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शनिवार, 29 दिसंबर 2012

दहेज़ मुक्त मिथिला कखन ?



"शुभ विबाह करू" नै कि कलह विबाह " 

एक बेर दहेज़ बाबूजी  लेता और जिन्दगी भैर
 उलहन सुनबाक  लेल मजबूर क देता "

बस  औकात एक दू  लाख  एतबे के रहै |

" हमर बाबूजी खरीद क अन्ने छैथ "

                                       फैसला अपना - अपना हाथ मै या "

( हा एक बात हरदम ध्यान मै राखी अपना आप के देखैत अपना योग्य  पुत्री ( पुत्र ) के तलास करी " )

                              एहन नै होबाक चाही कि
                     
                                    "बुरबक बड़ के सोन सन कनिया "



                                    चलि रहल छै जे इ आंधी तुफानो स तेज छै,

                                   रोकि दियौ बनी क हिमालय दुल्हने दहेज़ छै |

           (  बस दुल्हन के दहेज़ बनाबू , दहेज़ के दुल्हन नै )

                                      जय मिथिला , मैथिली आ मैथिल !!!!

पूरा मिथिला दहेज़ मुक्त होबाक  चाही , बस हर घर स  एकहिटा आबाज  

होबक चाही''
                               
                            "मिथिला दहेज़ मुक्त होबाक  चाही" 

बस अपन-अपन   पुत्री ,बहिन ,भतीजी या पोती के शिक्षा पर जोर लगाबी '' 

हुनका अन्दर किछु एहन गुण सिखबाक लेल प्रोत्साहित करी  की हुनका 

अपना आप पर गर्ब महसूस होई कि हम बेटी नै बेटा छि | 

                        "दहेज़ अपने आप दूर भागी जेतैइ |

पुत्री के पिता दहेज़ दै छथिन और पुत्र   के पिता लै छथिन

 ( दै छथिन तखन लै छथिन ) अगर कोनो तरहक 

जोर जबरदस्ती होई छै " त उ गलत छै , ओकरा  पूरा समाज मिल क 

बिरोध करबाक चाही |अगर अपन पुत्री के गुणबाण बनेबई तखन देखू 

                              इ समाज कोना खुसामद करत अहाके"

 कि अपन लक्ष्मी रूपी पुत्री  हमरा दितौ त हमर कुल उद्धार भ जायत 

 और इ उपकार हम कहियो नै बिसरितौ |

दहेज़ ल क ओकरा अपन  सौखमनोरथ मै खर्च केनाई

          बहुत गलत बात छै ,अपन  सौखमनोरथ

 अपना पाई स पूरा करी नै कि  दहेज़ ल क , उ पाई के  पुत्र- पुत्री  के जे 

जिन्दगी मै सार्थक उपयोग होई ओइ मै लगाबी नै 

कि आतिसबाज़ी मै | इ राक्षस रूपी महगाई मै जहा तक पार लागे पाई 

बचबै के कोसिस करी |

जय श्यामा माई ,जय मैथिली, जय मिथिला, जय मिथिलांचल (बिहार)

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

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