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सोमवार, 14 मार्च 2011

majdur@prabhat ray bhatt



मजदुर !!!
भगवान क असिम कृपा स अहा भेलौ धनवान !!
मुदा भुखा निर्बस्त्र आर निर्धन सहो छैथ इन्सान !!

भुख स छटपटा रहल छै,निर्धन ख्याला एक टा रोटि !!
मुदा धनक लोभ स खुली नै रहल अछी अहा क पोटि !!

भुखा प्यासा निर्बत्र मे करु अपन अन्न धन्न दान !!
तखने ह्याब अहा सबकेर नजैर मे महान् !!

दुख:भुख आ विपति सहके बईनगेल छै गरिब क मजबुरी !!
दु टुक्रा रोटि ख्यालेल खुन आ पसिना बहाके करैया मजदुरी !!

मजदुरक श्रम स उब्जैया फलफुल तरकारी आ बिभिन्न अन्न !!
मालिक भजाईय धनवान मुदा श्रमिक रही जाईय निर्धन !!

आदमी नै छै अहाक नजैर मे नोकर चाकर आर मजदुर !!
निर्धन गरिब पर हुक्मत करैछी कहाँ भेलौ अहा निस्ठुर !!

नै देखाऊ अईठाम ककरो झुठा रुवाब आर साख !!
एकदिन जईरके भ ज्याब अहु अई माटीमे राख !!

कंकर पाथर थाली मे भेटत् भुख स जौं अहा छ्टपटयाब !!
मुठी बांधके जग मे एलि हाथ पसाइरके ज्याब !!

कविता क रचैता:-प्रभात राय भट्ट

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

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