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शनिवार, 5 मार्च 2011

बालविधवा@प्रभात राय भात


आहा जे नई भेटतौ त जिनगी रहित हमर उदास !!

सागर पास होइतो में बुझैत नई हमर मोनक प्यास !!

अहि स पूरा भेल हमर जिनगी केर सबटा आस !!

नजैर में रखु की करेजा में राखु अहि छि हमर भगवान !!

उज्जरल पुज्जरल हमर जिनगी में आहा एलौ !!

रंग विरंग क ख़ुशी केर फूल खिलेलौं !!

की हम भेलू अहाक प्रेम पुजारी ,अहा हमर भगवान यौ !!

मुर्झायल फूल छलौ हम ,अहि स खिलल हमर प्रेमक बगिया !!

बालविधवा हम अबोध छलौ ,समाज केर पैरक धुल !!

उठैलौ अहा हमरा करेजा स लगैलौ, बैनगेली हम फूल !!

पतझर छलौ भेल हम,सिच सिच क अहा लौटेलौ हरियाली !!

अनाथ अबला नारी के अपनैलौ आ बनेलौ अपन घरवाली

अहि स यी हमर जिनगी बनल सुन्दर सफल सलोना !!

गोद में हमर सूरज खेलैय,अहा बनलौ बौआक खेलौना !!

हमर उज्जरल पुज्जरल जिनगी में अहा येलौ !!

रंग विरंग क ख़ुशी केर फूल खिलेलौ,ख़ुशी स हमर आँचल भरलौं !!

हमर मन उपवन में अहि बास करैत छि, अहि केर हम पूजित छि !!

रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
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हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



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