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शनिवार, 19 नवंबर 2011



उर्वरभूमि बनाएब हम अपन धरती@प्रभात राय भट्ट

विचित्र सृष्टिक रचैता हे ईस्वर //
सभक सुदी रखैयबाला परमेश्वर // २

गरीबक जिनगी की अछि बेकार
किये करैया लोग हमर त्रिष्कार
पैघ मनुख किये दैय धिकार
कुनु ठाम नहीं अछि गरीबक अधिकार //

हे ययौ पालनहार कने सुनु ने हमर पुकार
सभक उद्धार  केलौं कने सुनु ने हमरो उपकार
फुलक हार नहीं नैयनक नोर चढ़ाबआएलछि
आईखक दुनु प्यालामे किछ मांगलेल आएलछि//

गगनचूमी कोठा अटारी नहीं चाही
हमर झोपरीमे सुख शांति दिय
कंचन कोमल काया नहीं चाही
बज्रदेह बाहिमें ताकत दिय.........//

विघा दस विघा जमीं नहीं चाही
कठा दस कठा खेत बारी दिय
चटान फोरबाक हिमत दिय
हिमाल सन अटल छाती दिय //

आराम आर विश्राम नहीं चाही
श्रमिकके श्रम करबाक सौभाग्य दिय
कोईर कोईर तोईर तोईर बाँझ पर्ती
उर्वरभूमि बनाएब हम अपन धरती //

खुवा मेवा मिष्ठान नहीं चाही
भोर साँझके दू छाक आहार दिय
सुख शैल विलास नहीं चाही
जीवन चालबलेल कुनु अधार दिय //

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

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