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जालवृत्तक संगी - साथी |

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

मैथिलि लोकोक्तियाँ


१. बाप के नाम साग पात, बेटा के नाम परोर 
२. देखले दरभंगा, चिन्हले चपरासी 
३. जुरय लाय नै, खाय बतासा 
४. जुड़ै मियाँ के माँड नैय, माँगय मियाँ ताड़ी 
५. साँय बहू में झगड़ा, पंच भेल लबरा
६. बाप के नाम लत्ती फत्ती, बेटा के नाम कदीमा
७. मारि माछ ने, उपछी खत्ता
८. पाइन में माछ, नौ नौ कुटिया बखरा
९. बाप छल पेट में, पूत गेल गया
१०. मूर्खक लाठी, बिच्चे कपार
११. हौर बाहा से खर खाए, बकरी खाए अंचार
१२. मुरखाहा के धन भेल, कबिलाहा ठगि ठगि खाय
१३. भुसकोल विद्यार्थी के गत्ता मोट
१४. पेट में खर नय, सिंग में तेल
१५. चिन्हे न जाने, मौसी मौसी करे
१६. खस्सी के जान जाय, खवैया के स्वादे नैय
१७. कानय के मोन छल त आईंख में गरल खुट्टी
१८. अनकर धान पाबि त अस्सी मन तौलाबी
१९. अन्हार घर साँपे साँप
२०. माय बाप बिसैर गेलौं त बहू भेल फैमिली
२१. पैसा न कौड़ी आ बीच बजार में दौड़ी
२२. हम चराबी दिल्ली दिल्ली आ हमरा चरबय घरक बिल्ली
२३. माय बाप करे कुटान पिसान, बेटा के नाम दुर्गा दत्त
२४. मरय के मोन नै त उइठ उइठ बैठी
२५. अपने खाय लेल, गोइठा बिछय छल
२६. करनी ने धरनी आ सुवर्णी नाम
२७. काइंख तरि अँचार आ देखाबय पोथी के बिचार
२८. जेकर माय मरल तेक्कर पत्ता पर भाते नै
२९. जे भोज नै करे, से दाइल बड्ड पीबे
३०. करनी देखियौन मरनी बेर
३१. मुँह ने कान, बिच्चे में दोकान
३२. खो मंगला परल रह
३३. जेत्ते के बहु नै ओत्ते के लहठी
३४. सरलो भुन्ना रोहू के दुन्ना
३५. अघाएल बगुला के पोठी तीत
३६. नाम बड़का बाबू आ धोती भाड़ा पर
३७. जे सब सौं छोट से उनचास हाथ
३८. मेहनत करे मुर्गी आ अंडा खाय दरोगा
३९. हरबरी के बियाह में कनपट्टी पर सिन्दूर
४०. राम भरोसे हिन्दू होटल
४१. हाथ पाँव में दम नै आ ककरो स कम नै
४२. देह पर नै लत्ता, आ चलय कलकत्ता
४३. बाँध से खड्ढा ऊँच
४४. अलखोसरी के दू टा फोसरी भेल, एक गो फुटि गेल, एक गो टहकै ये
४५. बात मानलौं मुदा खुट्टा गारब बिच्चे में
४६. सब करनी दाई के आ नाम भौजाय के !
४७. झोरीमें किछ नै बज़ारमें धक्का !
४८. सुगा के बजाबि तऽ बज्बे नै करे आ तीसी झन - झन बाजे
४९. जखने कहलक कक्का हउ, तखने बुझलौं खुरपा हेरेलउ
५०. माछक सम्बन्धे कांकौर नाना
५१. बिनु बजायेल कोहबर गेलउँ, कनियाँ माय पूछय … कतय एलौं ?
५२. काम के न काज के आ दुश्मन अनाज के
५३. तोरा सौं खाय कम छियौ आउ बुझय बेसी छियौ
५४. हाथी बिका गेल , अंकुश जोगा क रखने छी
५५. हे रौ हेहरा केहन छें ……. मारि खाई छी, नीके छी
५६. अहि नगरी के इएह व्यवहार , खोलू धरिया उतरु पार
५७. आईंठो खेलहुँ, पेटो नहि भ

५८. सैय्याँ में सैय्याँ एक हमरे और सब लबरे.... !

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

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