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बुधवार, 27 सितंबर 2017

ब्राह्मणों के खिलाफ आरोप हैं कि उसनें जाति का बटबारा किया !!

बहुत से लोग ब्राह्मणों के खिलाफ  गालियां लिख रहा था। उस मनहूस को ये पोस्ट समर्पित करता हूँ।

सवर्णों में एक जाति आती है ब्राह्मण...जिस पर सदियों से राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी, भाजपा, सभी राजनीतिक पार्टियाँ, विभिन्न जातियाँ आक्रमण करते आ रहे हैं।

आरोप ये लगे कि ~ब्राह्मणों ने जाति का बँटवारा किया।

उत्तर - सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय है और जिसका संकलन वेद व्यास जी ने किया, जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।

18 पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास जी रचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गयी है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे।

ऐसे ही कालीदास आदि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के पक्षधर थे जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे।

अब मेरा प्रश्न उस वामपंथी के लिए...

कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बताओ...
जिसमें जाति व्यवस्था लिखी गयी हो और उसे ब्राह्मण ने लिखा हो?

शायद एक भी नही मिलेगा।
मुझे पता है तुम मनु-स्मृति का ही नाम लोगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जो कि क्षत्रिय थे।

मनु-स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही नही और पढ़ा भी तो टुकड़ों में कुछ श्लोकों को जिसके कहने का प्रयोजन कुछ अन्य होता है और हम समझते अपने विचारानुसार है।

मनु-स्मृति पूर्वाग्रह रहित होकर सांगोपांग पढ़े।
छिद्रान्वेषण की अपेक्षा गुणग्राही बनकर पढ़ने पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

अब रही बात " ब्राह्मणों "ने क्या किया ? तो नीचे पढ़े...

(1)यन्त्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ)- भारद्वाज

(2)वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु)- आचार्य द्रोण

(3)सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा)-सुश्रुत.

(4)चरकसंहिता (चिकित्सा)-चरक.

(5)अर्थशास्त्र (जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय है)-कौटिल्य.

(6)आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट.

ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन,
परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में बिताए।

उसके पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु समय ही कहाँ शेष था?

कोई बताएगा समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए भी, सर्वशक्तिमान् होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा हो ?

एक गरेरिया के बेटे चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाकर मौर्यवंश को स्थापित कर कुटिया बनाकर रहने वाले विष्णुगुप्त चाणक्य ब्राहमणों के सामने
जन्मते जायते शुद्र:
कर्मणे भवति ब्राह्मण:
वेदवाक्य को प्रतिस्थापित करता है.

विदेशी मानसिकता से ग्रसित कम्युनिस्टों(वामपंथियों) ने कुचक्र रचकर गलत तथ्य पेश किये। आजादी के बाद इतिहास संरचना इनके हाथों सौपी गयी और ये विदेश संचालित षड्यन्त्रों के तहत देश में जहर बोने लगे।

ब्राह्मण हमेशा ये चाहता रहा कि राष्ट्र शक्तिशाली हो, अखण्ड हो,न्याय व्यवस्था सुदृढ़ हो।

सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:खभाग्भवेत्...

का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण,वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण, सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज और पुस्तक लिए चरैवेति-चरैवेति का अनुसरण करता रहा।मन में एक ही भाव था लोक कल्याण।

ऐसा नहीं कि लोक-कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही काम किया। बहुत सारे ऋषि, मुनि, विद्वान्, महापुरुष अन्य वर्णों के भी हुए जिनका महत् योगदान रहा है।

किन्तु आज ब्राह्मण के विषय में ही इसलिए कह रहा हूँ कि जिस देश  की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा।

जिसने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी यहाँ की संस्कृति और ज्ञान को बचाए रखा।

वेदों शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था,तब ब्राह्मणों ने पूरा का पूरा वेद और शास्त्र कण्ठस्थ करके बचा लिया और आज भी वो इसे नई पीढ़ी में संचारित कर रहे है वे सामान्य कैसे हो सकते है?

उन्हे सामान्य जाति का कहकर आरक्षण के नाम पर सभी सरकारी सुविधाओं से रहित क्यों रखा जाता है ?

ब्राह्मण अपनी रोजी रोटी कैसे चलाये ?
ब्राह्मण को देना पड़ता है पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा फीस और सरकारी सारी सुविधाएँ obc, sc, st, अल्पसंख्यक के नाम पर पूँजीपति या गरीब के नाम पर अयोग्य लोंगों को दी जाती है।

मैं अन्य जाति विरोधी नही हूँ...
 लेकिन, किसी ने ब्राह्मण को गाली देकर उकसाया है।

इस देश में गरीबी से नहीं जातियों से लड़ा जाता है।
एक ब्राह्मण के लिए सरकार कोई रोजगार नही देती कोई सुविधा नही देती।

एक ब्राह्मण बहुत सारे व्यवसाय नही कर सकता...
जैसे -- पोल्ट्रीफार्म, अण्डा, मांस, मुर्गीपालन,
कबूतरपालन, बकरी, गदहा,ऊँट, सूअरपालन, मछलीपालन, जूता,चप्पल, शराब आदि, बैण्डबाजा और विभिन्न जातियों के पैतृक व्यवसाय क्योंकि उसका धर्म एवं समाज दोनों ही इसकी अनुमति नही देते।

ऐसा करने वालों से उनके समाज के लोग सम्बन्ध नही बनाते।

वो शारीरिक-परिश्रम करके अपना पेट पालना चाहे तो उसे मजदूरी नही मिलती, क्योंकि लोग ब्राह्मण से सेवा कराना पाप समझते है।

हाँ...उसे अपना घर छोड़कर दूर मजदूरी, दरवानी आदि करने के लिए जाना पड़ता है। कुछ को मजदूरी मिलती है कुछ को नहीं...

अब सवाल उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है?
 जिसने संसार के लिए इतनी कठिन तपस्या की उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों?
जिसने शिक्षा को बचाने के लिए सर्वस्व त्याग दिया उसके साथ इतनी भयानक ईर्ष्या क्यों?

मैं बताना चाहूँगा कि  ब्राह्मण को किसी जाति-विशेष से द्वेष नही होता है।
उन्होंने शास्त्रों को जीने का प्रयास किया  है,अत: जातिगत छुआछूत को पाप मानते है।

मेरा सबसे निवेदन --गलत तथ्यों के आधार पर उन्हें क्यों सताया जा रहा है ?
उनके धर्म के प्रतीक शिखा और यज्ञोपवीत, वेश भूषा का मजाक क्यों बनाया जा रहा हैं ?

मन्त्रों और पूजा पद्धति का उपहास होता है और आप सहन कैसे करते है?

विश्व की सबसे समृद्ध और एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत को हम भारतीय हेय दृष्टि से क्यों देखते है? हमें पता है आप कुतर्क करेंगे, आजादी के बाद भी 74 साल से अत्याचार होता रहा ।

हर युग में ब्राह्मण के साथ भेदभाव, अत्याचार होता आया है...

 कुमार अवधेश सिंह के वाल से सहातयार्थ (साभार).

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Dharmesh ने कहा…

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

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हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
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माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
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सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



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