ऐतिहासिक साक्ष्यक आधार पर जाति प्रथाक उद्भव वेद मे वर्णित वर्ण व्यवस्था सँ मानल गेल अछि । वेदक अनुसार समाज मे कर्मक आधार पर चारिटा वर्ण छल, यथा- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आ शुद्र । वेद मे एहि बातक उल्लेख अछि जे कोनो व्यक्ति कोनो काज कऽ सकैत छलाह । परन्तु कालान्तर मे ई व्यवस्था जन्मजात जाति व्यवस्था मे बदलि गेल आ पुन: जाति सँ विभिन्न उपजातिक निर्माण भेल । आगू जा कऽ एहि व्यवस्थाक घृणित रूप छुआछूत आदिक उद्भव भेल । संपूर्ण भारतवर्ष जेना मिथिला मे जातिक अपन परंपरा छैक आ सामाजिक सोपान पर सभ जातिक अपन-अपन महत्व छैक । मिथिलाक विभिन्न संस्कार मे एहिठामक सभ जातिक अपन महत्व छैक आ तें कोनो जातिक महत्ता के कम कऽ कऽ आँकब उचित नहि होयत । मिथिलाक ओहि गाम के आदर्श गाम मानल जाइत छैक जाहिठाम सभ वर्णक निवास हो । ओना आब काजक भिन्नताक आधार पर जातिक बीच सीमारेखा खीचब मोश्किल अछि, कारण एहि आर्थिक युग मे सभ कियो अपन सुविधाक अनुसार काज करैत छथि तथापि मिथिला मे पाओल जायवला प्रमुखक जातिक संक्षिप्त वर्णन एना अछि:-
ब्राह्मण :- मिथिला मे प्राचीने काल सँ ब्राह्मणक प्रमुखता रहल अछि । प्राचीन समय मे हिनक मुख्य काज अध्ययन आ अध्यापन छल आ तें मिथिलाक इतिहास मे ओहन ब्राह्मणक कतिपय उदाहरण भेटैत अछि जे जीवन पर्यन्त अध्ययन आ अध्यापन मे लागल रहलाह । ओहि समय मे हुनक शिक्षा केन्द्र नहि केवल मिथिला मे वरन् नेपाल, बंगाल, असम, उड़ीसा आदि धरि प्रसिद्ध छल आ ओहिठामक छात्रगण सेहो एहिठाम शिक्षा ग्रहण करबाक निमित्त अबैत छलाह । एहने कुल मे सरिसबक शंकर कुल, ठाड़ीक मिश्रकुलक उल्लेख भेटैत अछि । एकरा अतिरिक्त मिथिलाक सत्ता पर्याप्त समय धरि ब्राह्मण कुलक हाथ मे रहल आ तें सामाजिक सोपान पर ओ सर्वोपरि रहलाह । तथापि अपन वैदिक परंपरा सँ बहुत अंश मे एखनो नजदीक रहलाक कारणें एहि वर्गक आर्थिक दशा नीक नहि अछि । दहेज सदृश कुरीतिक संग अनेकानेक आन कारण सँ सेहो एहि वर्गक सामाजिक प्रतिष्ठा मे ह्रास भेल अछि । आइ-काल्हि अधिकांश ब्राह्मण आन काज सभ मे लागि गेलाह अछि आ किछु योग्य ब्राह्मण धार्मिक काज करबैत छथि । हिनका पंडित वा शास्त्री कहल गेल अछि । अनेक गोत्रक ब्राह्मण मिथिला मे पाओल जाएत अछि, जाहि मे काश्यप, कात्त्यायन, शांडिल्य, वत्स, भारद्वाज आदि प्रमुख अछि ।
भूमिहार :- ई छोटछीन जमींदार छलाह आ अपना कें ब्राह्मण बुझैत छथि, तथापि सामाजिक सोपान पर ओ ब्राह्मणसँ नीचां मानल जाइत छथि कारण ओ लोकनि पूजा पाठक काज के छोड़ि खेतीक काज अपना लेलनि ।
कायस्थ : ओ लोकनि जमींदारक बही-खता के देखनिहार छलाह आ मुख्यत: गामक सर्वे आदिक काज मे आगू रहैत छलाह । ई समाजक एकटा बुद्धिजीवी वर्ग रहलाह अछि । ब्राह्मणक बाद इएह वैदिक परंपरा के आत्मसात कयने छथि । एहि जातिक अदौ सँ एकटा सभ सँ नीक व्यवस्था ई रहल अछि जे जा धरि लड़का अपन पयर पर ठाढ़ नहि भऽ जाएत अछि ता ओकर वियाह नहि कराओल जाइत अछि ।
राजपूत : मिथिलाक राजपूत एहिठामक मूल निवासी नहि छथि, वरन् ओ लोकनि मुगलक समय मे एहिठाम अयलाह आ जमींदार बनि गेलाह । ई सामाजिक सोपान पर ब्राह्मणसँ नीचां छथि । राजपूत मे सँ किछु गोटे घोड़ा आदिक देखभाल करैत छलाह आ तें हुनका संभवत: ’घोड़पदौना’ राजपूत कहल गेलनि ।
यादव :- यादव एहि क्षेत्रक एकटा पैघ जाति थिक । ओ लोकनि मुख्यत: पशुपालक आ कृषक छथि आ अपना के भगवान श्री कृष्णक वंशज मानैत छथि । मुख्यत: दुग्ध व्यवसाय सँ जूड़ल रहयवला एहि जातिक राजनीति मे नीक दबदबा अछि ।
धानुक :- एहो कृषि पेशा सँ जूड़ल जाति अछि, यद्यपि कि ओ सभ पहिने धनुर्धारी छलाह । ई साफ जाति मानल जाइत अछि आ हिनक पानि ब्राह्मण जाति मे चलैत अछि ।
कोइरी :- कोइरी एहि क्षेत्रक परिश्रमी खेतिहर छथि आ एहि क्षेत्रक नीक कास्तकार छथि । तथापि सामाजिक सोपान पर ओ धानुक सँ नीचां छथि, कारण हिनक पानि ब्राह्मण मे नहि चलैत अछि ।
दुसाध :- दुसाध एहि क्षेत्रक एकटा पैघ जाति अछि कारण एकर जनसंख्या एहि क्षेत्र मे नीक छैक । ई सभ मुख्यत: मजदूरी कऽ कऽ अपन गुजारा करैत छथि । जनश्रुतिक अनुसार ओ सभ पहिने सेनाक मुख्य भाग छलाह आ हिनका सधव बहुत मुश्किल छल आ ताहि कारणें हिनका दु:साध्य कहल गेल, जे कालांतर मे बदलि कें दुसाध भऽ गेल ।
हजाम :- सामाजिक व्यवस्था मे हजाम जातिक स्थान महत्वपूर्ण अछि । ब्राह्मणक प्राय: एहन कोनो संस्कार नहि अछि जाहि मे हिनक उपस्थिति अनिवार्य नहि हो । प्रत्येक गाम मे इ सभ अपना मे गामक बँटवारा कयने छथि आ तदनुसार अपन मालिक सँ सलाना मजदूरी पबैत छथि, जे अनाज या नकदीक रूप मे होइत अछि । हिनक पानि सभ ठाम चलैत अछि । केश काटब एहि जातिक मुख्य पेशा अछि वा इ कहू जे एहि पर हुनक एकाधिकार अछि तँ अतिशयोक्ति नहि होयत ।
कुम्हार :- इ जाति मुख्यत: माटिक बरतन बनबैत छथि, जेकर उपयोग विभिन्न संस्कार आ घरेलू काज मे होइत अछि । सामाजिक सोपान मे एहि जातिक महत्वपूर्ण स्थान अछि, कारण उपनयन मे कुम्हैनक पूजाक विधान पाओल गेल अछि । हिनक पानि सेहो सभठाम चलैत अछि । अपन मूर्तिकलाक लेल इ जाति समूचा दुनिया मे मशहूर अछि । मिथिलाक गाम-गाम मे होमयवला दुर्गा पूजा, काली पूजा, कृष्णाष्टमी, सरस्वती पूजा आदिक अवसर पर हिनक कला निखरि उठैत अछि । आवश्यकता अछि हिनक कला के प्रोत्साहन देबाक, ताकि विश्वस्तर पर हिनक पहचान बननि आ हिनका अपन कलाक उचित मूल्य भेटनि । मिथिला मे एहि वर्ग के पडित कहल जाएत अछि । हिनक पूजा-पाठ संस्कार आदि मे ब्राह्मणक बजाय हुनक स्वयं के पुरहित रहैत अछि ।
तेली :- समाजक इ एकटा महत्वपूर्ण जाति अछि, जे मुख्यत: व्यवसाय आदि सँ जूड़ल अछि । पहिने इ मुख्यत: तेल निकालबाक काज करैत छलाह आ हिनक कोल्हू आर्थिक क्षेत्रक एकटा महत्वपूर्ण अवयव छल । जनश्रुति अछि जे गोनूक मृत्यु तेलीनियाँक प्रश्नक जबाव नहि दऽ पेबाक कारण सं भेल छलनि, किएक तँ हिनका भगवतीक वरदान छल जे जाहि दिन ककरहु प्रश्नक उत्तर तों नहि दऽ सकबह, से दिन तोहर जिनगीक अंतिम दिन हेतह । कहल जाइत अछि जे गोनू एक दिन कोल्हू पर तेल लेबाक लेल गेलाह, तँ कोल्हूक कड़कड़ेबाक आवाज पर तेलीनियाँ के पूछि देलथिन्ह- तोहर कोल्हू बड़ कड़कैत छौक? ताहि पर तेलीनियाँ उत्तर देलनि- गोनू हमर कोल्हू नहि अहाँक दिल कड़कैत अछि। गोनू सहसा एकर कोनो उत्तर नहि दऽ सकलाह आ तत्क्षण हुनक मृत्यू भऽ गेलनि ।
बरही :- इ जाति मुख्यत: लकड़ीक काजे मे लागल छथि । लकड़ीक रंग-बिरंगक फर्नीचर बनेनाइ हिनक काज छनि । परंपरा सँ इ जाति खेतीक सहायक जाति रहलाह अछि । हर, पालो बनायब, खुरपी, हाँसू आदि मे धार कैने हिनक मुख्य काज छल । इहो सभ अपना मे मालिकक बँटबारा कयने छथि आ तदनुसार अपन मालिक सँ अनाज या नकदीक रूपमे सलाना मजदूरी पबैत छथि ।
लोहार :- खेती-बाड़ी सँ जूड़ल उपस्कर यथा कोदारि, खुरपी, हाँसू आदि बनायब हिनक मुख्य पेशा अछि आ कृषकक सहायक जातिक रूप मे हिनक समाज मे महत्वपूर्ण स्थान अछि ।
डोम :- मिथिलाक डोम जाति वस्तुत: व्यावसायिक जाति थिक आ बसकरम एकर विशिष्ट उद्योग रहलैक अछि । मिथिलाक विविध संस्कार सँ सम्बद्ध बाँस निर्मित वस्तु पर डोम जातिक एकाधिकार अछि । इ जाति अपन उत्पत्ति ब्राह्मणे सँ मानैत छथि । एकटा कथाक अनुसार एकटा ब्राह्मण चारि भाइ छलाह आ रोज स्नानक हेतु एकटा पोखरि पर जाएत छलाह । एक दिन पोखरिक घाट पर एकटा गाय मरल छलैक आ ’बाभनक छोट राड़क मोट’क अनुसार सभ सँ छोट भाइ के ओहि गाय के हटबय पड़लैक । मुदा जखन ओ घूरल तँ लोक ओकरा जाति सँ बारि देलकैक आ ओकरे वंशज डोम कहौलक । मिथिलाक डोम एखनोधरि मृतकक गहना-गुड़िया आ वस्त्र पर अपन अधिकार बुझैत छथि ।
चमार :-चमार जाति मिथिलाक सामाजिक जीवन मे प्रमुख पौनी-पसारीक रूप मे जानल जाइत अछि। इ जाति सेहो अपन उत्पत्ति ब्राह्मणे सँ मानैत छथि । एकटा कथाक अनुसार एकटा ब्राह्मण चारि भाइ छलाह । एक दिन हुनका ओहिठाम एकटा माल मरि गेलनि आ सभ सँ छोट भाइ के ओहि माल के हटेबाक आदेश भेलैक । ओ अपन जनेउ बेलक गाछ पर रखलनि आ माल के हटा देलनि । मुदा जखन ओ घूरलाह तँ लोक हुनका जाति सँ बारि देल्कैन आ हुनके वंशज चमार कहौलक । एखनहुँ मिथिला मे मृतक माल-जाल के फेकबाक व्यवस्था चमारे करै छथि । एकरा अतिरिक्त इ जाति चाम सँ जूड़ल अनेको काज सभ करैत छथि । गाम-घर मे चमैनि प्रसूताक परिचारिकाक रूपमे काज कऽ रहलीह अछि । एतबे नहि द्दुर्गा पूजा मे दसो दिन, दिया-बाती आदि अवसर पर साँझ पड़बा सँ पहिने गामक अंगने-अंगने ढ़ोल बजेबाक काज सेहो इ करैत छथि । जँ गामक कोनो महत्वपूर्ण मुद्दा पर पूरा गाम के सूचित करक रहैत अछि तँ ढ़ोलहो दऽ कऽ इ काज चमारे करैत छथि । कोनहु शुभ काज मे हिनक द्वारा ढ़ोल-पिपही बजेनाई नीक मानल जाइत अछि आ कतेको ठाम एकर अनिवार्यता सेहो अछि ।
धोबी :- मिथिलाक सामाजिक जीवन मे धोबीक स्थान महत्वपूर्ण अछि । एकर पारम्परिक व्यवसाय वस्त्र के धो कऽ साफ करक अछि । सौर गृह, मृतक परिवार आ सभ जातिक कपड़ा धोबाक कारणें यद्यपि एकर जाति सामाजिक स्तर मे न्यून बूझल जाएत अछि, मुदा पौनी-पसारीक रूप मे एकर स्थान प्रमुख अछि आ सवर्णों कन्याक वियाह बिनु धोबिनक सोहाग देलें पूर्ण नहि बूझल जाइछ । अपन तीव्र स्मरण शक्तिक कारणें सेहो इ जाति जानल जाइत अछि । अनेको व्यक्तिक कपड़ा के स्मरण सँ अलग-अलग राखब बहुत मुश्किल काज अछि । तथापि इ जाति अविश्वसनीय बूझल जाइत अछि । कहल जाइत अछि जे इ जाति कपड़ा नहि कीनैत अछि आ लोकेक कपड़ा सँ काज चला लैत अछि । इ बहुत परिश्रमी जाति अछि ।
हलुआइ :- मधुरक निर्माण सँ सम्बद्ध व्यवसाय मे मिथिलाक जाहि जातिक एकाधिकार छैक ओकरा हलुआइ कहल जाइत छैक । एकर व्युत्पत्ति के हलुआ नामक मिष्ठान्न सँ सम्बद्ध कहल जाइत अछि। एहि मिष्ठान्नक निर्माण सँ जीविका प्राप्त करयवला अथवा मिष्ठान्न मात्रक व्यवसाय सँ आजीविका ग्रहण करयवला जाति हलुआइ कहौलक । मिथिला मे हलुआइक तीन गोट उपजाति भेटैत अछि- कनौजिया, मधेशिया ओ कानू । कनौजिया उपजातिक सम्बंध कन्नौज सँ प्रब्रजित हलुआइ समुदाय सँ बुझना जाइछ । मधेशिया लोकनि अपना कें खण्डवला राजकूलक संग मध्यदेश सँ आब्रजित बुझैत छथि । एहि दुनू उपजातिक लोक मिष्ठान्न मात्रक व्यवसाय करैत छथि । कानू उपजाति कंसार मे भूजा भूजि कय जीविका प्राप्त करैत अछि । मिथिलाक समस्त हाट-बजार-चौक पर हलुआइक दोकान अवस्से अछि । उपनयनक भोज हो वा मधुश्रावणीक साँठ हलुआइक जरुरति पड़िते अछि । गाम-गाम मे कनूनिक कंसार लेने संध्याक बेर मे विभिन्न प्रकारक अन्न लेने देखाइ पड़त । अगहनीक समय मे लाइ-मुरही लेने बौआइत कानू खेतक आरि-धूर छनैत देखि पड़त । मुदा स्वागतक हेतु चाह-प्रदान एहि युग मे हलुआइक मिष्ठान्न उद्योग प्रभावित भेल अछि ।
मलाह :-जल सँ प्राप्त समस्त उत्पादन मे मिथिलाक एकटा जाति विशेष लागल अछि जे मलाह जातिक नामे जानल जाइत अछि । माछ ओ मखानक उत्पादनक अतिरिक्त ई जाति जल सँ प्राप्त सितुआ सँ चून बनैबाक व्यवसाय सेहो करैत अछि आ नदीक घाट पर लोकक आवाजाहीक हेतु जल-परिवहन पर सेहो एही जातिक एकाधिकार छैक । मिथिलाक सामाजिक जीवन मे मलाहक स्थान द्विजेतर जाति मे उच्च मानल जाएछ । इ जाति मिथिलाक प्रमुख खाद्य वस्तु माछक व्यवसाय सँ जूड़ल अछि । मिथिला मे माछक अपन महत्व अछि । श्राद्ध कर्म मे सेहो एकर प्रधानता अछि । द्वादसाक प्रात भेने माछ-मौसक विधान भेटैत अछि । एहिना मखान एकटा पवित्र वस्तु मानल गेल अछि आ देव कर्म सँ लऽ कऽ पितृ कर्म मे एकर महत्ता अछि । मिथिला मे कोजगराक मखान नामी अछि । मुदा आब एहि जातिक व्यवसाय विकेन्द्रित भऽ रहल अछि । लाभक कारणें दोसरो लोक एहि मे प्रवेश करय लागल अछि आ तें एहि जातिक आर्थिक दशा विघटित भेल अछि । ओना नदी कातक गाम मे एखनो घटवार के वार्षिक सेवा आने पौनी-पसरी जकाँ देबाक विधान अछि ।
कुड़ेरी :-कुरेड़ी जाति मिथिलाक घुम्मकर प्रवृतिवला जनजाति थिक । एकर मुख्य व्यवसाय मधु छोड़ायब अछि । मधु छोड़ेबाक धंधा ऋतु सापेक्ष हेबाक कारणें इ सभ गाम-गाम मे हींग, जाफर, काफर, विषमा, शंखलाभी, टटैनी, अधकपारी आदि विभिन्न प्रकारक औषधि आ जड़ी-बूटी बेचैत अछि । एकर अनेक उपजाति सेहो अछि जाहि मे नट, तरसुलिया, बखो, सपेरा आदि प्रमुख अछि ।
अमात :- अमात द्विजेत्तर जाति मे प्राय: सभ सँ श्रेष्ट छथि । इ अपन उत्पत्ति देवताक अमात्य अर्थात सेनापति सँ मानैत छथि । इ अनेक तरहक काज मे लागल रहैत छथि आ आर्थिक आ बौद्धिक दृष्टि सँ अगुआयल जाति छथि ।
मुसलमान :- मुसलमान मिथिलाक प्रमुख जाति मे सँ छथि । हिनको मे अनेक उपजाति सभ अछि । यद्यपि काजक आधार पर सभटा के अलग-अलग करब आब अठिन अछि तथापि किछु गोटे दर्जीक काज, किछु गोटे जोलहाक काज, किछु गोटे कुजराक काज(सब्जीक व्यवसाय) करैत छथि । खेती-पथारी मे सेहो कतेको गोटा लागल छथि । हिनक अनेक पावनि-तिहार मे हिन्दू भाग लैत छथि । मुहर्रम मे जे दाहा बनैत अछि से पूरा गाम मे घुमाओल जाइत अछि आ सभ कियो श्रद्धा सँ दाहाक समक्ष नतमस्तक होएत छथि ।
एकरा अतिरिक्त मिथिला मे पासी (तार-खजूर सँ मादक द्रव निकालि कऽ बेचवला), किओट (गृहस्थोपयोगी पानि भरबाक काज), मुसहर (जन-मजदूरीक काज), कुर्मी, तत्मा, कोइर आदिक उल्लेख भेटैत अछि ।
0 पाठकक टिप्पणी भेटल - अपने दिय |:
एक टिप्पणी भेजें