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बुधवार, 25 अगस्त 2010

अफरल पेट

सजल धजल बड़ सुंदर लागल
दरबज्जा सगरो बरियाती स’
तकलौ त’ तकिते रहि गेलौं
सघन समाज आ सरियाती स’

उचित व्यवस्थाक प्रश्न नहि पूछू
कहैत लगैइयै मोन गदगद
पैर धोआय कुर्सी बैसोलन्हि
बाँट’ लगला चाह आ शरबत

बिग्जी,मिठाई के हाल नै पूछू
ऐल गेल कत्तेको प्लेट
भोजन करब त’ बांकिये छल
ताबतहि में अफ़रि गेल पेट

किछु क्षण केलहुं विश्राम ओतय
कुरुड़ क’ लेलहुं भक तोड़ि
भोजनक वास्ते आग्रह केने
व्यक्ति एक ठाढ़ छलाह कर जोड़ि

सभ बरियाती क्रम-क्रमशः
ग्रहण केलहुं बैसक आसन
भोजन परसथि युवक सदस्यगण
वृद्ध ठाढ़ करै छथि शासन

एक कात बैसल नवयुवक सब
दोसर कात बुजुर्गक पाँत
युवक लोकन्हि बक ध्यान लगौने
बुजुर्गक मुँह में बान्हल जाँत

खाइत देखि बरियात के कहलन्हि
अपनेंक घर पर नहि अछि खर
एतबहि सुनि युवक एक बजलाह
अपनेंक कृपा स’ की कहू सर
बन्हने छी खाली पक्के के घर

देलन्हि ठहक्का सब बरियाती
संग देलन्हि सम्पूर्ण समाज
वाह वाह क’ गूँजि उठल स्वर
ओ युवक सबहक बचौलन्हि लाज

विविध प्रकारक भोजन केलहुं
तरूआ, तरकारी, मांछ, मिठाई
पत्र शुद्धि दही केर जोग स’
पेट अफ़रि गेल मोन अघाई

भोजनोपरांत प्रस्थानक तैयारी
लेलौं विदा जनऊ-सुपारी पाबी

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

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