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मंगलवार, 19 जून 2012

दही चूडा चीनी


खट्टर कका दलान पर बैसल भाङ घाटैत छलाह । हमरा अबैत देखि बजलाह— हाँ…हाँ….ओम्हर मरचाइ रोपल छैक, घूमि कऽ आबह ।
हम कहलिऐन्ह।— खट्टर कका, आइ जयवारी भोज छैक, सैह सूचित करय आयल छी ।
खट्टर कका पुलकित होइत बजलाह…बाह बाह ! तखन सोझे चलि आबह । दु एकटा धङ्घेबे करतैक त की हैतैक ? …हँ, भोजमे हैतैक की सभ ?
हम—दही चूडा चीनी ।
खट्टर कका— बस, बस, बस । सृष्टिगमे सभ सँ उत्कृ ष्टू पदार्थ यैह थीक । गोरसमे सभ सँ माँगलिक वस्तु— दही, अन्न मे सभक चूडामणि—चूडा, मधुरमे सभक मूल—चीनी । एहि तीनूक सँयोग बूझह तै त्रिवेणी—सँगम थीक । हमरा त त्रिलोकक आनन्दभ एहिमे बूझि पडैत अछि । चूडा…भूलोक, दही…भुवर्लोक, आ चीनी…स्वकर्लोक ।
हम देखल जे खट्टर कका एखन तरंगमे छथि । सभटा अद्भुते बजताह । अतएव काज अछैतो गप्पज सुनबाक लोभें बैसि गेलहुँ ।
खट्टर कका बजलाह— हम त बु झै छी जे एही भोजन सँ साँख्यक दर्शनक उत्पत्ति भेल अछि ।
हम चकित होइत पुछलिऐन्हु—ऐं ! दही चूडा चीनीसँ साँख्य दर्शन ! से कोना ?
खट्टर कका बजलाह…एखन कोनो हडबडी त ने छौह ? तखन बैसि जाह । हमर विश्वास अछि कपिल मुनि दही चूडा चीनीक अनुभव पर तीनू गुणक वर्णन कऽ गेल छथि । दही…सत्वकगुण, चूडा…तमोगुण, चीनी…रजोगुण ।
हम कहलियन्हि—खट्टर कका, अहाँक त सभटा कथा अद्भुते होइत अछि । ई हम कतह नहि सुनने छलहुँ ।
खट्टर कका बजलाह— हमर कोन बात एहन होइ अछि ने तों आनठाम सुनि सकबह ?
हम— खट्टर कका, त्रिगुणक अर्थ दही चूडा चीनी, से कोना बहार कैलियैक ?
खट्टर कका—देखह, असल तत्व दहिएमे रहैत छैक, तैं एकर नाम सत्व । चीनी गर्दा होइछ, तैं रज । चूडा रुक्षतम होइछ, तैं तम । देखै छह नहि, अपना देशमे एखन धरि “तमहा” चूडा शब्द प्रचलित अछि ।
हम—आश्चर्य ! एहि दिस हमर ध्यान नहि गेल छल ।
खट्टर कका व्याख्या करैत बजलाह—देखह, तमक अर्थ छैक अन्धकार । तैं छुच्छ चूडा पात पर रहने आँखिक आगाँ अन्हार भऽ जाइ छैक । जखन उज्जर दही ओहि पर पडि जाइ छैक तखन प्रकाशक उदय होइ छैक । तैं सत्व गुण कें प्रकाशक कहल गेलैक अछि । “सत्वं लघु प्रकाशकमिष्टम्” । तैं दही लघुपाकी तथा सभ कैं इष्टओ (प्रियगर) होइत अछि । चूडा कोष्ठघ कैं बान्हि् दैत छैक । तैं तम कैं अवरोधक कहल गेल छैक । और बिना रजोगुणे त क्रियाक प्रवर्तन हो नहि । तैं चीनीक योग बेत्रेक खाली चूडा दही नहि घोंटा सकैत छैक । आब बुझलहक ?
हम कहलिऐन्ह — धन्य छी खट्टर कका । अहाँ जे ने सिद्ध कऽ दी !
खट्टर कका बजलाह—देखह, साँख्यक मतसँ प्रथम विकार होइ छैक महत् वा बुद्धि । दहि चूडा चीनी खैला उत्तर पेटमे फूलि कय पसरैत छैक । यैह महत् अवस्था थिकैक । एहि अवस्थामे गप्प खूब फुरैत छैक । तैं महत् कहू वा बुद्धि…बात एक्के थिकैक । परन्तु एकरा हेतु सत्व गुणक आधिक्य होमक चाही अर्थात दही बेशी होमक चाही ।
हम—अहा ! साँख्य दर्शनक एहन तत्व् दोसर के कहि सकैत अछि ।
खट्टर कका बजलाह—यदि एहिना निमन्त्रण दैत रहह त क्रमशः सभ दर्शनक तत्व वुझा देवौह । त्रिगुणत्मिवका प्रकृति द्रष्टी पुरुष कैं रिझबैत छथि । एकर अर्थ जे ई त्रिगुणत्मवक भोजन भोक्ता पुरुष कैं नचवैत तथि । तैं—नृत्यकन्तिभोजनैर्विप्राः ।
हम कहलियन्हि—परन्तु् खट्टर कका ! पछिमाहा सभ त दही चूडा चीनी पर हँसैत छथि ।
खट्टर कका अङपोछा सँ भाँग छनैत बजलाह—हौ, सातु लिट्टी खैनिहार दधि—चिपटान्न क सौरभ की बुझताह ! पच्छिमक जेहन माटि बज्जर, तेहने अन्न बजरा, तेहने लोको बज्र सन । अपना देहक भूमि सरस, भोजन सरस, लोको सरस । चूडा पृथ्वी तत्वे…दही जल तत्व…चीनी अग्नि तत्व । तैं कफ पित्त वायु—तीनू दोष कैं शमन करबाक सामर्थ्य एहिमे छैक । देखह, अनादि काल सँ दही चूडा चीनीक सेवन करैत—करैत हमरा लोकनिक शोणित ठण्ढा भऽ गेल अछि । तैं मैथिल जाति कैं आइ धरि कहियो युद्ध करैत देखलहक अछि ?
हम— खट्टर कका, कहाँ सँ कहाँ शह चला देलहुँ । बीच—बीचमे तेहन मार्मिक व्यंग्य कऽ दैत छिऐक जे…
खट्टर कका—व्यंग्य नहि, यथार्थे कहैत छिऔह । देखह, भोजने सँ प्रकृति बनैत छैक । चाली माटि खा कऽ माटि भेल रहैत अछि । साँप बसात पीवि कऽ फनकैत अछि । साहेब सभ डवल रोटी खा कऽ फूलल रहैत अछि । मुर्गा खैनिहार मुर्गा जकाँ लडैत अछि । और हम सभ साग—भाँटा खा कऽ साग—भाँटा भेल छी । हमरा लोकनि भक्त (भात)क प्रेमी थिकहुँ, तैं एक दोसरा सँ विभक्त रहैत छी । ताहु पर की त द्विदल (दालि)क योग भेले ताकय ! तखन एक दल भऽ कऽ कोना रहि सकैत छी ?
हम—अहा ! की अलंकारक छटा !
खट्टर कका—केवल अलँकारे नहि, विज्ञानो छैक । कोनो जातिक स्विभाव बुझबाक हो त देखी जे ओकर सभ सँ प्रिय भोजन की थिकैक ? देखह, बँगाली ओ पच्छाँ हीक स्वभावमे की अन्तर छैक ?…जैह भेद रसगुल्ला ओ लड्डुमे छैक । रसगुल्ला‍ सरस ओ कोमल होइछ, लड्डू शुष्क। ओ कठोर । रसगुल्लाल पूर्वक प्रतीक थीक, लड्डू पश्चिामक । तैं हम कहैत छिऔह जे ककरो जातीय चरित्र बुझवाक हो त ओकर प्रधान मधुर देखी ।
हम— खट्टर कका, अपना सभक प्रधान मधुर की थीक ?
खट्टर कका—अपना सभक प्रधान मधुर थीक खाजा । देहातमे मिठाइ कहने ओकरे बोध होइछ । खाजा ने रसगुल्ला जकाँ स्निग्ध होइछ, ने लड्डू जकाँ ठोस । तैं हमरा लोकनिमे ने बँगालीवला स्नेह अछि, ने पंजाबीवला दृढता …तखन खाजामे प्रत्येक परत फराक—फराक रहैत छैक, से अपनो सभमे रहितहि अछि ।
हम—वाह ! ई त चमत्कािरक गप्प कहल ! मौलिक !
खट्टर कका—ऐंठ वा बासि बात हम बजितहिं ने छी ।
हम—वास्तवमे खट्टर कका ! अहाँ ठीक कहै छी । गाम—गाममे गोलैसी, घर—घरमे पट्टीदारी झगडा । कचहरीमे पागे पाग देखाइत अछि । से किऐक ?
खट्टर कका—एकर कारण जे हमरा लोकनि आमिल मरचाइ बेसी खाइत छी । तीख चोख भेले ताकय । तीतोमे कम रुचि नहि । नीम—भाँटा, करैल, पटुआक झोर… हौ, जैह गुण कारणमे हतैक सैह ने कार्यमे प्रकट हैतैक ! कटुता, अम्लता ओ तिक्ताता हमरा लोकनिक अंग बनि गेल अछि । स्वाइत हम सभ अपनामे एतेक कटाउझ करैत छी !
हम—परन्तु बंगाली सभमे एतेक प्रेम किऐक ?
खट्टर कका भाँगमे एक आँजुर चीनी मिलबैत बजलाह—ओ सभ प्रत्येक वस्तु मे मधुरक योग दैत छथि । दालिओ मीठ, तरकारिओ मीठ, माछो मीठ, चटनिओ मीठ ! तखन कोना ने माधुर्य रहतन्हि ? अपनो जातिमे एहिना मीठक व्युवहार होमऽ लागय तखन ने ! तैं हम कहैत छिऔह जे अपना जातिमे जौं सँगठन करबाक हो त मधुरक बेसी प्रचार करह । केवल सभा कैने की हैतौह ? —“भोज ने भात ने, हरहर गीत !“गाम सँ दुगोला दूर करबाक हो त “दही चूडा चीनी लवण कदली लड्डू बरफी”क भोज करह ।
ई कहि खट्टर कका भाङ्गक लोटा उठौलन्हि और दू—चारि बुँद शिवजीक नाम पर छीटि घट्टघट्ट कय सभटा पीबि गेलाह ।
                                                                              
   .                                       स्व. श्री हरिमोहन झा (१९०८-१९८४)
                                                    जन्म १८ सितम्बर १९०८ ई.
                                     पिता- स्वर्गीय पं. जनार्दन झा “जनसीदन”
                                        ग्राम+पो.- कुमर बाजितपुर 
                                      जिला- वैशाली, बिहार
                                                भारत           

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
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सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



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