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रविवार, 6 फ़रवरी 2011

मध्यकालीन मैथिली नाटक

एक परिचय

-डॉ. शैलेन्द्र मोहन मिश्र

मैथिली साहित्यक इतिहासकार लोकनि काल विभाजन करैत काल मैथिली साहित्यक इतिहास कें तीन काल खंड मे विभाजित कयलनि अछि - आदिकाल, मध्य काल ओ आधुनिक काल । मध्यकाल कें नाटकक कालक संज्ञा देलनि अछि । मध्यकाल मे मिथिला मध्य संस्कृतक प्रचार-प्रसार अत्यधिक छल तें संस्कृत मे साहित्यिक विधाक रचना होइत छल । मुदा किछु विद्वान लोकनि संस्कृत नाटक मध्य किछु मैथिली गीतक सन्निवेश कऽ भाषा नाटकक रचना कयलनि । मैथिली साहित्य मे सर्वप्रथम कविशेखर ज्योतिरीश्वर ठाकुर भाषा गीतक सन्निवेश ‘धूर्त समागम’ नाटक मे कयलनि । एकर पश्चात्‌ महाकवि विद्यापति ‘गोरक्ष विजय’ मे मैथिली गीतक सन्निवेश कयलनि । मुदा संस्कृतक प्रभाव एकाएक लुप्त नहि भेल । केवल लोकक मनोरंजनक लेल प्राकृत एवं मैथिलीक प्रयोग भेल, तें ‘धूर्तसमागम’ ओ ‘गोरक्ष विजय’ कें संस्कृत-प्राकृत-मैथिली त्रैभाषिक नाटक कहल जाइत अछि । शनै: शनै: संस्कृत-प्राकृतक प्रयोग घटैत गेल ओ शुद्ध मैथिली मे नाटकक रचना होमए लागल ।

मिथिला मध्य संगीत, नृत्य ओ अभिनयक परंपरा प्राचीन कालहि सँ अविच्छिन्न रूपें प्रवाहित अछि । कर्णाट वंशक राजा लोकनिक संगीतप्रियता अनेक मैथिल विद्वान कें संगीत विषयक ग्रंथ लिखबाक प्रेरणा देलकनि । मिथिला मध्य अभिनयक परंपरा छल । ई एहि सँ प्रमाणित होइत अछि जे आसामक शंकरदेव तीर्थयात्राक क्रम मे मिथिला अयलाह तथा एहिठामक अभिनय परंपरा सँ प्रभावित भेलाह । ओ स्वदेश प्रत्यागत भेला पर एकर अनुकरण मे नाटकक रचना कयलनि । नेपाल मध्य पाटन मे कार्तिक नाचक परंपरा मे विकृत मैथिली अभिनयक परंपरा दृष्टिगोचर होइत अछि । एतावता ई निर्विवाद रूप सँ कहल जा सकैत अछि जे मिथिला मे संगीत, नृत्य ओ अभिनयक कला बहूत प्राचीन कालहि सँ छल । डॉ. जयकान्त मिश्रक कथन छनि जे - “एतबा तँ सत्य थिक जे संस्कृत नाटकक परंपरा पर मैथिली नाटकक प्रादुर्भाव भेलैक तें ओकर आदिकाल मे स्वाभाविक जे संस्कृत नाटकक पूर्ण प्रभाव ओहि पर छलैक । भाषा नाटकक प्रादुर्भाव तहिना भेलैक जेना भाषा साहित्यक प्रादुर्भाव भेलैक ।” मैथिली नाटकक उत्पत्ति मे लोकनाचक सहयोग सेहो पर्याप्त मात्रा मे अछि । वस्तुत: संस्कृत नाट्य परंपरा ओ लोकनाट्य परंपरा मैथिली नाट्य साहित्यक स्वरूप निर्धारित करबा मे महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलक ।

एहि अभिनव नाट्य परंपरा मे मैथिली भाषाक प्रमुखता क्रम-क्रम सँ होइत गेल तें एकर नाम मैथिली नाट्य परंपरा सैह भेल । मध्यकालीन मैथिली नाटक कें विकासक कारणें तीन भाग मे विभक्त कयल अछि -

(१) मिथिलाक मैथिली नाटक (कीर्तनियां नाट्)‌

(२) नेपालक मैथिली नाटक, आ

(३) आसामक मैथिली नाटक अथवा अंकिया नाट्‌ । एहि निबंध मे मिथिलाक मैथिली नाटक पर विचार कयल गेल अछि ।

मिथिलाक मैथिली नाटक : मैथिली साहित्यक एहि मध्य युग मे संस्कृत विद्वान लोकनि द्वारा विरचित एक कोटिक मैथिली नाटक अछि जकरा कीर्तनियां नाटक कहल जाइछ । भगवान कृष्ण, शिव आदिक भक्ति सँ उत्प्रेरित हुनक चरित्र सँ सम्बद्ध पौराणिक कथा वस्तुक आधार पर विरचित मैथिली गीतादि प्रधान, संस्कृत प्राकृत मिश्रित नाटक मैथिलीक कीर्तनियां नाटक कहबैत अछि । एहि कोटिक नाटकक रचना संस्कृत नाट्य साहित्यक अनुकरण सँ भेल । ई संस्कृतेक नाटक सँ विकसित ओ पूर्ण प्रभावित अछि । मंच निदेशन संस्कृत मे अछि । एहिठाम हम ओहि समय मे लिखल गेल नाटकक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करैत छी, तत्पश्तात्‌ मैथिलीक विद्वान आलोचक द्वारा एकरा नाच मानल जाय कि नाटक ताहि पर विचार करब । कीर्तनियां नाटकक विकास मे धूर्तसमागम प्रहसन आ गोरक्ष विजय नाटक पहिल कड़ी मानल जाइत अछि, किंतु कीर्तनियां नाटकक श्री गणेश सत्रहम शताब्दी मे लिखल नाटक सभ सँ मानल जाइत अछि ।

(१) नलचरित वा नलोदय नाटक : एहि नाटकक रचना सत्रहम शताब्दी मे गोविन्द मिश्र द्वारा कयल गेल । एहि नाटकक कथानक महाभारत सँ लेल गेल अछि । राजा नल जुआ मे पुष्करक हाथे अपन समस्त संपत्तिक नाश कऽ दैत छथि । एही क्रम मे ओ अपन पत्नी दम्यन्ती कें नैहर जयबाक हेतु कहैत छथि, किन्तु ओ नहि मानैत छथि । एहि नाटक मध्य संस्कृत ओ प्राकृतक प्रचुर प्रयोग भेल अछि । तथापि सरस चमत्कारपूर्ण मैथिली गीतक सन्निवेशक कारणें ई मैथिली नाटक थिक । जें कि एखनहुँ धरि नल कें प्रात: स्मरणीयक रूप मे जानल जाइत अछि तें विद्वान एकरा कीर्तनियां नाटक मानल अछि ।

(२) आनंद विजयाभियान नाटिका : सरस कवि रामदास रचित सत्रहम शताब्दीक एक गोट नाटक ‘आनंद विजयाभिधान’ उपलब्ध होइत अछि । कथोपकथन संस्कृत, प्राकृत ओ मैथिली गीत मिश्रित अछि । चारि अंकक एहि नाटिका मे ३१ "दृश्य" अछि ।

(३) उषाहरण : एहि नाटकक रचनाकाल सत्रहम शताब्दी मे मानल जाइत अछि । एहि नाटकक रचनाकार छ्लाह देवानन्द । छओ अंकक एहि नाटकक कथानक श्रीमद्‌भागवत सँ लेल गेल अछि जाहि मे अनिरुद्ध ओ उषाक प्रेमलीलाक वर्णन अछि । एहू मे संस्कृत-प्राकृतक संग सरस मैथिली गीतक सुन्दर समावेश भेल अछि ।

(४) रूक्मिणीहरण नृत्य : एहि नाटकक रचयिता छथि सत्रहम शताब्दीक प्रसिद्ध विद्वान ब्रह्मदास । इ श्रीमद्‌भागवत पुराणक कथावस्तु पर आधारित मैथिली गीत प्रधान नृत्य नाटिका अछि । एहि मे अंकक योजना नहि अछि एवं नृत्यक प्रधानताक कारणें एकरा रूक्मिणीहरण नृत्य कहल जाइत अछि ।

(५) पारिजातहरण नाटक : मध्यकालीन मैथिली नाट्य परंपरा मे सभ सँ बेसी प्रसिद्ध जे नाटक अछि ओ थिक अठारहम शताब्दी मे उमापति उपाध्याय विरचित ‘पारिजातहरण नाटक’ । एकर कथावस्तु मुख्यत: हरिवंश सँ लेल गेल अछि । नारद द्वारा देल गेल पारिजात पुष्प कृष्ण द्वारा रूक्मिणी कें देला पर सत्यभामा मान करैत छथि तथा सत्यभामाक मानक अपनोदनक हेतु कृष्ण इन्द्रक वाटिका सँ पारिजात वृक्षक हरण कऽ अनैत छथि । एहि मे २१ गोट मैथिली गीत अछि जे नाटक मे केवल संगीतमय वातावरणे टा उपस्थित नहि करैछ, अपितु कथानकक विकासो मे योगदान करैछ । वीर रस मुख्य अछि तथा श्रृंगार रस अंग रूप मे अछि ।

(६) रूक्मिणी परिणय : अठारहम शताब्दी मे रचित एहि नाटकक रचयिता छथि रमापति उपाध्याय । ई संस्कृत, प्राकृत तथा मैथिली गीत मिश्रित नाटक अछि । मैथिली गीतक प्रधानता अछि । संस्कृतक ओ प्राकृतक अंश गौण अछि । नाटकक कथावस्तु पौराणिक अछि । नाटक मे शुद्ध संस्कृत नाटकक टेकनीक अछि ।

(७) गौरी स्वयंवर नाटक : कविलाल द्वारा रचित एहि नाटकक रचनाकाल अठारहम शताब्दीक मध्य भाग मानल गेल अछि, शिव पार्वतीक विवाह सँ संबंधित विषय पर आधारित अछि । एहि मे संस्कृतक ओ प्राकृतक अंश अत्यंत गौण अछि । नाटकक कलेवर मुख्यत: मैथिली गीते पर ठाढ़ अछि । एहि मे नैनायोगिन, कोबर, परिछनि आदि मिथिलाक सांस्कृतिक परंपराक प्रतिपादन कयल गेल अछि । ई विशुद्ध कीर्तनियां पद्धति पर लिखल गेल अछि ।

(८) कृष्णकेलिमाला : नन्दीपति द्वारा रचित एहि नाटकक रचनाकाल अठारहम शताब्दीक अंतिम भाग मानल गेल अछि । संस्कृत-प्राकृत-मैथिली गीत मिश्रित एहि नाटकक कथावस्तु श्रीमद्‌भागवतक श्रीकृष्णलीला सँ संबंधित अछि । ई नाटक अभिनय करबा सँ बेसी पढ़बा ओ गयबाक हेतु अछि । तत्कालीन मैथिल समाज मे प्रचलित अन्धविश्वास आदिक चित्रांकन नीक जकाँ भेल अछि ।

(९) मानचरित नाटक : एहि नाटकक रचनाकाल अठारहम शताब्दीक उत्तरार्द्ध मानल जाइत अछि । एकर रचयिता छलाह गोकुलानन्द । ई सात अंकक नाटक अछि । मैथिली नन्दी गीत मे सरस्वती वन्दना कयल गेल अछि ।

(१०) रूक्मांगद नाटक : एहि नाटकक रचयिता कर्ण जयानंद छथि । एकर रचनाकाल अठारहम शताब्दीक अंतिम भाग मानल जाइत अछि । अर्धनारीश्वर शिवक वन्दना कयल गेल अछि । संस्कृत-प्राकृत संग-संग मैथिली गीतक समावेश एहू मध्य भेल अछि ।

(११) पारिजातहरण :शिवदत्त विरचित पारिजातहरणक कथावस्तु उमापति रचित पारिजातहरण जकाँ अछि । संस्कृत-प्राकृत-मैथिली मिश्रित एहि नाटकक प्रसिद्धि उमापति विरचित पारिजातहरण नाटक सन नहि अछि ।

(१२) गौरी परिणय : एकर रचनाकाल उन्नैसम शताब्दीक पूर्वभाग मानल गेल अछि । एकर रचियता छ्लाह शिवदत्त । एहि मे शिवगौरी विवाहक कथा वर्णित अछि । एहि मे संस्कृत प्राकृत कथोपकथनक पूर्णत: अभाव अछि । दृश्य विधान, रंगमंचीय निर्देश कथोपकथन आदि सभ किछु मैथिली गीते मे अछि ।

(१३) श्रीकृष्ण जन्म रहस्य : उन्नैसम शताब्दीक मध्यभाग मे श्रीकान्त गणक रचित श्रीकृष्ण जन्म रहस्य नाटक संस्कृत नाट्यशैली पर आधारित अछि तथा एहि मे विष्णुपुराण आधारित कृष्णक जन्मक कथा वर्णित अछि । एहि मे कथोपकथन संस्कृत-प्राकृत मे तथा मैथिली मे गीत अछि । एहि मे दू गोट अंकक योजना भेल अछि । मैथिली गीतक चारूता तथा नाटकीय रोचकता पाओल जाइत अछि ।

(१४) गौरी स्वयंवर नाटक : कान्हा रामदास द्वारा उन्नैसम शताब्दीक मध्यभाग मे एहि नाटकक रचना मानल गेल अछि । ई मैथिली गीतमय नाटक अछि । एहि नाटक मे सतीक दग्ध होयबाक कथा ओ पुन: गौरीक रूप मे जन्म लेबाक कथा वर्णित अछि । ताड़कासुरक वधक लेल महादेव ओ गौरीक विवाह होयब अनिवार्य छल । कामदेव द्वारा जखन महादेवक तपस्या भंग करबाक चेष्टा कयल जाइत अछि आ एहि क्रम मे ओ हुनक कोपभाजन भऽ भस्म होइत छथि । रतिक विलाप सुनि महादेव कहैत छथि जे कृष्णक बालकक रूप मे अहाँक पति अहाँ कें भेटताह । एकर पश्चात्‌ महादेवक विवाह गौरीक संग होइत अछि । एहि नाटक मे कथानकक विकास घटनाक संयोजन नीक जकाँ देखाओल गेल अछि । रंगमंचीय निर्देश संस्कृत मे अछि । किन्तु विभिन्न राग मे निबद्ध मैथिली गीतक नाटक मे प्रधानता अछि ।

(१५) उषाहरण नाटिका : एहि नाटिकाक रचयिता रत्नपाणिक समय इतिहासकार लोकनि उन्नैसम शताब्दीक मध्यभाग मानलनि अछि । एहि नाटिकाक कथावस्तु हरिवंशक विष्णुपर्व सँ लेल गेल अछि । एहि मे कथोपकथन मैथिली मे तथा नाटकीय निर्देश, मंगल श्लोक आदि संस्कृत मे अछि । मिथिलाक भाषाक दृष्टि सँ ई नाटिका अपूर्व प्रतीत होइत अछि । मैथिली गीतक प्रचुर प्रयोग भेल अछि । श्रृंगार रस प्रधान अछि ।

(१६) प्रभावती हरण : भानुनाथ झा प्रसिद्ध ज्योतिर्विद भाना झा विरचित एहि नाटकक रचनाकाल उन्नैसम शताब्दीक मध्यभाग मानल जाइत अछि । एहि नाटकक कथावस्तु पौराणिक अछि । एहि मे वज्रनाभदैत्यक कन्या प्रभावतीक हरण तथा प्रद्युम्नक संग ओकर विवाहक कथा वर्णित अछि । विद्यापतिक गीत सँ प्रभावित मैथिली गीतक प्रधानता अछि । रंग निर्देश संस्कृत मे अछि ।

(१७) उषाहरण : एहि नाटकक रचयिता कविवर हर्षनाथ झा छथि, जनिक समय उन्नैसम शताब्दीक अंतिम भाग अछि । एहि मे संस्कृत नाट्य शैलीक पूर्ण अनुसरण कयल गेल अछि । एहि मे पांच गोट अंक अछि । एकर कथावस्तु हरिवंश ओ भागवत सँ लेल गेल अछि । रचना ओ नाटकीयताक दृष्टिएँ ई उत्कृष्ट कोटिक नाटक मानल जा सकैछ ।

(१८) माधवानन्द नाटक : कविवर हर्षनाथ झा रचित ई नाटक संस्कृत नाट्य परंपराक अनुरूप रचित अछि । एहू नाटकक रचनाकाल उन्नैसम शताब्दीक अंतिम भाग मानल जाइत अछि । श्रीमद्भागवतक रास पंचाध्यायी सँ कथावस्तु लऽ श्री राधाकृष्णक प्रेमलीलाक सुन्दर एवं मनोहर वर्णन कयल गेल अछि ।

(१९) मैथिली गीतमय नाटक : कविवर हर्षनाथ झाक अनुसरण करैत पं. विश्वनाथ झा प्रसिद्ध बालाजी श्री राधाकृष्णक प्रेमलीला पर आधारित एक मैथिली गीतमय नाटक लिखल । एहि गीत सभ पर महाकवि विद्यापतिक स्पष्ट प्रभाव अछि ।

(२०) अहल्या चरित नाटक : कवीश्वर चन्दा झा रचित अहल्या चरित नाटक जकर कथा रामायण सँ लेल गेल अछि, जाहि मे गौतम मुनिक पत्नी अहल्याक रामचन्द्र द्वारा उद्धारक कथा वर्णित अछि । एहि नाटक मध्य कवि अपन विद्वता ओ पांडित्य कें गीतक माध्यमे देखाओल अछि ।

(२१) राजराजेश्वरी नाटक : एहि नाटकक रचयिता छलाह राजपंडित ज्योतिषी बल्देव मिश्र । एकर कथानक स्कन्द पुराण पर आधारित अछि । पार्वतीक प्रायश्चित ओ ताड़काक वध एहि नाटकक प्रमुख वर्ण्य विषय अछि । एहि मे नओ गोट अंक अछि । महेशवाणी, नचारी, पमरिया आदिक गीत एहि नाटकक विशेषता बढ़बैत अछि ।

(२२) रमेशोदय नाटक : महाराज रमेश्वर सिंहक जीवन चरित पर आधारित राजपंडित ज्योतिषी बल्देव मिश्र द्वारा रचित एक दोसर नाटक थिक । कीर्तनियां नाटकक परंपरा मे राजपंडित ज्योतिषी बल्देव मिश्रक प्राय: ई अंतिम नाटक अछि ।

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

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माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
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सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



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