धर मन धीर चल गंगा केर तीर ,
तन मन की मैल धोत है गंगा के नीर ,
महादेव की जटा से बहत है गंगा की धरा ,
गंगाजल की महिमा गाए जग सारा ,
तिनोलोक में भए गंगाजल अमृत समान ,
देव दानव मानब भए अमर,करके गंगाजल्पान ,
निर्धन को धन बाझिनको पुत्र मिले कोढिको काया ,
जान सकेना कोई,अपरम्पार है गंगा माई की महामाया ,
शरण जाये जो गंगा माई के होई तिनके मनोकामना पूरा ,
सर्व सुख पूर्ण होई तिनके ,रहेना कोई कामना अधुरा ,
गंगा की बखान करे कवी कोविद तुलसी गोसाई ,
जय जय गंगा माई होई हम भक्त पर सहाई ,
तुम विन न कोई ईस गरीब का और दूजा ,
नित्यदिन श्रद्धा सुमन से करहु तेरी पूजा ,
गंगा माई है प्रकृति का सुन्दर उपहार ,
जो जाये गंगा माई की शरण में होई तिनके उधार ,
जय जय जय गंगा माई ,होहु हम भक्त पर सहाई,
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट
माछक महत्व
हरि हरि ! जनम किऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पलइ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कबइ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खाएब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म किऎ लेल !
हरि हरि.
कर भला तो हो भला अंत भले का भला
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एकता विकास के जननी छैजय मैथिली, जय मिथिला, जय मिथिलांचल (बिहार)
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