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मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

चाँद भी फीका लगता है

चाँद भी फीका लगता है जब,
देखूँ उनकी सूरत ,
पल भर को जी करता है,
बना लूँ दिल में उनकी मूरत ||1||
सपनों में हैरान है करती,
उनकी मधुर-मधुर मुस्कान,
उनके रूप का दर्शन पा के ,
मुर्दा जाग उठे शम्शान ||2||
जब नागिन सी बलखा के ,
वो चलती है राहों में ,
दर्शण उस यौवन का जब हो,
खिलती कलियाँ है बाहों में ||3||
करूँ ध्यान मैं उनका जब-जब ,
दिल पागल हो जाता है ,
प्रेम का सागर छलके तब-तब ,
मन-मदिरा प्याला तोड़ छलकता है ||4||
पता नहीं भगवान नें कैसे ?
उनका रूप बनाया है ,
हिरणी जैसी चंचल है वो ,
सुंदर चपल जिसे बनाया है ||5||
•••••••• Manish Jha


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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

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