उर्वरभूमि बनाएब हम अपन धरती@प्रभात राय भट्ट
विचित्र सृष्टिक रचैता हे ईस्वर // सभक सुदी रखैयबाला परमेश्वर // २
गरीबक जिनगी की अछि बेकार
किये करैया लोग हमर त्रिष्कार
पैघ मनुख किये दैय धिकार
कुनु ठाम नहीं अछि गरीबक अधिकार //
हे ययौ पालनहार कने सुनु ने हमर पुकार
सभक उद्धार केलौं कने सुनु ने हमरो उपकार
फुलक हार नहीं नैयनक नोर चढ़ाबआएलछि
आईखक दुनु प्यालामे किछ मांगलेल आएलछि//
गगनचूमी कोठा अटारी नहीं चाही
हमर झोपरीमे सुख शांति दिय
कंचन कोमल काया नहीं चाही
बज्रदेह बाहिमें ताकत दिय.........//
विघा दस विघा जमीं नहीं चाही
कठा दस कठा खेत बारी दिय
चटान फोरबाक हिमत दिय
हिमाल सन अटल छाती दिय //
आराम आर विश्राम नहीं चाही
श्रमिकके श्रम करबाक सौभाग्य दिय
कोईर कोईर तोईर तोईर बाँझ पर्ती
उर्वरभूमि बनाएब हम अपन धरती //
खुवा मेवा मिष्ठान नहीं चाही
भोर साँझके दू छाक आहार दिय
सुख शैल विलास नहीं चाही
जीवन चालबलेल कुनु अधार दिय //
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
माछक महत्व
हरि हरि ! जनम किऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पलइ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कबइ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खाएब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म किऎ लेल !
हरि हरि.
कर भला तो हो भला अंत भले का भला
समस्त मिथिलांचल वासी स निवेदन अछि जे , कुनू भी छेत्र मै विकाश के जे मुख्य पहलू छै तकर बारे मै बिस्तार स लिखैत" और ओकर निदान सेहो , कोनो नव जानकारी या सुझाब कोनो भी तरहक गम्भीर समस्या रचना ,कविता गीत-नाद हमरा मेल करू हम
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एकता विकास के जननी छैजय मैथिली, जय मिथिला, जय मिथिलांचल (बिहार)
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