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रविवार, 6 फ़रवरी 2011

आवश्‍यक व्यवहारिक मन्त्र

रक्षा बन्धन मन्त्र= येन वन्धो बली राजा दानवेन्द्गो महाबल ः

। तेनत्वाप्रतिवध्नामि रक्षो माचल माचल ः ।

कुशोत्पाटन मन्त्र= (कुश उखारय के मन्त्र)
कुशाग्रे वसते रूद्ग ः कुश मध्ये तु केशवः । कुशमूले वसेद ब्रहा कुशान्मे देहि मेदिनि ॥ कुशोऽसि कुशोऽसि कुशपुत्रोऽसि ब्रह्यणा निर्मिता पुरा । देव पितु हितार्थाय कुश मुत्पाद्याम्यहम ॥

चौठचन्द्ग= (फ़ल लय कऽ चन्द्गमा के दर्शनक मन्त्र)
सिंह प्रसेनभवघीत सिंहो जाम्वहताहतः । सुकुमारकमारो दीपस्तेह्यषव स्यमन्तकः ।
प्रार्थना= दघिसंष तुषाराभम क्षीरोदार्णव सम्मवम्‌ । नमामि शशिनंभक्त्वा शम्मोर्मुकुट भूषणम्‌ ॥

॥ उल्काभ्रमण ॥ (दिवाली दिन सायंकाल उक्का के मन्त्र)

शास्त्रा शस्त्रहतानांच भूतानांभूत दर्शयोः । उज्जवल ज्योतिषा देहं निदहे व्योम वहिननाः ॥ अग्निदग्घाश्‍च्ये जीवायेऽप्यदग्घाः कुले मम । उज्जवल ज्योतिषा दग्घास्ते यास्तु परमांगतिम ॥ यमलोक परित्यज्य आगता महालये उज्ज्वलज्योतिषा वर्त्य पश्‍यन्तो व्रजन्तुते ॥

॥ अगस्त्यार्घदान ( अगस्त मुनिक तर्पण मन्त्र) ॥

कुम्भयोनिसमुत्पन्न मुनीना मुनिसत्तम । उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृहयताम ॥ शखं पुष्पं फ़लं तोयं रत्नानि विविघानिच । उदयन्ते लंकाद्वारे अर्घोऽयं प्रति गृहयताम ।

प्रार्थना= आतापि भक्षितो येन वातापि च महावलः । समुद्ग शोषितो येन समेऽगस्त्य प्रसिदतु ॥

॥ अनन्त धारण करय के मन्त्र ॥

अनन्त संसार महासमुद्रे भग्नास्या अभ्युद्घर वासुदेवा अनन्त रूपे विनियोजयस्व अन्तरूपाय नमोनमस्ते ॥

॥ देवोत्थान (कार्तिक शुदी एकादशी केँ भगवान केँ जगायबाक मन्त्र ॥

ब्रह्मेन्द्गरूदरभिवन्दित वन्दय मानो भवानुर्षिर्वदित वन्दनीय ः । प्राप्ता तवेयं किल कामुदाख्या जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ ॥ मेघागता निर्मल पूर्णचन्द्गः शारदय पुष्पाणि मनोहराणि । अहं ददानीति च पुण्यहेतो जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ ॥ उतिष्ठो तिष्ठ गोविन्द त्यज्य निद्गां जगत्पते त्वया चोत्थीय मानेन उत्थित भुवन त्रयम ॥

॥ मेष संक्रान्ति घटदान मन्त्र ॥ ( जूड़ शीतल )

ॐ वारिपूर्ण घटायनमः । अक्षतसँ तीन वेर कलश पर । कुशके ब्रह्यण पर ३ वेर । ॐ ब्राह्मणाय नमः । दानः- ॐ अदयेत्यादि मेषार्क संक्रमण प्रयुक्त पुण्याहे अमुक गोत्रस्य पितुः (गोत्राया मातु) अमुक शर्मा (देव्या) स्वर्गकामः ( कामा ) इमं वारिपूर्ण घट यथानाम गोत्राय व्राह्मणाय महंददे । ॐ अद्य कृतैतत वारिपूर्ण घटदान प्रतिष्ठार्थ, एताबद द्गव्यमूल्यक हिरण्यमाग्निदैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्यणाय दक्षिणा महं ददे ।

॥दुर्वाक्षत मन्त्रः ॥ ( आशिर्वादक मन्त्र )

ॐ आब्रह्यन ब्राह्यणो ब्रह्यवर्चसी जायतामाराष्टे राजन्य ः शूर इषव्योऽपि ब्याघि महारथो जायतम दोग्घी धेनूर्वोढा ऽनडवानाशुः सप्ति पुरन्धिर्योषा विष्णुरथेष्ठा समेयोयुवाऽस्यजमानस्य विरोजायताम निकामे निकामे नः पर्ज्जन्यो वर्सतु फ़लवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोन कल्पताम्‌ मन्त्रार्थाय सिद्घय ः सन्तु पूर्णासन्तु मनोरथा शत्रुणां बुद्घिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तवः ।

॥ वाजसनेयी यज्ञोपवीत मन्त्र ॥

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहज

ं पुरस्तात । आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतम बलमस्तुतेज ः ॥

॥ छ्न्दोग यज्ञोपवीत मन्त्र ॥

ॐ यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वोपवीतेनोपनह्यामि ।

॥ संक्षिप्त वैतरणी दान ॥

ॐ कृष्णगव्यै नमः ३ तीलसँ। कुशक ब्राह्यण पर ३ वेर ॐ ब्राह्मणाय नमः । ॐ उष्णे वर्षति शीत वा मारूते वाति यामुशम । दातारं त्रायते यस्मात्तस्मा द्घैतणी स्मृता ॥ यमद्वारे महा घोरे कृष्णां बैतरनी नदी । तासांनिसरन्तुन्ददाम्येन कृष्णां वैत रीचं गाम । इति पठित्वा कुशत्रय तिल जान्यादान- ॐ अदामुक गोत्रस्य पितुरमुक शर्मण ( मातुरामुक देव्या ) यम द्वार स्थित वैतरनी नदी सुख संतरण काम इमां कृष्णां गांरूद्ग देवता ममुकगोत्रस्य अमुक शर्मण ब्राह्यणय तस्यमांह सम्प्रददे ” ॐ स्वारस्वीति प्रतिवर्चनम । ओमदय कृतैतत कृण्ण गवीदान प्रतिष्ठार्थ मेतावद द्रव्य मूल्यक हिरण्य मग्नि दैवतम दक्षिणा प्रतिग्ररिहीता ॐ स्वस्ती त्युकत्वा गोपुच्छं गृहणमं यथा साखं कामस्तुति पठेत गायके नहीं रहत्मापर द्गव्य राखि ।

॥ संक्षिप्त दाह-संस्कार ॥

कर्त्ता स्नान कए नूतन वस्त्रादि पहिरि पूर्वमुह बैसि नूतन-मृतिका पात्रमे जल भरि जल अभिमन्त्रित करथि- ॐ गयादीनि च तिर्थानि येच पुण्या ः शिलोच्चयाः । कुरूक्षेत्रं च गंगा च यमुनां च सरिद्वशम्‌ । कौशकि चन्द्गभागांच सर्वपाप प्रणाशिनीम ॥ भद्रा वकाशां सरयूं गण्डकी तमसान्तया । धैनवंच वराहंच तीर्थपीण्डारकन्तथा । पृथिव्यां यानि तीर्थानि चतुरः सागरस्तथा ॥ मनसँ ध्यान करैत जलसँ दक्षिण सिर शवकें स्नान करा नूतन वस्त्र द्वयं यज्ञोपवीतं पुष्प चन्दनादिसँ अलंकृत कय चिता पर उत्तर मुँह अद्योमुख पुरूष के तथा स्त्रीगण के उत्तान शयन करा, अपसव्य भय दक्षिणाभिमुख भय वाम हाथमे उक लय-मन्त्र= देवश्‍चाग्नि मुखाः सर्वे कृत स्नपनं गतायुषमेनं दहन्तु । मनमे ध्यान करैत ॐ कुत्वा सुदुष्करं कर्म जानता वाप्य जानता । मुत्युकालवशं प्राप्तं नरं पचत्वमागतम । घर्मा धर्म समायुक्तं लोकमोह समावृत्तम । दहेयं सर्वगात्राणि दिव्यलोकान सगच्छतु ॥ इति मन्त्रद्वयं पठित्वा त्रिः प्रदक्षिणी कृत्य ज्वलदुल्मुकं- शिरो देशे ददयात । तत स्तुण काष्ठ घृतादिकं चितायां निक्षिप्य कलोतावशेषं दहेता ततः प्रदेश मात्र सप्र काष्टकामि ः सह प्रदिक्षिणां सप्रकं विधाय कुठारेण उल्मुंख प्रतिप्रहार सप्रकं निधाय क्रव्यादान नमस्तुभ्य मित्ये कैकां काष्टि काग्नौ क्षिपेत। ततः ॐ अहरहर्न्नयमानो-गामश्‍वं पुरूषंम पशुम । वैवश्‍वतो न तुप्यति सुरभिरिव दुर्मिति ः । इति यमगाथा गायन्तो बालपुरस्सराः वृद्ध पश्‍चिमा पादेन पादस्पर्शम अकुर्वाणाः जलाशयं गच्छेयुः ।

त्रिलांजलिः= ॐ अदयमुक्त गोत्रः ऽमुक प्रेथ एषतिलतोयां जलिस्तेमया दीयते तवोपतिष्ठताम । बादमे घरपर अग्नि, पानी, लोह, पाथर के अनामिका अंगुली सँ स्पर्श कय इति ।

॥ अथः मृतोद्देश्यक सजल घटदान विधि ः ॥

दाह संस्कारक तेसर दिन अस्थि संचय कयलाक वाद मृतक केँ घरक द्वारि पर या पिपर गाछपर एक छोट माटिक घड़ा मे नीचा छेद कय ओहिमे कुश दय उपर मे लटका देबाक चाही ।
घट दान मन्त्रं= दाह कर्त्ता अपसव्य भय दक्षिण मुँह वैसि मोड़ा, तिल, जल लय - ॐ अद्यामुक गोत्रस्य पितुः अमुक प्रेतस्य सर्वपाप प्रशान्त्यध्वश्रम विनाश कामः अदयादय शौचान्त दिनं यावदाकाशाधिकरणक सजल घटदान महं करिष्यो । ई मन्त्र पढ़ि घट के उत्सर्ग करी ।

॥ अथः मृतोद्देश्यक सन्ध्या कृत्यम्‌ ॥

सायंकाल घटक निचा स्थान के गायक गोवर सँ निपि तीन एक फ़ुटक काठी के खराकय एक वर्तनमे जल- दूध मिलाय ओहि स्थान पर माटिक दिप, फ़ल उन्जला के माला राखि निचाकऽ मन्त्रसँ उस्सर्ग करि । कर्त्ता अपसव्य भय (उतरी तथा जनेउ के गलामे माला जकाँ राखि ) दक्षिणा मुँहे बैसि बामा जांघ के खसाय मोड़ा, तिल, जल लऽ मन्त्रं- ॐ अस्यां सन्ध्यायां अमुक गोत्र पितः उमुक प्रेत इदं जलं ते मया दीयते तबोपतिष्टताम ॐ अत्र स्नाहि -
(१)
(२)- ॐ अस्यां सन्ध्यायाम अमुक गोत्र पितः अमुक प्रेत इदं दुग्धं तेमया दीयते तवोपतिष्टताम, इदं दुग्ध पिव ।
(३) ॐ अस्यां सन्ध्यायाम अमुक गोत्र पितः अमुक प्रेत इदं माल्यं तेमया दीयते तवोपतिष्टताम । इदं माल्ये परि घेही ।
(४) ॐ अस्यां सन्ध्यायाम अमुक गोत्र पितः अमुक प्रेत एष दीप ः तेमया दीयते तवोप तिष्टताम ॥

॥ आश्विन पितृ तर्पण विधि ॥

भादव शुक्ल पुर्णिमा दिन अगस्त मुनिक तर्पण पुर्व मुँह भय, खीरा सुपारी, राड़िक फ़ुलकी किछु द्रव्य लऽ पहिले ॐ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्था गतोऽपिवा । यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स वाह्‍याभ्यन्तर ः शुचि ः । ॐ पुण्डरीकाक्षः । ई मन्त्र पढ़ि शरीर के जलसँ शिक्त कय पुर्व मुख भय नदी, तलाव तथा घर मे जल के सन्निकट स्नानक स्थान पर हाथमे उपर के सभ समान केँ लऽ तर्पण शुरू करी । अगस्यतर्पण मन्त्र= कुम्भयोनि समुत्पन्न मुनीनां मुनिसत्तम । उदयन्ते लंकाद्वारे अर्घोऽयं प्रति गृहयताम ॥ शखं पुष्पं फ़लं तोयं रत्‍नानि विविघानि च । उदयन्ते लंकाद्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृहयताम ॥ आतापि भक्षितो येन वातापि च महावलः । समुद्घ शोषितो येन स मेऽगस्य प्रसीदतु ॥ ई मन्त्र पढ़ि तीन वेर हाथक अग्रभाग दऽ जल खसाबी ।

ताहि के प्रात:काल (यानि पड़िव तिथिसँ ) पितृ तर्पण शुरू करी । विधान= दूटा तेकुशा बनावि, दूटा मोड़ा, एक विरनी , एक अंगुठी कुशके बनाय वामा हाथमे विरनी तथा दाहिना हाथमे देवकर्म के समय तेकुसा के उपर अंजुली मे जल लऽ ॐ सूर्यादि पंच देवतातुप्यीमिदं जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा तस्मै स्वधा मन्त्र पढ़ि तीन वेर तेकुशापर जल दी । ॐ भगवन विष्णोःतृप्यंता मिदं जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा, तस्मैस्वधा, एहि तरहें सर्वदेवताक उपरोक्त मन्त्र सँ जल दी । लक्ष्मी, सरस्वती आदिपुरूष, अनादि पुरूष, इन्द्रादि दशदिग्पाल, सूर्यादि नवग्रह, ससीत राम लक्ष्माणाः, दूर्गा, कालिका देव्या, सप्तर्षयः राजणयः, ग्राम देवता, कुलदेवता, ईष्टदेवता, एहि नामक उच्चारण कय बहुत संख्या मे तृप्यंन्तामिदं जलं एक के साथ तृप्यतामिदं जलं तस्मै स्वाधा ३ वेर कहि कुशपर जल दी, एहि के बाद अपसव्य भय- जनेउ के गरामे माला जकाँ धारणकऽ हाथमे मोड़ा लय दक्षिण मुँह घुमि एक मोड़ाके निचामे राखि जिनका जे गोत्र होय वो जेना ( शाणिल्य गोत्रोत्पन्नः पुरूष के लेलं शाण्डिय गोत्रोत्पन्ना, उपर पुरूष पितर के नाम के साथ शर्मणः स्त्री पितर के नामके आगा देव्या कहि अंगुष्ठा और तर्जनी अंगुलीक मध्यभाग पितृतीर्थ सँ जल खसाबी । मोड़ा के उपर तीन वेर । यथानाम गोत्र उत्पन्न ः पिता

यथानाम शर्मन तृप्यामिदं जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा एहितरहें पितृपक्ष मे मातृ पक्षमे करी ।
पिता, पितामाह, प्रपितामह, माता पितामही, प्रपितामही ।

मातृपक्षमे= मातामह (नाना), प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह, मातामही (नानी), प्रमातामही, वृद्घप्रमातामही ।

नोट जिनकर नाम गोत्रक पता नहि होय वो ( यथानाम गोत्रः यथानाम शर्मन कहि, स्त्री पक्षमे यथानाम गोत्रोत्पन्ना याथा नाम देव्या कहि जलदान करी ।

अन्तमे कपड़ा के एक कोन भिजाय ओहि कपड़ा के निचोरि कय पृथ्वी पर जल ३ वेर खसाबी । मन्त्र ॐ अप्यदग्धाश्च जे जीवा जेप्यदगधा कुलेमम भूमौ दत्तेन तुप्यन्तु तृप्तायान्तु परांगतिम । एहि के बाद पुनः स्नान कय कपड़ा धारण करी । इति ।

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

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