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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

हम दू:खिया दू:ख केंय मारल@प्रभात राय भट्ट

हम दू:खिया दू:ख केंय मारल के पूछत हमर हाल,
केकरा स कहू के पतियाईत हमर बिप्तिक हालत,
अपने सुखमें आन्हर भेल अछि ऐठाम सभ नेहाल,
अपन हारल दुनियाके मारल भेल छि हम बेहाल,

दू:ख के सागर में अटकल अछि हमर जिनगीक  नैया,
विधाता भेल बेपक्ष बईमान मलाह  भेटल हमर खेबैया,
हम कोना उतरब पार बिधाता फसल छि बिच मजधार,
किछु नै सुझाइय किछु नै बुझाईय कोना हयात उद्धार,

दोस्त बनल दुश्मन अपन नाता गोता सेहो भेल पराया,
फूटल करम हमर जहिया स: कालचक्र के परल छाया,
हम निर्दोष सरस बोली बजैत अछि दिल स: साँच साँच,
दोषी कहिक धधरा में लगाबैय सभटा हमरा आंच,

सुईखगेल आईखक नोर कल्पी रहल अछि हमर ठोर,
करैय घाऊमें नुनदलन यी दुनिया भेल केहन कठोर,
जिनगी भेल पहार की दुनिया लगैय आब अन्हार,
अपनों आब मुह मोडैय जेना रही हम अनचिन्हार,

रचनाकार:प्रभात राय भट्ट

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

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