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जालवृत्तक संगी - साथी |

सोमवार, 4 अप्रैल 2011



हे यए जनकपुरवाली भौजी सुनु नए कने,
कहिया स: हम एकटा बात छि मोनमें धयने,
अहाँक बोहीन लगैय दुतियाँक चाँद सन,
कोमल कोमल देह हुनक लगैय मखान सन,
लाल लाल ठोर हुनक लगैय मीठा पान सन,

अहाँक बोहीन भौजी लगैय बड़ा बेजोर,
हुनक रूप देख मोन में हमरा उठल हिलोर,
अन्हार घर में बोहीन अहाँक करिय इजोर,
गगनमे जेना चम् चम् चमकईय चानचकोर,

देख्लौ अहाँक बोहीन के हम जहिया स:
पढाई में मोन लगैय नए हमर तहियाँ स:
मुश्किल स भरहल अछि जिनगीक निर्वाह,
बढ़ाऊ बात आगू करादिया हमर विवाह,

अंग अंगमें सजायेब हुनका हिरा मोती के गहना,
खन खन खन्कौती ओ हाथमें नेपालक कंगना,
अहाँ बोहीनके डोली चढ़ा लायेब अपन अंगना,
ओ बनती हमर सजनी हम बनब हुनक सजना,

 रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

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