गजल
उईर जो रे पंक्षी नील गगन में
ल चल हमरो स्वच्छंद पवन में
जतय नै छैक कोनो सालसिमाना
उडैत रहब स्वच्छंद पवन में
रोईक सकत नै टोईक सकत
जे कियो हमरा स्वच्छंद पवन में
करी बादल गर्जत मेघ पडत
रमन करब स्वच्छंद पवन में
करब दुरक दृश्य अवलोकन
मोन मग्न रहब नील गगन में
विचरण करी हम जनजन में
इच्छा "प्रभात"क मोन उपवन में
................वर्ण:-१३...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
माछक महत्व
हरि हरि ! जनम किऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पलइ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कबइ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खाएब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म किऎ लेल !
हरि हरि.
कर भला तो हो भला अंत भले का भला
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एकता विकास के जननी छैजय मैथिली, जय मिथिला, जय मिथिलांचल (बिहार)
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