हुस्न के ज़ंजीर से ,
कुछ ईस कदर बंधता गया,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
कुछ ईस कदर बंधता गया,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
क्या गज़ब की चाल थी वो,
बलखाती - ईतराती हुई ,
मै नादान उस राह पे ,
बरबस यूँहि चलता गया ,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
बलखाती - ईतराती हुई ,
मै नादान उस राह पे ,
बरबस यूँहि चलता गया ,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
उनकी पलकें जब उठी !
वो आँखें ! तिलस्मी ज़ाल सी,
मैं तो बस खिंचते हुए ,
उस जाल में फँसता गया,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
वो आँखें ! तिलस्मी ज़ाल सी,
मैं तो बस खिंचते हुए ,
उस जाल में फँसता गया,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
पायलों की झन-झनाहट ,
मन कि वीणा छेड़ दी,
मैं भि उस संगीत को,
रसिकों कि भाँति सुनता गया,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
मन कि वीणा छेड़ दी,
मैं भि उस संगीत को,
रसिकों कि भाँति सुनता गया,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
मैं भि कम ना था,
बड़ा ही ढीठ मैं भी हो गया,
उनके घर के सामने,
मेरा भी डेरा जम गया,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
बड़ा ही ढीठ मैं भी हो गया,
उनके घर के सामने,
मेरा भी डेरा जम गया,
मैं तो खुद में खो गया,
फिर वो नशा चढता गया ||
••••••• Manish Jha
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