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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा


मिथिलामे प्रमुख रुपसँ भगवती (काली आ दुर्गा), शिव (भोलेशंकर), हनुमानजी आ सीता-राम आदिक पूजा होयत अछि । एहि ठाम दुर्गापूजा, काली पूजा, सरस्वती पूजा, कृष्णाष्मीमे कृष्णपूजा , विश्‍वकर्मा पूजा, चित्रगुप्त पूजा आ शनिवार केँ शनिदेवक पूजा होयत अछि । ओना मिथिलाक महिला लोकनि पुरुषक तुलनामे बेसी भक्‍तिभाववला मानल जाइत अछि ताहि लेल ओ सप्ताहक सभ दिन कोनो ने कोनो व्रत आ त्योहार मनबैत रहैत छथि । एकर अतिरिक्‍त सभ घरमे अपन पैतृक देवता (गोसाउनि) फराक होयत छथि । सभ पर्व त्योहारक दौरान देवताक पूजा निष्ठापूर्वक कयल जायत अछि । मिथिलाक गामीण क्षेत्रमे भगवतीक सात पिण्डक स्वरुपकेँ सेहो धूमधाम सँ पूजा कयल जायत अछि । मिथिलाक वर्ग विशेषमे (अनुसूचित समाज ) राजा सलहेस, ब्रह्मबाबा, बाल्मीकि, आल्हा रुदलक पूजा अर्चना गीतनादक संग प्रफुल्लित मोनसँ कयल जायत अछि ।

दीपावली मे गणेश, लक्ष्मी आ छठि पावनि मे सूर्यक पूजा, चौठचन्द मे चन्द्रमाक पूजा हरितालिका पूजा, जिमूतवाहन पूजा, जितिया, वटसावित्री पूजा, दिनकरक, आशा माइक, तीज, बिषहरा पूजा, अनंत पूजा, घड़ी पावनिक विशेष महत्ता अछि । प्राचीन युगसँ मिथिलामे वृक्ष पूजाक विशेष महत्व अछि । उदाहरणस्वरुपे वृहस्पतिवारके केराक गाछक पूजा, शनिवारकॆँ पीपरक गाछक, वटसावित्री पूजाक अवसर पर बड़ गाछक पूजा कयल जायत अछि । सभ पूजाक लेल दूभि (हरियर घास) आ तुलसीपात (तुलसीदल) अवश्‍य देल जायत अछि। भोलेनाथ के मनेबाक लेल बेलपत्र या दुर्गाजीके न्योता देबाक लेल बेल्नोती-बेलतोड़ीक प्रथा अछि ।

मिथिलामे कोनो शुभ कार्यक प्रारंभमे सत्यनारायण पूजा आ गणेश-लक्ष्मीक पूजा कयल जायत अछि। मिथिलाक नारी समाज गौरी (भोलेनाथक पत्‍नी पार्वती) आ हुनक बसहा (बड़द) केर पूजा मोन सँ करैत छथि । दुर्गा पूजाक अवसर पर कुमारि कन्याक भोजन आ पूजन के सेहो प्रथा अछि ।

दुर्गा पूजा आ कालीपूजाक अवसर पर किछु लोकनि तांत्रिक आराधना अपन अभीष्ट सिद्धिक लेल सेहो करैत छथि । मिथिलामे राम सँ बेसी हनुमान आ सीताक आराधना द्रष्टव्य अछि । मिथिलाक वृद्ध लोकनि भोलेनाथक नचारी आ पराती गबैत छथि । आराध्यदेव पर जल आ दूध देबाक प्रथा अछि । मिथिलामे पूजाक पूर्णता विधि-विधान सँ कयलाक उपरान्त मंत्र जाप गीतनाद आ आरतीक अतिरिक्‍त शंखनाद सँ होयत अछि । प्रत्येक पूर्णिमा आ ग्रहणक उपरांत गंगास्नान वा नदी स्नानक परंपरा अछि । नेना सभऽक यज्ञोपवीत, मुंडन वा विवाहक दौरान सेहो आराध्यदेवक पूजा अर्चना अभीष्ट होयत अछि । संक्षेपमे कहल जाय तँ एहि ठामक संपूर्ण विधि विधान वैदिक मान्यतासँ युक्‍त अछि । सीताक कृपासँ मिथिला कृतकृत्य भऽ गेल । मिथिलाक अधिष्ठात्री महादेवी भगवती चामुण्डा छथि ।

मूलाधार चक्र भेदन चण्ड वध थिक । मिथिलाक मध्यमे लक्ष्मणा प्रवाहमती छथि तथा एहि लक्ष्मणा तट निवासिनी भगवती चामुण्डा नील सरस्वती रुपा छथि जनिक आराधना प्रमुखत: निशीथर्म, संध्या द्वारा कयल जायत अछि । मिथिलाक आध्यात्मिक साधना आ आराध्यदेव पर शोध सेहो भऽ रहल अछि । एतय शैव आ शाक्‍त परंपरामे फराक मान्यता अछि । निरामिष व्यक्‍ति कंठी धारण करैत छथि आ बेसी लोकनि लेल लहसुन - प्याज वर्जित अछि ।

॥ द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा॥

॥ शिव पुराण सँ उद्धृत ॥


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति :-

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्‌।

उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम्‌ ॥1॥

परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्‌।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥

वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।

हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥

एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।

सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥

॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम्‌ ॥











() श्री सोमनाथ:- गुजरात प्रान्तक काठियावाड़ मे समुद्रक तट पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा शिव पुराण मे एहि तरहे सँ वर्णित अछि :-

दक्ष प्रजापति केर ‘कन्या छलनि । हुनका सभक विवाह चन्द्रमाक संग कयने छलथिन्ह । परन्तु चन्द्रमा मात्र रोहिणीक अलावा किनको सँ अनुराग व सम्मान नहि करथिन्ह । एहि सँ क्रोधित भऽ प्रजापति दक्ष चन्द्रमा कें क्षय होयबाक शाप दए देलथिन्ह । एहि सँ चन्द्रमाक कान्ति तत्काल क्षीण भऽ गेलनि । ओ अपन श्राप सँ विमुक्‍ति हेबाक लेल ऋषि आओर देवता के संग कए ब्रह्मा जीक ओहिठाम गेला । ब्रह्माजी शाप विमोचन के लेल प्रभास क्षेत्र मे जाए कऽ भगवान शिवक आराधना करबा लेल कहलथिन्ह । ओ कठिन तपस्या करैत १० करोड़ मृत्युंजय मंत्रक सेहो जाप कएलनि । एहि पर भगवान शिव प्रसन्‍न भऽ अमर रहबाक वरदान दए शाप सँ मुक्‍ति होयबाक विषय मे कहलथिन :- जे अहाँ कृष्ण पक्ष मे एक-एक अंश क्षीण होइत जाएत और शुक्ल पक्ष मे ओहि तरहें एक-एक अंश बढ़ैत पुर्णिमा कऽ पूर्ण रूप प्राप्त होएत । आओर प्रजापति दक्षक वचनक रक्षा सेहो भए जेतनि । शाप सँ मुक्‍ति भेलाक पश्‍चात्‌ चन्द्रमा आओर सब देवता लोकनि भगवान शिव के माता पार्वती कें साथ सभ प्राणीक उद्धारार्थ एतय रहबाक प्रार्थना कएलनि । भगवान शिव प्रार्थना कें स्वीकार कऽ ज्योतिर्लिंग के रूप में माँ पार्वती के साथ ओहि दिन सँ एतय रहय लगलाह ।










() श्री मल्लिकार्जुन :-

आंध्रप्रदेश मे कृष्णा नदीक तटपर श्री शैलपर्वत स्थित ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि ।

भगवान शिवक दुनू पुत्र श्री गणेश आओर श्री कार्तिकेय मे सँ किनक विवाह सर्वप्रथम करायल जाय, एहि तरहक समस्याक समाधान हेतु शिवजी दुनू बालक कें पृथ्वीक परिक्रमाक आदेश दए कहलथिन्ह जे पहिने परिक्रमा कय आबि जायब तिनक विवाह सर्वप्रथम कराओल जाएत । श्री कार्तिकेय एहि बात कें सुनिते मयूर पर सवार भय पृथ्वीक परिक्रमा के लेल विदा भऽ गेलाह । श्री गणेश जी सोचय लगलाह जे हुनका मयूर सवारी छनि आ यथा शीघ्र परिक्रमा कय लेताह परन्तु हमरा मूसक सवारी अछि हमरा सँ पृथ्वी परिक्रमा असंभव अछि तथापि बुद्धि विवेकक सहारा लय अपन माता पिताक शरीर मे अखण्ड ब्रह्माण्ड कें समाहित देखि ओ हुनकहि प्रदक्षिणा कऽ हाथ जोड़ि माता पिताक सन्मुख ठाढ़ भय गेलाह । माता-पिता हुनक बुद्धि विवेक देखि हुनक वियाह सिद्धि आओर बुद्धि के साथ करबा देलनि । ओहि मे क्षेम तथा लाभ नामक दु पुत्र भेलनि । जखन कार्तिकेय पृथ्वीक परिक्रमा कऽ भगवान शंकर तथा पार्वतीक पास अयलाह तावत धरि श्री गणेश जीक विवाह भऽ गेल रहनि तथा दू पुत्रक प्राप्ति सेहो भऽ गेल छलनि ।


ई सभ बात देखि कार्तिकेय क्रोधित भय क्रौंच नामक पर्वत पर चलि गेलाह । माता पार्वती रुष्ट पुत्र के वापस लाबय लेल ओहि स्थान पर पहुँचलथि । पाछाँ सँ भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भऽ गेलाह, ताहि दिन सँ मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम सँ प्रख्यात भेलाह । एहि लिंगक पूजा अर्चना सर्वप्रथम मल्लिका पुष्प सँ कएल गेल छल ताहि हेतु मल्लिकार्जुन नाम सँ प्रसिद्ध छथि ।




() महाकालेश्वर :- मध्यप्रदेशक उज्जैन नगर मे अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि प्रकार सँ अछि:-

प्राचीन काल मे उज्जयिनी मे राजा चन्द्रसेन राज्य करैत छलाह । ओ परम शिव भक्‍त छलाह ।


राजाक शिव भक्‍ति सँ प्रभावित भऽ कऽ एक पाँच वर्षक ग्वालाक लड़का शिव भक्‍ति मे निमग्न भऽ गेल । भक्‍ति मे मगन ओ बालक खेनाई के सेहो बिसरि गेल छल । एहि पर कुपित भऽ माय ओहि शिव लिंग रूपी पत्थर के फेकि देलकनि । बालक भगवान शिव के नाम बजैत बेहोश भऽ खसि परल । किछु समय बाद होश एलाक बाद ओ सामने बहुत सुन्दर आओर बहुत विशाल सुवर्ण रत्‍न सँ जटित मन्दिर देखलनि । मन्दिर के भीतर प्रकाश पूर्ण, भास्वर तेजस्वी ज्योतिर्लिंग स्थापित छल। ताहि दिन सँ एहि ज्योतिर्लिंगक पूजा शुरू भेल। उज्जयिनी नाम सँ विख्यात ई नगर भारतक परम पवित्र सप्तपुरी मे एक अछि ।




(४) ॥श्री ओंकारेश्‍वर, श्री अमलेश्‍वर ॥

मध्यप्रदेशक पवित्र नर्मदा नदीक तटपर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि :-

प्राचीन समय मे महाराज मांधाता एकटा पर्वत पर बैसि तपस्या सँ भगवान शिव के प्रसन्‍न केने छलाह, एहि सँ इ पर्वत मांधाताक नाम सँ विख्यात भेल । भगवान शिव ज्योतिर्लिंगक रूप मे एहि स्थान पर प्रकट भेलाह ताहि हेतु सम्पूर्ण मांधाता पहाड़ कें शिव के रूप मानल जाइत अछि । एहि ओंकारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग कें दू रूप छनि, एहि के वर्णन निम्नलिखित अछि :- विंध्य पर्वत भगवान शिवक आराधना कयलनि। ओ प्रकट भऽ मनोवांछित वरदान देलथिन्ह । एहि अवसर पर आयल मुनि लोकनिक आग्रह पर अपन ओंकारेश्‍वर नामक लिंग के दू भाग मे कऽ देलनि । एक के नाम ओंकारेश्‍वर तथा दोसर के नाम अमलेश्‍वर भेलनि । दुनू लिंगक स्थान आओर मन्दिर अलग-अलग रहलौ पर दुनूक सत्ता-स्वरूप एक अछि ।



() श्री केदारनाथ :- उत्तराखण्ड प्रदेशक केदार नामक पर्वत पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे वर्णित एहि प्रकार सँ अछि :-

हिमालयक केदार नामक अत्यन्त शोभाशाली शिखर पर महा तपस्वी श्रीनर आओर नारायण भगवान शिव कें प्रसन्‍नता हेतु कठिन तपस्या कयलनि । तपस्या सँ खुश भऽ भगवान शिव प्रकट भऽ वर मांगय लेल कहलथिन्ह । श्रीनर आओर नारायण शिव सँ याचना कएलनि जे अपन भक्‍तक कल्याण के लेल सभ दिन एहि ठाम अपन स्वरूप कें स्थापित करबाक कृपा कयल जाय । मुनिक प्रार्थना सुनि भगवान शिव ज्योतिर्लिंगक रूप मे एहि स्थान पर रहब स्वीकार कयलनि । केदार नामक हिमालय शिखर पर अवस्थित होयबाक कारणे इ ज्योतिर्लिंग केदारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग के नाम सँ प्रसिद्ध अछि ।


() श्री भीमेश्वर :- इ ज्योतिर्लिंग के बारे मै किछु बिवाद अछि शिवपुराण के कथा अनुसार श्री भीमेश्‍वर असम प्रदेशक गोहाटी के नजदीक ब्रह्मपुत्र पहाड़ पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे निम्न लिखित अछि :-


प्राचीन समय मे भीम नामक एक महाप्रतापी राक्षस छल। ओ कठिन तपस्या कऽ ब्रह्माजी सँ त्रिलोक विजयी हेबाक वरदान प्राप्त कयलनि । त्रिलोक विजयी भीम कामरूपक परम शिव भक्‍त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण कऽ हुनका बन्दी बना कारावास दऽ देलनि । राजा ओहि समय मे पार्थिव शिवलिंगक पूजा करैत छलाह । हुनका एहि तरहें पूजा करैत देखि क्रोधित भऽ भीम अपन तलवार सँ ओहि पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार कऽ देलनि । तत्काल भगवान शिव प्रकट भऽ हुँकार मात्र सँ ओहि राक्षस केँ भस्म कऽ देलनि आओर सुदक्षिण व ऋषि मुनि सभ कें प्रार्थना स्वीकार कऽ भगवान शिव सभ दिन के लेल ज्योतिर्लिंग के रूप मे वास करए लगलाह । हुनक ओ ज्योतिर्लिंग भीमेश्‍वर नाम सँ विख्यात भेल ।

किछु लोग के कथन अनुसार मुंबई स पूरब और पूना स उत्तर मै भीमा नदी के किनार मै स्थित अछि ,

इ स्थान नासिक स लगभग १२० मिल दूर एकटा डाकिनी नाम के शिखर पर स्थित अछि। इहो ओ ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर नाम सँ विख्यात भेल । नैनीताल जिला के उज्जनक नामक स्थान मै एकटा शिवमंदिर अछि, हुनक ओ ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर नाम सँ विख्यात भेल ।




() श्री विश्वेश्वर :- उत्तर प्रदेशक प्रसिद्ध काशी मे स्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि प्रकारक अछि-

भगवान शंकर पार्वती विवाह कऽ कैलाश पर्वत पर निवास करैत छलीह । परन्तु पिताक घर विवाहित जीवन बितेनाई बढ़ियाँ नहि बुझना गेलनि । एक दिन ओ भगवान शिव सँ कहलथिन कि आब अपना घर पर चलू । एहि ठाम रहनाइ हमरा बढ़िया नहि बुझना जाइत अछि । सब लड़की विवाह भेलाक बाद अपना पतिक घर जाइत अछि । परन्तु हमरा पिताक घर रहय पड़ैत अछि । भगवान शिव माता पार्वती कें साथ लऽ अपन पवित्र नगर काशी आबि गेलाह । ओतय ओ विश्‍वेश्‍वर ज्योतिर्लिंगके रूप मे स्थापित भऽ गेलाह । मत्स्यपुराण मे एहि नगरीक महत्व कहल गेल अछी जे ध्यान आओर ज्ञान रहित तथा दुःख सँ पीड़ित मनुष्य के लेल काशियेटा परमगतिक स्थान अछि । श्री विशेश्‍वर के आनन्द वन मे दशाश्‍वमेघ, लोलार्क, विन्दुमाधव, केशव आओर मणिकर्णिका ई पाँच प्रधान तीर्थ स्थली अछि, ताहि हेतु एहि स्थान केँ अविमुक्त क्षेत्र कहल जाइत अछि ।


() श्री त्र्यम्बकेश्वर :- महाराष्ट्र प्रान्तक नासिक लग अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे एहि तरहक अछि :-

ब्राह्मण सभ श्री गणेश जी कें संग मीलि महर्षि गौतम जी पर छल सँ गोहत्याक दोष लगेलनि । महर्षि जी कें चारू दिस सँ बहिष्कृत कऽ देल गेलनि । ई देखि ओ भगवान शिव के कठोर तपस्या सँ प्रसन्‍न कऽ गोहत्याक पाप सँ मुक्‍ति होयबाक रास्ता जानय चाहलनि । भगवान शिव प्रकट भऽ कहलथिन्ह :- हे गौतम अहाँ सदैव सर्वथा निष्पाप छी । अहाँक ऊपर गोहत्याक पाप छलपूर्वक लगाओल गेल अछि । छलपूर्वक एहि तरहें करय वला ब्राह्मण अहाँक आश्रम मे छथि । हुनका सभ के हम दण्ड देबय चाहैत छी । गौतम जी उत्तर देलथि = हे प्रभू! एहि ब्राह्मण सभक निमित्तें अपने हमरा दर्शन देल ताहि हेतु एहि सँ हमर परम हित समझि कऽ हुनका लोकनि कें क्षमा कयल जाय। ऋषि-मुनि, देवता गण ओतय एकत्र भऽ गौतम जीक बात के अनुमोदन कयलनि तथा भगवान शिव कें सब दिन के लेल ओहिठाम निवास करय लेल प्रार्थना कयलन्हि । भगवान शिव हुनका लोकनिक प्रार्थना सुनि श्री त्र्यम्बकेश्‍वर ज्योतिर्लिंगक नाम सँ स्थित भऽ गेलाह । गौतम द्वारा आनल गेल गंगा एहि ठाम गोदावरी नाम सँ प्रवाहित होमय लागल ।

() श्री वैद्यनाथ :- झारखण्ड राज्य के संथाल परगना मे अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि प्रकार सँ अछि :-

राक्षस राजा रावण कठोर तपस्या कऽ भगवान शिव कें शिवलिंग रूप मे लंका मे अवस्थित होयबाक वरदान मंगलनि । भगवान शिव जी वरदान दैत कहलखिन जे अहाँ शिवलिंग लऽ जा सकैत छी, परन्तु एहि लिंग के रास्ता मे कतहु पृथ्वी पर राखब तऽ ओ अचल भऽ जायत आ अहाँ पुनः उठाकय नहि लऽ जा सकैत छी । रावण शिवलिंग उठा कऽ लंका विदा भेला कि किछु दूर गेलाक बाद हुनका लघुशंका करबाक इच्छा भेलनि । ओ शिवलिंग के एक बालक के हाथ मे दऽ लघुशंका के लेल गेलाह । रावण के अबय मे देरी देखि बालक ओहि लिंग के पृथ्वी पर राखि देलनि । ओ लघुशंका सँ निवृत्त भऽ शिवलिंग के उठावय के लेल बहुत प्रयत्‍न कयलनि परन्तु शिवलिंग नहि उठि सकलनि । अन्त मे हारि कय ओ एहि पवित्र शिवलिंग पर अंगुठाक निशान बना कऽ वापस लंका चलि गेलाह । बहुत दिनक बाद ओहि जंगल मे वैदू नामक गोप गाय चरबैत ओहि स्थान पर शिवलिंग देखि साफ सुथरा स्थान कऽ प्रथम पूजा कयलनि आ तें ओ ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ नाम सँ प्रख्यात छथि ।

(१०) श्री नागेश्वर :- गुजरातक द्वारिकापुरीक समीप अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा एहि तरह सँ वर्णित अछि:-

प्राचीन समय मे सुप्रिय नामक एक बड़ धर्मात्मा आओर सदाचारी वैश्य़ छलाह । भगवान शिवक भक्‍त होयबाक कारणें दुष्ट राक्षस दारूक सुप्रिय आओर हुनक सहयोगी सभ कें कारावास मे राखि यातना देबय लगलाह । शिवक आराधना मे तल्लीन सुप्रिय कें मृत्यु दण्डक आदेश भेल । भगवान शिव प्रकट भऽ दर्शन दऽ हुनका अपन पासुपत अस्त्र प्रदान कयलनि, जाहि सँ सुप्रिय दारूक एवं हुनक सहयोगी सब कें वध कयलनि । भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भेल छलाह आ सुप्रियक आग्रह पर ओहि स्थान पर श्री नागेश्‍वर नाथ नाम सँ प्रख्यात भेलाह ।



(११) श्री सेतुबन्ध रामेश्वर :- तमिलनाडुक हिन्दमहासागर तट पर अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा निम्न प्रकारक अछि :-

जखन भगवान श्री रामचन्द्रजी लंका पर चढ़ाई करबा लेल जा रहल छलाह ताहि समय ओ एहि समुद्रक तट पर बालू सँ शिवलिंग बनाकऽ हुनक पूजन कएने छलाह, पूजा सँ प्रसन्‍न भऽ भगवान शिव रावण पर विजय प्राप्त करबाक वरदान देने छलथिन्ह । श्री राम के अनुरोध पर भगवान शिव लोक कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग कें रूप मे ओहि स्थान पर निवास करबाक प्रार्थना स्वीकार कऽ लेलनि। ताहि दिन सँ ई ज्योतिर्लिंग एहि स्थान पर रामेश्वरक नाम सँ विराजमान छथि ।




(१२) श्री घुश्मेश्वर :- महाराष्ट्रक वेरूल गाँवक पास अवस्थित एहि ज्योतिर्लिंगक कथा पुराण मे निम्न प्रकार सँ अछि-

प्राचीन समय मे देवगिरि पर्वत के समीप सुधर्मा नामक एक अत्यन्त तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहैत छलाह । हुनक पत्‍नीक नाम सुदेहा छलनि । सन्तान नहि होमय के कारण सुदेहा सुधर्माक विवाह अपन छोट बहीन घुश्मा सँ करा देलथिन । शिव भक्‍त घुश्मा एक पुत्र के जन्म देलनि । किछु वर्षक बाद सुदेहा कें घुश्मा सँ ईर्ष्या होबय लगलनि । ओ घुश्माक जवान पुत्र के मारि कें पोखरि मे फेकि देलनि । एहि बात पर घर मे कोहराम मचि गेल । लेकिन घुश्मा प्रतिदिन जेना शिवक पूजा-अर्चना मे लीन रहथि । एहि सँ प्रसन्‍न भगवान शिव मारि देल गेल पुत्र के पुनः जीवन दान दऽ इच्छित वरदान माँगय के लेल कहलथिन्ह । घुश्मा कहलथिन्ह - ज्येष्ठ बहीन सुदेहा के माफ कऽ देल जाए आओर लोकक कल्याणक लेल अपने सदा सर्वदा के लेल एहि स्थान पर निवास कयल जाय । भगवान शिव हुनक दुनू बात के मानि ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रकट भऽ ओहि स्थान पर निवास करय लगलाह । सती शिवभक्‍त घुश्माक आराध्य देव होयबाक कारण ओ एहि स्थान पर घुश्मेश्‍वर महादेव के नाम सँ विख्यात भेलाह ।

॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंगक कथा ॥

जय मैथिली, जय मिथिला, जय मिथिलांचल (बिहार)

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

चालीसा संग्रह

श्री हनुमान चालीसा
Shri Hanuman Chalisa


श्री लक्ष्मी चालीसा
Shri Laxmi Chalisa


श्री शिव चालीसा
Shri Shiv Chalisa


श्री शनि चालीसा
Shri Shani Chalisa


श्री कृष्ण चालीसा
Shri Krishna Chalisa


श्री दुर्गा चालीसा
Shri Durga Chalisa


श्री गणेश चालीसा
Shri Ganesh Chalisa


श्री सरस्वती चालीसा
Shri Saraswati Chalisa

श्री सरस्वती चालीसा

श्री सरस्वती चालीसा

श्री सरस्वती चालीसा
॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥
तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।केव कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता।तेहि न धरई चित माता॥
राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधुकैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी।सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा।क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे।कानन में घेरे मृग नाहे॥
सागर मध्य पोत के भंजे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥
करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा।बंदी पाश दूर हो सारा॥
रामसागर बाँधि हेतु भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी॥
॥दोहा मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

श्री गणेश चालीसा

श्री गणेश चालीसा

श्री गणेश चालीसा
॥दोहा॥ जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥
॥दोहा॥श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥

श्री दुर्गा चालीसा

श्री दुर्गा चालीसा

श्री दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन र जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

श्री कृष्ण चालीसा

श्री कृष्ण चालीसा

श्री कृष्ण चालीसा
॥दोहा॥ बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नटनागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुँघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥ कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्यो। कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥
मातपिता की बन्दि छुड़ाई ।उग्रसेन कहँ राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहँ मारा॥
असुर बकासुर आदिक मार्यो। भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा के दुःख टार्यो। तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के साग विदुर घर माँगे।दर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हाँके।लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा साँप पिटारी।शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥
सुन्दरदास आ उर धारी।दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
दोहा यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

श्री शनि चालीसा

श्री शनि चालीसा

श्री शनि चालीसा
॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
॥दोहा॥ पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

श्री शिव चालीसा

श्री शिव चालीसा

श्री शिव चालीसा Shivji Chalisa
।।दोहा।। श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥ नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

श्री लक्ष्मी चालीसा

श्री लक्ष्मी चालीसा

श्री लक्ष्मी चालीसा Lakshmi Chalisa
॥ दोहा॥ मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥ यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥ सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
॥ दोहा॥त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा
।।दोहा।। श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार |
बरनौ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ||
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर |
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ||
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी |
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा ||
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे |
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन ||
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर |
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया ||
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा |
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे ||
लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये |
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें |
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ||
जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते |
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना |
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु ||
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं |
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे |
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना ||
आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे |
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें ||
नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा |
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें ||
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा |
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे ||
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा |
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ||
तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें |
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ||
और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई |
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा ||
जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं |
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई ||
जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा |
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ||
।।दोहा।। पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

~~~* बहुत महत्त्व अछि *~~~


( जिंदगी मेs सभ चीजक सदिखन बहुत महत्व होइत अछि ! चाहे मानव हुअए या कुनू दानव या स्वर्गक भगवान ! ओही शब्द s याद कराबय लेल हम आइ दरभंगावाला (मैथिली ब्लॉग) पर "बहुत महत्वक जे अछि, से" एकगोट छोट सन् शब्द कोस डिक्सनरी लऽsकऽs पाठकगण के समक्ष उपस्थित छी ! )



~~~* बहुत महत्त्व अछि *~~~

दरभंगा के आम मुधुबनी के मखान और मिथिला सम्मान के बहुत महत्व अछि .....
फल मेs आम के, नशा मेs भांग के, भगवान मेs श्री राम के, बहुत महत्व अछि ..
तरकारी मेs आलू के, नाच मेs भालू के, मंत्री मेs लालू के, बहुत महत्व अछि ......

विषय मे, इतिहास के, ज्ञान मेs वेदव्यास के, मूर्ख म्मेs काली दास के, बहुत महत्व अछि ....

जेल मेs सिपाही के, सड़क पर राही के, कोट मेs गवाही के, बहुत महत्व अछि ......

शहर मेs लंदन के, मस्तक पर चंदन के, पर्व मेs रक्षाबंधन के, बहुत महत्व अछि .....
 
कपरा मै सिलाई के बिस्तर मै रजाई के और घर मै भौजाई के बहुत महत्व अछि .....
बिहार मेs कुर्ता के, पान मेs जर्दा के, समसान मेs मुर्दा के, बहुत महत्व अछि ....

लाइफ मेs टेंसन के, वृद्धावस्था मे पेंसन के, ऑफिस मेs सेक्शन के, बहुत महत्व अछि .....

आदमीक बोल के, भोजन मेs ओल के, गाँव मेs बिचलाटोल  के, बहुत महत्व अछि .....
राती मै भोर के स्त्री मै गोर के महफ़िल मै शोर के बहुत महत्व अछि .....
घर मेs टीवी के, मेला मेs बीवी के, मिठाई मेs जिलेवी के, बहुत महत्व अछि .....

रांची मेs मेन्टल के, डॉक्टर मेs डेन्टल के, आदमी मेs जेन्टल के, बहुत महत्व अछि ....

सहर मेs नाली के, झगरा मेs गाली के, ससुराल मेs साली के, बहुत महत्व अछि ...

जार मेs हिट के, गाड़ी मेs सिट के, भोजन मेs मिट के, बहुत महत्व अछि ....

साड़ी मेs कोटा के, पानि पिबय मेs लोटा के, स्कूल मेs सोटा के, बहुत महत्व अछि ....

नाचैय मेs मोर के,मेला  मेs शोर  के, समय मेs भोर के, बहुत महत्व अछि ....

भोजन मेs दाँत के, गहूम पिसय मेs जाँत के, पूजा-पाठ मेs भोले नाथ के, बहुत महत्व अछि...

अनाज राखै मेs कोठी के, माछ मेs पोठी के, पेटख़राब मेs गोटी के, बहुत महत्व अछि ....

प्रेमिका मेs राधा के, नारी मेs सीता के, सभ ग्रन्थ मेs गीता के, बहुत महत्व अछि .....
नदी मेs गंगा के, स्वर्ग मेs रम्भा के, हिरोईन मेs प्रियंका के, बहुत महत्व अछि .....

दही मेs लेषन के, पंच्चर मेs सुलेषन के, लड्डू मेs बेषन के, बहुत महत्व अछि .....

सड़क पर धुल के, झंझारपुर मेs पुल के, बगान मेs फूल के, बहुत महत्व अछि .....

पाँव मेs जूता के, गेट पर कुत्ता के, भाषण मेs नेता के, बहुत महत्व अछि .....

गाँव मेs हाट के, चौपाल मेs खाट के, सफाई मेs धोबी घाट के, बहुत महत्व अछि ....

नवी मुंबई  मेs सेक्टर के, फिल्म मेs एक्टर के, गाँव मेs टेक्टर के, बहुत महत्व अछि ....

व्यापार मेs मंदी के, जेबर मेs चांदी के, भारत मेs महात्मा गाँधी के, बहुत महत्व अछि .....

सुइया दै मेs सिरिंच के, बच्चा मेs प्रिन्स के, पेंट मेs जिन्स के, बहुत महत्व अछि .....

सेंसेक्स मेs रेटिंग के, मिथिला मेs पेंटिंग के, फिल्म मेs एक्टिंग के, बहुत महत्व अछि ....

घर मेs सरभेंट के, महिला मेs प्रगनेन्ट के, मुंबई  मेs गर्लफ्रेंड के, बहुत महत्व अछि .....

बन्दूक मेs गोली के, पूजा मेs रोली के, कमिटी मेs बोली के, बहुत महत्व अछि .....
गाछ मेs नीम के, संगीत मेs नादिम के, कसाई मेs जालिम के, बहुत महत्व अछि .....
नाली मै चाली के कान मै बाली के दुध मै छाली के बहुत महत्व अछि .....
मुम्बई मेs सेठ के, दिल्ली मेs इंडिया गेट के, शरीर मेs पेट के, बहुत महत्व अछि .....

फौजी मेs बर्दी के, सिलाई मेs दर्जी के, हस्ताक्षर मेs फर्जी के, बहुत महत्व अछि ......

पितरपक्ष मेs तर्पण के,मूह देखै मेs दर्पण के,जीवन मेs आत्मसमर्पण के बहुत महत्व अछि....
दीवाली मेs गिप्ट के, नौकरी मेs सिप्ट के, बिल्डिंग मेs लिप्ट के, बहुत महत्व अछि .....
बारीष मेs बरसाती के, पूजा मेs आरती के, विवाह मेs बरयाती के, बहुत महत्व अछि .....

केश मेs सेम्पू के, सर्कश मेs तम्बू के, अमिताभ बच्चनक लम्बू मेs बहुत महत्व अछि ....
बाग़ मै माली के गाल मै लाली के ससुराल मै साली के बहुत महत्व अछि .....
कथा मेs समाप्त के, सामान मेs पर्याप्त के, कवि में विस्वविखायत के , बहुत महत्व अछि ..........


जय मैथिली, जय मिथिला, जय मिथिलांचल (बिहार)

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

मिथिला मे बौद्ध तत्व

मिथिला मे बौद्ध तत्व


डॉ० प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’

प्राचीन बौद्ध साहित्यक अनुसार बुद्ध जीवन काल (ई० पू० छठम शताब्दी) मे विदेह एकटा समृद्ध राष्ट्र एवं मिथिला एकटा विकसित राजधानी नगर छल । जातक साहित्यक अनुसार विदेह तीस सय योजन एवं मिथिला सात योजन (वर्ग) मे विस्तृत छल । ओ देशक बीसटा प्रमुख नगरमे परिगणित छल । सभटा नगर व्यापारिक कारणे एक दोसरा संग उन्‍नत मार्ग सँ सूत्रबद्ध छल । मुदा आइ ओ राष्ट्र (राज्यक अर्थमे) हिमालयक पाद प्रदेश मे गण्डकी, गंगा ओ कोशीक बीच सिमटि कए एकटा सांस्कृतिक जनपद मिथिलांचलक रूपें अवशिष्ट अछि । शाक्य वंशक राजकुमार सिद्धार्थ एहि भूभाग बाटे अरेराज (अलारकालम) होइत राजगृह सेनानीग्राम (बोधगया क्षेत्र) ज्ञानक खोज मे अभिनिषिक्रमित भेल छलाह । ज्ञान प्राप्तिक बाद ओ कैक बेर गंगा पार कए वैशाली एवं चारिका क्रमे मिथिलाक भूमि स्पर्श कयने छलाह ।

जातक कथा यद्यपि गौतम बुद्धक पूर्वजन्मक कथा थिक मुदा हुनक जीवनकाल भारतीय जीवनक एकटा सर्वांगीण दृश्य उपस्थित करैत अछि । राजनीति, धर्म, अर्थव्यवस्था, व्यापार, कला, संस्कृति आदिक संदर्भे बहुत किछु ओहिमे उपलभ्य अछि । जातक कथाक माध्यमे बुद्ध सर्वप्रथम अपना केँ ओहि भूभागक कोनो उन्‍नत राजवंश सँ जोड़ि हुनक चारित्रिक वैशिष्ट्‍य संग धर्मोपदेश करैत छलाह । मखादेव जातकक अनुसारें बुद्ध पूर्वजन्म मे मिथिलाक मखादेव राजा छलाह । मखादेव राजाक आम्रवन नगरक सीमा सँ बाहर छल । ओहि मखादेव काननक पहिचान केसरिया मे संभावित कयल गेल अछि, जाहिठाम विश्‍वक सब सँ पैघ स्तूप (१०४ फीट) उत्खनित भेल अछि । तहिना विलीनक जातक मे हुनका निमि राजाक रूप मे क्षत्रिय राजकुल मे जन्म लेबाक उल्लेख प्राप्त होइछ । मिथिला मे बोधिसत्व एक-दू बेरक जन्म सँ संतुष्ट नहि भए अनेक जन्म ग्रहण करैत छथि । निमि जातक मे मिथिला कें केन्द्र मानि सद्धर्मक सम्पूर्णता मे व्याख्या कयल गेल अछि । मिथिला मे कखनो ओ इन्द्रक रूप मे (महापण्णाद जातक), कखनो राजपुत्रक रूप मे (महाजनक जातक), तँ कखनो ओ मिथिलाक श्रीवर्धन सेठक भार्याक कोखि सँ जन्म लैत (महाउम्मग जातक) छथि ।

बौद्धजातक कथाक सर्वेक्षणात्मक अध्ययन सँ निम्नलिखित ऐतिहासिक तथ्य सभक प्राप्ति होइछ-मिथिला एकटा सुख सम्पन्‍न, विशाल ओ विकसित नगर राज्य छल । नगरक चारू द्वार पर यवमज्झक (वाणिज्य-व्यवसाय केन्द्र) छल । आखेट प्रधान वन्य संस्कृति सँ कृषि संस्कृति दिस संक्रमणक स्थिति बनि गेल छल । बौद्ध साहित्य मे आपणनिगमक उल्लेख भेटैत अछि । ‘महावग्ग’ ओ ‘मज्झिमनिकायक’ अंतःसाक्ष्यक अनुसार बुद्ध कैक बेर अंगुत्तरापक भ्रमण कयने छलाह । ओ अंग देशक भद्दिया सँ आपणनिगम आयल छलाह । आपण ब्राह्मण लोकनिक सघन क्षेत्र छल । पोत्रलिय, कोणिय ओ सेल एहि भूभागक सम्मान्य नागरिक ओ उद्‍भट विद्वान छलाह । बुद्धक धर्मोपदेश सँ प्रभावित भऽ ओ सभ शिष्य सहित सद्धर्म मे दीक्षित भए गेलाह । आपण निगमक पहिचान वनगाँव-महिषी (सहरसा) सँ कएल गेल अछि । वनगाँव-महिषी सँ प्राप्त पुरातत्वावशेष सभ मे ताम्रपत्र (आठम शताब्दी), बुद्ध ओ ताराक प्रस्तर मूर्त्ति, प्राचीन सिक्‍का, चीनाचार (हस्तलेख), वशिष्टाधारिता तारा आदि सँ सम्पूर्ण क्षेत्र बौद्ध क्षेत्रक रूपें प्रमाणित होइछ । हाल मे एहि भूभाग सँ (महेशपुर, जगतपुर, बरुआरी) प्राप्त बुद्ध आ ताराक पालकालीन पाथरक मूर्त्ति सभ प्राप्त भेल छल जे सम्प्रति बाबा कारू संग्रहालय, सहरसा मे संग्रहित अछि । सुपौल जनपद सँ एकटा ध्वस्त बौद्ध स्तूप सँ भस्मी अवशेषक सूचना प्रो० अशोक कुमार सिंह देने छलाह । भस्मीक संग माणिक्य ओ मुद्रा सेहो छलैक । सहरसा जिलाक चण्डीस्थान (वरांटपुर) मे तथाकथित बुधाय स्वामीक प्रस्तर मूर्त्ति बुद्धक थिक । ओहिठाम सँ प्राप्त शिलालेख मे बुद्ध वंशक राजाक नामोल्लेख भेल अछि । वनगाँव ताम्रपत्र मे विग्रहपाल तृतीयक अभ्यर्थना बुद्धक रूप मे कयल गेल अछि । ओहि क्षेत्रक जातिवनक पहचान देवनवनक रूप मे कयल गेल अछि ।

किछु इतिहासकार बेगुसराय जनपद कें सेहो अंगुत्तर (अंगुत्तराय) क अंतर्गत मानैत छथि यद्यपि ओ अंग जनपद सँ उत्तर मे नहि अछि । मुदा बेगुसराय जनपद मे बौद्ध मूर्त्ति, एन० वी० पी०, आहत सिक्‍का ओ विहार विषयक अभिलेखक प्राप्ति प्रचुर मात्रा मे भेल अछि । नौलागढ़क खण्डित अभिलेख मे बौद्ध विहारक संकेत भेटैत अछि । पार्श्‍ववर्ती जयमंगलगढ़ मे कैकटा स्तूप बोधक टीला सभ उपलभ्य अछि, जाहिठाम चीन ओ श्याम देशक बौद्ध भिक्षु लोकनि १९३६ ई० धरि आबैत जाइत छलाह । जयमंगलगढ़ तांत्रिक पीठ अछि जाहिठाम मंदिरक आलिंद मे एकटा छोट बौद्ध मूर्त्ति बाँचल अछि । एकर अतिरिक्‍त बेगुसरायक संघौलक पुरातात्विक उत्खनन सँ अभिलेखयुक्‍त बुद्धमूर्त्ति एवं अन्यान्य अवशेष सभ प्राप्त भेल छल जाहि मे मनौती स्तूपक संख्या अधिक अछि । संघौलक उत्खनन प्रो० फुलेश्‍वर प्र० सिंह करौने छलाह । एहि जनपदक बौद्ध मूर्त्ति सभ स्थानीय जी० डी० कॉलेज ओ राजकीय संग्रहालय मे संरक्षित अछि, जाहि मे बलियाक बुद्धमूर्त्ति सेहो संकलित अछि । एहि जनपदक वीरपुर-बरीयारपुर, संघौल, नौलगढ़, वीहट, साम्हो, जयमंगलगढ़, बलिया आदि सँ बौद्ध मूत्तिक प्राप्ति सँ ई संकेत प्राप्त होइछ जे एहिठाम मध्यकाल मे बौद्धधर्म लोकप्रिय छल । एहि क्रम मे प्रो० राधाकृष्ण चौधरीक सर्वेक्षणात्मक प्रतिवेदन द्रष्टव्य अछि ।

बुद्धक धर्मयात्रा सँ सम्बद्ध क्षेत्रान्तर्गत वैशाली महत्वपूर्ण केन्द्र छल । बुद्ध कैकबेर वैशाली आबि एहि भूभागक कूटागार शाला मे ठहरैत छलाह आ भिक्षुलोकनिकें प्रवजित करैत छलाह । वैशालीक अशोक स्तंभ, बुद्धक भस्मी स्तूप, मर्कटहृद, अभिषेक प्रस्करणी स्तूप सभक ध्वंसावशेष आदि बौद्ध संस्कृतिक साक्ष्य अछि । बौद्धधर्मक द्वितीय संगीति, भिक्षुणी लोकनि कें संघप्रवेशक अनुमति आदिक व्यापक अनुशीलन कयल गेल अछि । वैशाली वृज्जि संघक राजधानी छल । विदेह मे राजतंत्रक पतनोपरांत ओ वृज्जिसंघ मे एकटा सशक्‍त घटकक रूप मे सम्मिलित भए गेल । एहिठामक संग्रहालय मे बौद्ध अवशेष संरक्षित अछि ।

वैशालीक बाद बौद्धसंदर्भित मिथिला अथवा तिरहुतक दक्षिणी सीमांत क्षेत्र चेचर ग्राम संकुल मे बौद्ध मंदिरक अभिलिखित पालकालीन बुद्धमूर्त्ति, गुप्तकालीन प्रस्तर मूर्त्ति, पालयुगीन धातुक मूर्त्ति, ब्राह्मी अभिलेख आदि बौद्ध संदर्भित जीवंत साक्ष्य अछि । वैशाली जिलाक पोझा (गोरौल) ओ आसकरनपुर (भगवानपुर) क बुद्ध मूर्त्तिक अलावा इमादपुर (भगवानपुर) सँ प्राप्त अभिलेखयुक्‍त धातुक बौद्धमूर्त्ति सभ ऐतिहासिक महत्त्वक अछि । महनारक गंगा तटीय ध्वंसावशेष सँ गुप्तकालीन मनौतीस्तूप सभक प्राप्ति उल्लेखनीय अछि ।

दरभंगा ओ मधुबनी मिथिलाक हृदयस्थली अछि । बहुत दिन एहि क्षेत्रक निवासी ब्रह्मविद्याक भूमिक नाम पर एहि भू भाग केँ बौद्धधर्म सँ एकदम अलग रहबाक अवधारणा बनौने छलाह । मुदा किछु उत्साही इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता ओ शौकिया इतिहास प्रेमी लोकनि अपन शोध-सर्वेक्षणक माध्यमे मिथिला मे बौद्धधर्मक अवस्थिति केँ प्रमाणित करबामे समर्थ बनि गेलाह । एहि अनुक्रम मे प्रो० राधाकृष्ण चौधरी, विजयकांत मिश्र, डा० जयदेव मिश्र, प्रो० प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’, पण्डित सहदेव झा, सत्येन्द्र कुमार झा, सत्यनारायण झा ‘सत्यार्थी’ आदिक शोध-सर्वेक्षण उल्लेखनीय अछि । एकर अलावा नित्य नव-नव तथ्य सभ प्रकाश मे आबि रहल अछि । सरकारी-गैरसरकारी सर्वेक्षण सँ लोग उत्साहित भए रहलाह अछि । एहि लेल सम्पूर्ण मिथिलांचलक पुरातात्विक सर्वेक्षणक संगे आवश्यक उत्खनन सेहो जरूरी छैक ।

मिथिलांचल मे सब सँ पैघ शिरहीन बुद्ध मूर्त्ति जरहटिया सँ प्राप्त अछि, जे सम्प्रति महाराजा लक्ष्मीश्‍वर सिंह संग्रहालय, दरभंगाक मुख्य द्वार केँ सुशोभित कए रहल अछि । हमरा जनैत एतेक विशाल पाथरक मूर्त्ति कोना एतय आनल गेलैक आर स्थापनाक विशेष प्रयोजन की छलैक ? संभवतः एहि क्षेत्र मे कोनो मिनी बौद्ध संगीति भेल छलैक । पादपीठ मे उत्कीर्ण अभिलेख घसि कए मेटा देल गेल छैक एवं सिर खण्डित बुद्ध आसनस्थ छथि । एहिना एकटा सिरविहीन बुद्धमूर्त्ति महिया (मधुबनी) मे सेहो प्राप्त छैक । परमेश्‍वर झा (मिथिलातत्व विमर्श) मनपौरक जाहि बुद्धमूर्त्तिक उल्लेख कयने छथि, ओ मूर्त्ति लेखक क अनुसार धर्मदत्त कोइरी द्वारा प्रदत्त छल । जाहि सँ ई संकेत भेटैत अछि जे बुद्ध ओ बौद्धधर्म उपेक्षित लोग मे प्रिय छल । वाचस्पति संग्रहालय, अंधराठाढ़ी (मधुबनी) मे बुद्ध मूर्त्ति, जरैल (मधुबनी), पस्टन (मधुबनी), मकरनपुर, विदेश्‍वर स्थान, अकौर, झंझारपुर (स्व० हरिकान्त झा), मंगरौनी, कपिलेश्‍वर-चौगामा, कोर्थु (दरभंगा) आदि सँ बौद्ध मूर्त्ति सभ प्राप्त छैक । पस्टन (मधुबनी) क तीनटा बौद्धस्तूप, ओहिठामसँ प्राप्त बौद्धमृणमूर्त्ति, धातुमूर्त्ति, मंगरौनीक त्रैलोक्य विजय ओ कपिलेश्‍वरक लोकेश्‍अवरक मूर्त्ति विशिष्ट अछि । कोर्थुक एकटा बौद्ध मूर्त्ति बुद्धक (स्थानुक) के पार्श्‍व मे अवलोकितेश्‍वर एवं मैत्रेयक मूर्त्ति उत्कीर्ण अछि । एहिठाम एकटा खण्डित देवीमूर्त्तिक प्रभावली मे तिब्बती उछेन लिपि मे अभिलेख उत्कीर्णल अछि । हाले मे श्री सत्येन्द्र कुमार झा द्वारा मरनकान (क्योटी, दरभंगा) मे पूर्वमध्यकालीन बौद्ध स्तूपक खोज नवीनतम सूचना अछि । तहिना परानपुर (पूर्णिया) सँ धातुक बुद्धमूर्त्ति सभक प्राप्ति सँ ई संकेत प्राप्त होइछ जे मिथिला मे बौद्ध धर्म दरभंगा, मधुबनी सँ सहरसा-पूर्णिया धरि पसरल छल । सत्यार्थी जीक नवीन खोजक अनुसारे वारी-सिंगिया (समस्तीपुर) सँ बौद्ध देवी ताराक गुप्तकालीन मूर्त्ति ऐतिहासिक महत्वक थिक, जकर प्रभावली मे ताराक वाराहरूप प्रत्यंकित अछि । मंगरौनीक त्रैलोक्य विजयक मूर्त्ति वस्तुतः ब्राह्मण ओ बौद्धधर्मक बीच चलैत संघर्षक प्रतीकात्मक अभिव्यंजना थिक, जकर शास्त्रीय स्वरूप तत्युगीन दार्शनिक ग्रंथ सभ मे पाओल जाइछ । उदयनाचार्य (करियन, समस्तीपुर) ओ वाचस्पति मिश्र (अंधराठाढ़ी, मधुबनी) बौद्ध धर्म ओ दर्शन कें खण्डित कयने छलाह । एहि तरहें बहुत दिन धरि बौद्धिक संघर्षक समापन बुद्ध कें दशावतार मे परिगणित कयलाक बाद भेल । आइयो मिथिलाक जीवनधारा मे बहुत रास बौद्ध अवधारणा आत्मसात भए गेल अछि ।

संदर्भ:-
१. द फुटप्रिंटस ऑफ बुद्धा, डा० जगदीश पाण्डेय, पटना
२. जातक कालीन भारतीय संस्कृति-मोहनलाल महतो वियोगी, पटना
३. बुद्ध, विदेह और मिथिला-सं० डा० प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’, महनार (वैशाली)
४. बौद्ध धर्म और बिहार-हवलदार त्रिपाठी सहृदय, पटना
५. बिहार का गौरव-राजेश्‍वर प्रसाद नारायण सिंह, पटना
६. जी०डी० कालेज वुलेटिन, १-४, बेगुसराय
७. होमेज टू वैशाली , सं० डा० योगेन्द्र मिश्र, वैशाली
८. वाजिदपुर का आनंद स्तूप, डा० प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’ , दै० हिन्दुस्तान, पटना
९. कल्चरल हेरिटेज आफ मिथिला-विजयकांत मिश्र, इलाहाबाद, १९७९ ई०
१०. बुद्धिस्ट इकनोग्राफी इन विहार, पटना, १९९२ ई०
११. विहार के बौद्ध संदर्भ, महनार (वैशाली) १९९१ ई०
१२. दर्शनीय मिथिला-(१ से १० खण्ड) लहेरिया सराय, दरभंगा
कुमार संग्रहालाय, पो० हसनपुर (समस्तीपुर)
पिन ८४८२०५

मिथिला अन्वेषण

मिथिला अन्वेषण


प्रो. कृष्ण कुमार झा “अन्वेषक"

भा. वि. भवन संस्कृत महाविद्यालय, मुंबई-७

पुराण प्रमाणित मिथिला

देशेषु मिथिला श्रेष्ठा गङ्गादि भूषिता भुविः ।

द्विजेषु मैथिलः श्रेष्ठः मैथिलेषु च श्रोत्रिय ः ॥

गङ्गा-कोशी - गण्डकी-कमला-त्रियुगा-अमृता-वागमती-लक्ष्मणा आदि नदी सँ भूषित मिथिलाक श्रेष्ठता वेद-पुराण-उपनिषद-दर्शन आ ऋषि प्रमाण सँ सर्वथा प्रमाणित अछि । एहि प्रान्तक सभ्यता - संस्कृतिक प्राचीनता स्वतः सिद्ध अछि । षड्‍ दर्शन (न्याय-वैशेषिक-सांख्य-योग- मीमांसा-वेदान्त) मे सँ चारि दर्शनक उद्‍भव स्थली मिथिला अनेक मैथिल महापुरुषक सुदीर्घ मणिरत्‍नक परम्परा सँ पूर्ण अछि । अपन मानसमंथन सँ मैथिल मनीषी लोकनि जे किछु प्राप्त कएलन्हि ओ समग्र विश्‍व के लेल अनुकरणीय अछि । मिथिलाक वैशिष्ट्‍य एवं प्रशस्ति मूलक श्लोक मे तीरभुक्‍तिक (तिरहुतक) महात्म्य वर्णित अछि ।

जाता सा यत्र सीता सरिदमल जला वाग्वती यत्रपुण्या ।

यत्रास्ते सन्निधाने सुर्नगर नदी भैरवो यत्र लिङ्गम्‌ ॥

मीमांसा-न्याय वेदाध्ययन पटुतरैः पण्डितेमर्ण्डिता या ।

भूदेवो यत्र भूपो यजन-वसुमती सास्ति मे तीरभुक्‍तिः ॥

जगत-जननी सीताक उत्पत्‍ति भूमि तिरहुत अर्थात्‌ वैदिक मान्यता के अनुसार तीन वेदक (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद) ज्ञाता अथवा त्रिवेद सँ आहुति देवयवला जाहि भूभाग पर निवास करैत छथि ओ निर्मल जल सँ परिपूर्ण आ मीमांसा-न्याय वेदादि अध्ययन मे पटु सँ पटुतर-विद्वत मनीषि सुशोभित जाहि भूभागक शासक यज्ञकर्त्ता पण्डित छथि ओ तिरहुत धन्य अछि ।

देवी भागवत मे मिथिलाक प्रजाक सदाचार आ समृद्धिक मनोरम वर्णन कएल गेल अछि :-

प्रविष्टो मिथिला मध्ये पश्यन्‌ सवर्द्धिमुत्तमाम्‌ ।

प्रजाश्‍च सुखिताः सर्वाः सदाचाराः सुसंस्थिता ॥

विदेहराज जनक, मण्डन, अयाची-याज्ञवल्क्यक मिथिला मे आदिकाल सँ अध्ययन-अध्यापन आ लेखन-मनन के यजन के सम्मान प्राप्त अछि । व्याकरण वेदान्त-मीमांसा-न्याय-तंत्र-साहित्य-संगीत आदि विषयक पाण्डित्यपूर्ण परम्पराक अक्षय ज्ञान कोष सँ सदैव नवनवोन्मेष शालिनी प्रज्ञा, ज्ञान-विज्ञानक ग्रंथ सँ परिपूर्ण अछि मिथिलाक विद्यागार ।

अयाची मिश्रक गाम सरिसो पाही

“कलौ स्थानानि पूज्यन्ते"

एहि आर्षवाक्य प्रमाण सँ ज्ञात होइत अछि जे कलिकाल मे व्यक्‍ति भूषित स्थानक गरिमा सर्वोपरि अछि । देवस्थानक प्रति लोकक असीम अनुराग आओर गाम-तीर्थक पूजा एहि तथ्य के परिपुष्ट करैत अछि । पण्डित अयाची-शंकर आ सचल मिश्रक जन्मभूमि मिथिला मध्य अवस्थित पाही युक्‍त सरिसो गाम के नमन करैत ओहि ठामक सुदीर्घ विद्धत परम्परा के कोटि-कोटि प्रणाम ।

सरिसवक गौरवमय इतिहास अतीतक जीवन दर्शन बनि एखनहु विराजमान अछि । सरिसब शब्दक शाब्दिक अर्थ संस्कृतक सर्षप शब्द सँ निष्पन्न अछि एवं एकर पर्यायवाची सिद्धार्थ होइत अछि । तैं एहि क्षेत्र के सिद्धार्थ क्षेत्र अर्थात्‌ मैथिली सरिसबक खेत कहल गेल अछि । गामक नामकरण सँ ज्ञात होइत अछि जे एहि ठामक भूमि उपजाऊ छल, उर्वरा युक्‍त एहि प्रान्त मे सरिसवक खेती प्रचुर मात्रा मे होइत छल । सात खण्ड (टोल) मे विराजमान एहि गामक समीपवर्ती कोइलख, भौर-रैयाम-लोहना, पण्डौल-भगवतीपुर आदि उन्‍नत परम्पराक द्योतक अछि । सरिसव एहि सव मे प्राचीन अछि आ भगवान श्री कृष्णक अग्रज श्री बलभद्र जीक साधना स्थली अछि । स्कन्द पुराणक नागर खण्ड मे कपिल मुनिक-आश्रम सिद्धार्थ क्षेत्रक समीप होयबाक वर्णन भेटैत अछि । तदनुसार वर्तमान कपिलेश्‍वर स्थान सौराठ सभा सँ दू कोस दक्षिण पश्‍चिम मे विराजमान अछि आऽ एखनहु मिथिला प्रान्त मे श्रद्धाक स्थान प्राप्त केने अछि । जहिना बाबाधाम (देवधर) मे शिवभक्‍त सुल्तान गंज सँ गङ्गाक जल भरि काँवर लऽ कऽ जाइत छथि तहिना असंख्य श्रद्धालु शिवभक्‍त जयनगर मे कमला सँ जल भरि श्रावणक सव सोम कऽ कपिलेश्‍वर स्थान जाइत छथि । सरिसो एहि स्थान सँ दू योजन पश्‍चिम मे अवस्थित अछि । एहि गामक समीप मधुबनी सँ पूर्व भगवतीपुर मे भुवनेश्‍वरनाथ महादेव विराजमान छथि आ इ स्थान मिथिलाक प्राचीन सिद्धपीठ मे सँ एक अछि । प्राचीनकाल मे एहि गाम के अमरावतीक प्रतीक मानल जाइत छल ।

एखनहु एहि ठामक भूमि सँ यदा-कदा उत्खननक परिणाम स्वरूप प्राचीन स्वर्णमुद्रा, पूजनसामग्री आ गृहस्थाश्रमोपयोगी वस्तु प्राप्त होइत रहैत छैक, जे एहि बातक द्योतक अछि कि प्राचीन काल मे एहि ठाम गाम-नगर-मन्दिर तड़ाग सँ युक्‍त आर्य सभ्यता विराजमान छल । एक अनुमानक अनुसार हर्षवर्धन के साम्राज्यक पतन भेला पर महाराज अरुणाश्‍च के विरुद्ध तिब्बती आक्रमण के समय एहि प्रान्त मे भयंकर नरसंहार भेल छल । आक्रमणकारी अपार धन-सम्पत्ति लूटि कऽ लऽ गेल छल, परंच मिथिलाक एहि प्रान्तक माटि मे व्याप्त विद्या वैभव के लऽ जएबा मे समर्थ नहि भऽ सकल ।

मिथिला मे कर्णाट वंशीय क्षत्रिय वंशक अन्तिम राजा पञ्जी प्रवर्तक महाराज हरिसिंह देवक अनुसार मिथिलाक एहि क्षेत्र मे विराजमान सरिसब मे ग्यारहवी शताब्दिक पूर्वार्द्ध भाग मे सामवेद कौथुम शाखाक शाण्डिल गोत्रीय महामहोपाध्याय रत्‍नापाणिक निवासक वर्णन भेटैत अछि । ओ हरिसिंह देवक समय तेरहवीं शताब्दीक मानल जाइत अछि ।

विष्णु पुराण आ हरिवंश पुराण मे स्यमन्तक मणि उपाख्यान मे श्री बलभद्रक मिथिला प्रवासक वर्णन भेटैत अछि । एक कथाक अनुसार भी बलभद्र जी अनुज श्री कृष्ण सँ रुसि कऽ मिथिला आवि गेल छलाह आ तीन वर्ष धरि एहिठामक विभिन्न क्षेत्र मे भ्रमण करैत रहलाह । अपना प्रवासक समय मिथिलाक अनेक प्रान्त मे देवी-देवताक स्थापना कय साधना केने छलाह । महाभारत युद्ध सँ पूर्व किछु दिन तक सिद्धार्थ क्षेत्रक एहि सरिसब गाम के अपन साधना भूमि बनौने छलाह एवं एहि गामक ग्रामदेवी माता सिद्धेश्‍वरी आ गामक पश्‍चिम मे सिद्धेश्‍वर नाथ महादेवक स्थापना कएने छलाह । एक किंवदन्ती के अनुसार एहि सिद्ध क्षेत्र मे दुर्योधन श्री बलभद्र जी सँ गदाक शिक्षा प्राप्त केने छलाह । वृहद्‌ विष्णुपुराण मे बलभद्र द्वारा स्थापित माता सिद्धेश्‍वरीक वर्णन भेटैत अछि ।

महामहोपाध्यायक परम्परा सँ पूर्ण इ गाम एखनहु भगवती भारतीक अभ्यर्थना मे लागल अछि । सरस्वतीक कृपास्थलीक माटिक महत्व सुदूर प्रान्तक लोक के द्वारा अपना पुत्र-पुत्रीक अभिलेख संस्कारक (अक्षरारम्भ संस्कार) दिन उत्तम संस्कारक हेतु एहिठामक माटि ल’ जयवाक प्रथा सँ प्रतिपादित अछि । जनक, याज्ञवल्क्य आदि ऋषि द्वारा प्रशंसित सरिसव गामक उत्कर्षक वर्णन अल्प विषय मति सँ सम्भव नहि अछि, तथापि स्वनाम धन्य श्री भवनाथ मिश्र जे अपन त्यागपूर्ण अयाचित जीवन प्रणाली सँ अयाची मिश्रक उपाधि युक्‍त संज्ञा प्राप्त केने छलाह, हुनकर गाम सरिसबक वर्णन हेतु अयाची-शंकर-सचल आ महामहोपाध्याय डा. सर गङ्गानाथ झा आदि प्रेरणाक श्रोत बनि लेखनी के अग्रसारित कऽ रहल छथि ।

दन्तकथाक अनुसार हुनका मात्र सवा कट्ठा जमीन छलैन्ह जाहि मे उत्पन्न साग-कन्दमूल आ अन्न आदि सँ निर्वाह करैत छलाह । अपना निर्वाहक वास्ते ककरो सँ कोनो प्रकारक याचना नहिं करैत छलाह, तैं हुकर नाम अयाची भेल । हुनक पुत्र श्री शंकर मिश्र जिनका बाल प्रतिभा-अर्थात्‌ अपूर्ण पञ्चम वर्ष मे त्रिलोकक वर्णन करबाक गौरब प्राप्त छैन्ह आ मिथिलाक पाण्डित्य परम्पराक आदर्श पुरुष मानल जाइत छथि । किंवदन्ती के अनुसार श्री शंकर मिश्रक एकटा रोचक कथा मिथिला मे प्रचलित अछि । तदनुसार हिनक जन्म के समय अयाची मिश्र घाइ के पुरस्कार मे बालकक प्रथम अर्जित धन देबाक वचन देने छल्खिन्ह । श्री शंकर मिश्र अपन बाल्यावस्था मे राजसभा मे त्रिलोकक वर्णन कए राजा के द्वारा पुरस्कार मे प्रचुर धन प्राप्त कऽ जखन ओ धन के पिता अयाची मिश्रक समक्ष प्रस्तुत कएलन्हि तखन ओ बालकक जन्म के समय घाइ के देल-गेल वचन के पालन करबाक हेतु ओहि धन के घाइ के समर्पित कऽ देलखिन्ह । ओहि धन सँ ओ घाइ अनेक पोखरि-इनार, मन्दिर आदिक निर्माण कएलक जे एखनहु विद्यमान अछि आ अयाचीक त्यागक कथा कहि रहल अछि । श्री शंकर मिश्रक शिष्य परम्परा स्वयं के लेखनी सँ संकेतित अछि ।

श्लाद्यास्पदं यद्यपि नेतरेषा मियंकृतिः स्वादुहायोऽया ।

तथापि शिष्यै गुरुगौरवेन परः सहस्त्रैः समुपासनीया ॥

श्री शंकर मिश्रक विरचित श्लोक “रसार्णव" नाम सँ प्रसिद्ध अछि । पिता पुत्र सतत्‌ “काव्य शास्त्र विनोदेन कालोगच्छति धीमताम्‌" के सार्थक करैत शास्त्र चर्चा मे निमग्न रहैत छलाह । श्री शंकर द्वारा रचित वैशेषिक सूत्रोपस्कार मे सूत्रकार कणाद आ अपन पिता भवनाथ (अयाची) मिश्रक स्मरण करैत लिखैत छथि:-

या भ्यां वैशेषिके तन्त्रे सम्यक्‌ व्युत्पादितोऽस्यहम्‌ ।

कणाद भवनाथा भ्यां ताभ्यां मम नमः सदा ॥

श्री शंकर मिश्रक विद्वत्ताक प्रतीक हुनक पाठशालाक नाम ‘चौपाड़ि’ छलन्हि । एहि चौपाड़ि पर उद्‍भट सँ उद्‍भट विद्वान अबैत छलाह आ सतत्‌ शास्त्रार्थ होइत रहैत छल । दूर-दूर सँ अध्ययनार्थी एहि पाठशाला मे अध्ययनार्थ अबैत रहैत छलाह । अयाची शंकरक महिमा समग्र विश्‍व मे प्रसरित अछि । एखनहु एहि परिवारक वंशज नहि की मात्र भारत वर्ष मे अपितु समग्र विश्‍व मे प्रसारित भऽ कऽ अध्यवसायी जीवन व्यतीत कऽ रहल छथि ।

मैथिल ब्राह्मण आ पञ्जी व्यवस्था

महाराज हरिसिंह देव के द्वारा मैथिल ब्राह्मण के आचार विचार आ व्यवहारक अनुसार श्रेणीबद्ध करबाक सत्प्रयास कएल गेल छल । एतदर्थ एक समय महाराज हरिसिंह देव मिथिलाक सम्पूर्ण ब्राह्मण समाज के एक विशिष्ट भोज मे आमन्त्रित कएलन्हि । आमन्त्रणक राज्यादेश मे स्पष्ट रूप सँ कहल गेल छल जे सव कियो अपन-अपन नित्य कर्म समाप्त कए भोजन के लेल आबथि । भोजनोपरान्त समागत ब्राह्मण के श्रेणी क्रमक घोषणा कएल जाएत । एहि आमन्त्रणक चर्चा सँ समस्त मैथिल ब्राह्मण समाज उत्साहित छलाह । सबहक जिज्ञासाक विषय बनल एहि आमन्त्रण मे अपन-अपन उपस्थितिक आकुलता समस्त मैथिल ब्राह्मण समाज मे छल । आमन्त्रणक उत्कष्ठा मे ओहि दिन सब कियो प्रातः काल सभा मे उपस्थित भऽ पञ्जी (उपस्थिति-पुस्तिका) मे अपन नाम लिखवाय आसनस्थ होइत गेलाह । एहि प्रकार सँ सायंकाल धरि आगन्तुकक आगमन होइत रहल । परञ्च तेरह विलक्षण कर्मकाण्डी ब्राह्मण सायं संध्या उपासना कएलाक पश्‍चात्‌ सभास्थल पर अएलाह । भोजनोपरान्त “पूर्वागमन अधः न्याय" के अनुसार सब सँ पूर्व उपस्थित होवय वला ब्राह्मण के नाम श्रेणी क्रम मे सब सँ नीचा राखल गेल आ सब सँ बाद मे आबय वाला ब्राह्मणक क्रम सब सँ उपर घोषित भेल । ई क्रम ब्राह्मणोचित सन्ध्या उपासना आदिक आधार पर देल गेल छल जे एखनहु मैथिल ब्राह्मण मे वैवाहिक सम्बन्धक समय कोटि निर्धारणक आधार मानल जाइत अछि ।

एहि क्रम मे सायं सन्ध्याक पश्‍चात्‌ उपस्थित तेरह विलक्षण, कर्मकाण्डी, प्रतिभाशाली, त्रिकाल सन्ध्या उपासक वेदज्ञ आ वेदोक्‍त रीति सँ जीवन यापन करयबला ब्राह्मण के अवदात (अर्थात्‌ पूर्ण शुद्ध) संज्ञा देल गेलन्हि । अवदात संज्ञाक ई तेरह कुल वेदाध्यायी आ श्रुतिमार्गसँ जीवन यापन करैत छलाह तैं मैथिल ब्राह्मणक एहि विशिष्ट शाखा के श्रोत्रिय कहल जाइत अछि । आपस्तम्ब के अनुसार:- “वेदस्यैकैकां शाखामधीत्य श्रोत्रियो भवति", अर्थात्‌ श्रोत्रिय उपाधि एहि बातक प्रमाण अछि कि ककर धारक कम सँ कम वेदक एक शाखा मे निष्णात छथि । परञ्च कालक्रम सँ वेदाध्यायीक परिजन के श्रोत्रिय कहयवाक परम्परा चलि रहल अछि । आ एखनहु श्रोत्रिय परिजन शुद्धतर देखल जाइत छथि । ई श्रोत्रिय परिवार राँटी-मंगरौनी-पिलखवाड़-सरिसोपाही आदि स्थान मे अवस्थित छलाह आ ओहि ठाम सँ अन्यत्र सेहो विस्थापित भेलाह ।

वस्तुतः पञ्जी व्यवस्थाक उद्देश्य प्रायः विस्थापित परिवारक मूल आवास, संस्कृति आ परम्परा के रेखांकित करब छल तै ब्राह्मणक मूल मे मूलगामक समावेश कएल गेल अछि आ कालान्तर मे पुनः विस्थापित भेलाक पश्‍चात्‌ ओहि गामक नाम सेहो जोड़ि देल गेल अछि । जेना पाली गाँव मे रहनिहारक मूल भेल पलिवाड़ आ ओहिठाम सँ जे महिषी गेलाह से पलिवाड़ महिषी । तहिना सरिसब गामक निवासी सरिसवे । दरिहड़ के रहनिहार दरिहड़े अड़ै गामक निवासी अड़ैवाड़ आदि मूलक व्यवस्था पञ्जीरूप मे हरिसिंह देवक द्वारा कएल गेल अछ जे पञ्जीप्रबन्ध के नाम सँ विख्यात अछि ।

II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

समस्त मिथिलांचल वासी स निवेदन अछि जे , कुनू भी छेत्र मै विकाश के जे मुख्य पहलू छै तकर बारे मै बिस्तार स लिखैत" और ओकर निदान सेहो , कोनो नव जानकारी या सुझाब कोनो भी तरहक गम्भीर समस्या रचना ,कविता गीत-नाद हमरा मेल करू हमअहांक सुझाब नामक न्यू पेज मै नामक और फोटो के संग प्रकाशित करब ज्ञान बाटला स बढैत छै और ककरो नया दिशा मिल जायत छै , कहाबत छै दस के लाठी एक के बोझ , तै ककरो बोझ नै बनै देवे .जहा तक पार लागे एक दोसर के मदत करी ,चाहे जाही छेत्र मै हो ........

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