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शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

नबकी पुतोहू की पूरनका सौस

मुकेश - काकी गोर लगैत छी ,

काकी - बोउवा नीके रहू ,

मुकेश - चाची हम आई अपन गाम घर स एलव ह ,

नबकी पुतोहू के बारे में किछ पूछय चाहैत छि ,

काकी - की कहू ----

अबिते देरी घोघ हटेली,
बिनु पुछनही सब सासन चलेली ,
घर दुवारी केर चाभी लेली ,
आ अपना बस में केलि हबेली
सुनैत छलहु छानी नाम चमेली,
देखन्ही बुझलहु छाथी अलबेली ,

( किछ देर बाद ब्यब्सयिक विश्राम -- )
पुनः ---
मुकेश - गोर लगै छी भौजी ...

भौजी - मुकेश यो आउव आउव ,आव बैसू ,

मुकेश - भौजी हम अपन गाम घर स एलव हाँ

आहा सासु के बारे में किछ पूछय चाहैत छिक ?

भौजी - की कहु निम्झानी के --

छै फूलल गाल,
आखी जेना फरचोका लाल ,
ऊजर धप -धप थिठुरल बाल,
लगै जेना छै सोझे काल ,
कहियो क लगबै छैक तेल ,
नहीं समाज में ककरो सन मेल ,
छै बर छोट मुदा बर मोट ,
मोन में हरदम भरने खोट,
तामशे ठार रही छै झोट ,
आचर में किछ बनने नोट,
पानक संग में जर्दा चाही,
बस हमरे टा ले पर्दा चाही ,

(फेर कनिक ब्यब्सयिक विश्राम बाद )
पुनः ---
मुकेश - काकी आब कहू कतेक बदल्लीय कनिया

चाची - छोरु निराशी के की आब बदलत ---
आब हमर की बदलत दुनिया,
बिदाय में अनलक ई हरमुनिया ,
गामक छौरा-छौरी सब आबय ,
घर में ढोलक झाली बजबैया,
घर बनल अछि नाचक मंच ,
की पंचायत करत सब पंच
बौआ सेहो ओकरही भेला,
कनिया गुरु ओ बनला चेला ,
हाँ जी हाँ जी बाजाथी जहिना यंत्र ,
ततबे कनिया दै छनी मन्त्र ,
बौआक बाबुओ ओकरही दिश ,
हमरा लेल बस एक जगदीश ,

(कनिक ब्यब्सयिक विश्राम बाद )
पुनः ---
मुकेश - भौजी आब कहू कतेक बदलल सासु ...

भौजी - --- सब ठीके छैक

हमरा लेल छल सोलहो सोन,
अपन साफ रखैत छि मोन ,
काजक पाछु लागल रहलव,
बेसी किछी ककरहु नही कहलव ,
जीबन छोट अछि काज बहुत,
हम सब छि भगबानक दूत ,
इ संसार हमर आछी घर ,
सब स बेसी मानथी बर
ससुर हमर छथी जतबे निक,
सासु करेला ततबे तित ,
जग सागर में सब के साथ ,
पार लगेता बाबा भैरब नाथ

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

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