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शनिवार, 2 जून 2012

चोर कें छकेलैन / पकड़बेलैन ( गोनू झा )


गोनू झा रहथि सतर्क लोक । यद्यपि ओ कोनो धनवान लोक नहि रहथि तथापि गौंआ आ अनगौंआ कें लगैक जे हो ने हो हुनका लग कोनो गाड़ल संपत्ति जरूर छनि । आ तें गामक वा अरोस-पड़ोस गामक चोर सभ हिनका घर मे चोरी करबाक युक्ति बनौलक । किछु दिन मंत्रणा कयलाक बाद दू तीन गोटे सबेरे हुनका दलानक एकटा झुरमुट मे नुका रहल । हुनका ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलनि जे चोर हमरा घर तक आबि चुकल अछि आ तें चोर सभ कें छकेबाक लेल ओ झुरमुट सँ कनिये हटि कें खाट लगेलनि आ बैसि गेलाह ओतय । ओ पनबट्टी आ एक बाल्टी पानि आंगन सँ मंगेलनि आ बैसि गेलाह खाट पर । ओ पान खाथि आ पीक झुरमुट पर फेकथि । पुन: कुरड़ा करथि आ फेर ओएह प्रक्रिया - पान खायब आ कुरड़ा करब । ई क्रम बड़ी राति धरि चलैत रहल । जहन ओ रातिक भोजनक लेल समय पर नहि अयलाह तँ पत्नी दलान पर पहुँचलीह आ देखैत छथि जे एतय तँ तेसरे खेला भऽ रहल अछि ।
पत्नी लग मे बेसैत पुछलथिन - की अहाँ आई भोजन नहि करबैक । पत्नी के लग मे बैसबैत गोनू हुनका आँचर सँ मुँह पोछि लेलाह । पत्नी तमसाइत बजलीह जे ई की कयल । नवे साड़ी के खराब कय देल । गोनू बजलाह जे अहाँ तँ एक बेर मे तमसा गेलहुँ आ ई महानुभाव सभ तँ साँझे सँ हमर पानक पीक आ कुरड़ा के सहि रहल छथि आ तैयो एको बेर सगबगेलाह नहि। चोर सभ कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलैक जे गोनू हमरा सभ कें देखि लेलैन आ ओ सभ बाहर निकलि हुनका पयर पर खैसि पड़ल । गोनू ओकरा सभ कें माफ कऽ देलनि ।
परंतु चोर सभ एहि अपमान कें बर्दास्त नहि कऽ सकल आ किछु दिनक बाद फेर हुनका घर मे चोरि करक लेल आयल । एहि बेर ओ सभ घरक अगल-बगल मे नुका रहल आ राति होयबाक इंतजार करय लागल । सतर्क गोनू फेर बुझि गेलाह जे चोर सभ आबि चुकल अछि आ एहि बेर शायद बिना चोरी कयने नहि रहत । ओ जानि -बूझि कें पत्नी सँ संपत्ति आदिक गप्प करब शुरू कयलनि ।
गोनू - आई काल्हि समय बड़ खराब भऽ गेल अछि आ तें लोक कें सतर्क रहबाक चाही । पता नहि कोन दोग सँ चोर आयत आ सभटा सामान निपत्ता कय देत ।
पत्नी - अपना घर मे अछिये की जे चोर लेत ।

गोनू - से किएक कहैत छी । बाप-पुरषाक देल गहनाक पोटरी जे अछि ।
पत्नी - परन्तु एहि विषय मे हमरा अहाँ कहाँ कहलहुँ ।
गोनू - कहितौ कोना? अहाँक पेट मे बात नहि रहैत अछि आ भेद खुजैत देरी समान निपत्ता ।
पत्नी - तहन आबो तँ कहू जे ओ पोटरी कतय रखने छी ।
गोनू - घर मे राखब तँ चोर लऽ जायत आ तें बाड़ी मे जे आमक गाछ अछि ताहि पर अढ़ मे राखि देने छियैक ।
चोर सभ सभटा सुनिते रहय । लपालप पहुँचल आमक गाछ लग । टॉर्च सँ ऊपर देखलक तँ मोटरी देखेलैक । दनादन ऊपर चढ़ल आ गेल ओतय । परन्तु ई तँ घोरनक छत्ता छल । सभ चित्कार करैत ओतय सँ पड़ायल आ एहि व्यथे कईक मास धरि ओछाओन धेने रहल ।
चोरो सभ हारि मानय वला नहि छल । ओ सभ फेर गोनूक घर मे चोरि करबाक योजना बनेलक । एहि बेर ओ सभ सदल-बल पहुँचल । संगे मे किछु हथियारो लेलक ताकि जरूरत पड़ला पर एकर उपयोग कय कें गोनूक घर मे चोरि कय सकी । ओ सभ येनकेन प्रकारेण हुनक घर मे घुसि गेल आ धरनि पर जा कऽ नुका रहल आ राति हेबाक इंतजार करय लागल । गोनू कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलैन जे एहि बेर ई सभ सदल-बल आयल अछि । तें ओ किछु और युक्ति सोचय लगलाह । अकस्मात ओ पत्नी सँ प्रश्न केलनि जे यदि अपना सभ कें पहिल बेटा होयत तँ ओकर की नाम रखबैक । पत्नी बेस नाराज भेलीह जे बेटा भेल नहिये आर नाम राखि लेब । तथापि गोनू नहि मानलनि । ओ बेटाक नाम रखबाक जिद्द करय लगलाह । हारि कें पत्नी कहलखिन जे बेटाक नाम बापे रखैत छैक से अहीं कोनो नाम राखि लिय । सोचि बिचारि कें गोनू पहिल बेटाक नाम ‘भुटकुन’ रखलनि । आब पत्नी सुतबाक उपक्रम करय लगलीह, ता गोनू फेर गप्प शुरू कयलनि ।
गोनू - जँ दोसर बेटा होयर तँ की नाम रखबैक?
पत्नी - बेटा भेल एकोटा नहि आ नाम दोसरोक रखैत छी ।
गोनू - नाम राखि लेबा मे की हर्ज?
पत्नी -तहन एक्केटा-दूटाक कियाक चारि-पाँच टाक नाम एकहि बेर राखि लिय ।
गोनू - हमरो तँ सएह विचार छल ।
पत्नी - तहन जल्दी सँ सभक नाम कहू जे हम सूती, अन्यथा अहाँ सुतैये नहि देब ।
गोनू -दोसरक नाम मंगनू, तेसरक नाम चुल्हाई आ चारिमक नाम चोर रखबै ।
पत्नी - तखन इहो कहिये दिय जे यदि सभटा आँगन सँ बाहर रहत तँ केना बजेबैक सभटा कें?
गोनू - भुटकुन, मंगनू, चुल्हाई चोर हौ ।
वस्तुत: ई सभ कियो गोनूक पड़ोसी छलाह । आवाज सुनतहि सभ कियो लाठी लऽ कऽ धमकैत गेलाह आ पुछलनि कहाँ यौ । गोनू कहलनि - हे सभ गोटे धरनि पर बैसल छल । एहि बेर चोरबा सभ जगहे पर पकड़ा गेल । ओ सभ धरनि पर सँ उतरैत गेल आ गोनूक पयर पर खसल आ फेर हुनका घर आ हुनका गाम मे चोरि नहि करबाक प्रतिज्ञा कयलक । गोनू ओकरा सभ कें माफ कऽ देलनि ।

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



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