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सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

ल'क' रहबै मिथिला राज ।।


मिथिलामे जनमल सब मैथिल मानि रहल सगरो संसार ,
जाति- पाति नञ उँच- नीच नञ सबहक मिथिला एक अधार।
हिन्दू-मुस्लिम सब छथि मैथिल सब मिलि मांगथि अपनराज , 
सुनू हे शासक ! भारतवर्षक ल'क' रहबै मिथिला राज ।। 

ई जुनि बुझू सूतल छी हम जागि रहल मैथिल सन्तान ,
क्रान्ति गीत अधरपर आएल आब पूर्ण क्रान्तिक आह्वान ।
मिथिला- मैथिल- मैथिली मांगि रहल अधिकारक ताज ,
सुनू हे मैथिल !मिथिलावासी ल'क' रहबै मिथिला राज ।|

शान्ति क्रान्तिमें बदलि रहल अछि मांगि रहल धरती बलिदान ,
आगू शास्त्रक दिग्दर्शन अछि पाछू तरकस तानल तीर- कमान ।
नवतुरिया अछि जागि उठल साधि रहल क्रान्तिक आगाज ,
हे मिथिलाके भविष्य युवजन ! ल'क' रहबै मिथिला राज ।|

कोटि- कोटि मैथिलजन विश्वक मांगिरहल अपन अधिकार ,
अपन विकासक आस कगौने कल- कारखाना ओ व्यापार ।
मिथिला प्रान्तक दोग- दोगसँ उठिरहल सबहक आवाज ,
ई जन्मसिद्ध अधिकार हमर अछि ल'क' रहबै मिथिला राज ।|

बात करब मिथिला इतिहासक अपन भूगोलक बात करै छी ,
सभ्यता- संस्कृति- समग्रक हम मिथिला मूलक बात करै छी ।
लक्ष्यपूर्ति धरि लडिते रहबै ठानि चुकल छथि सकल समाज ,
समय चूकि पुनि नञ पछतायब ल'क' रहबै मिथिला राज ।|

ई तपोभूमि थिक ॠषि- महर्षिक भारती भामती जानकीक गाम ,
गौतम- कणादि- कपिल- ज्योतिरिश्वर-श्रृंगी-जनकादिक ई धाम ।
ई परमधाम थिक दीना-भदरिक लोरिक-सलहेस ओ धरमराज ,
ई ओ पावन धरती मिथिला ल' क' रहबै मिथिला राज ।|

मिथिला प्रान्तक नेतागण सब बिसरि रहल छथि मायक ममता ,
कर्तव्यवोधके विसरि रहल छथि देखि रहल छथि मैथिल जनता ।
वर्ग- वर्ण मनभेदके त्यागू चुनि पठौलक सकल समाज ,
संसदमे आवाज ऊठबियौ ल' क' रहबै मिथिला राज ।|

हे मातृभूमि मिथिले ! शत्-शत् नमन प्रणाम करु शक्तिक आधान ,
अन्वेषक आह्वान करै छथि संग्राम भयमकर ओ शस्त्र संधान ।
सोच विचारक समय बीति गेल संकल्पित अछि सकल समाज ,
रणभेरी अछि बाजि चुकल ल' क' रहबै मिथिला राज ।|

अन्वेषक

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

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हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

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