राती नई खेलों हम आ सूती रहलौ सांझे !!
सूत उठ भोरे रोटी खोज्लौ,
खाली हरिया वर्तन हरबराईय,
की भूखे पेट में विलाई ओंघराईय
रोटी जे नै रखले म्या गई
भल तू रहिते बांझे,
राती नै खेलौ हम ,
आ सूती रहलौ सांझे
तोरा लागैनैछौ माया ,
भूख सा जरी रहल अछि हमार काया ,
की भूखे पेट में विलाई ओन्घराईय ,
उच्च कुल में जे जन्म लेतु ,
आ राज तिलाक हम कईर तौ ,
पैब तौ निक निक मेवा ,
आ काईर तौ देस क सेवा ,
की भूखे पेट में बिलाई ओघराईय !!
रचनाकार :प्रभात राय भट्ट
माछक महत्व
हरि हरि ! जनम किऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पलइ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कबइ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खाएब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म किऎ लेल !
हरि हरि.
कर भला तो हो भला अंत भले का भला
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एकता विकास के जननी छैजय मैथिली, जय मिथिला, जय मिथिलांचल (बिहार)
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