार तीर चला रहल छै
अप्टन लगा गोरी सुनरी लागै छै
मोन मोहि पिया के ललचा रहल छै
दुतिया चान सन चकमक करै छै
ताहि ऊपर श्रृंगार सजा रहल छै
सैज धैज सजनी इन्द्रपरी लागै छै
देख सुनरी के चान लजा रहल छै
-------वर्ण-१४-------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट
माछक महत्व
हरि हरि ! जनम किऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पलइ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कबइ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खाएब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म किऎ लेल !
हरि हरि.
कर भला तो हो भला अंत भले का भला
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एकता विकास के जननी छैजय मैथिली, जय मिथिला, जय मिथिलांचल (बिहार)
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