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सोमवार, 23 अगस्त 2010

सात फेरा के सात वचन

मिथिला युवा बंधू के लेल खाश !!
हर साल अपन मिथिला म हजारो जोरा विवाह के अटूट बन्धन स बनधैत छैथ ! अई शुभ अवसर पर हम सब मिथिला वासी अपन होई बला (जीवन - शाथी) क एक स बैढ़ क एक अनोखा उपहार दैत छलो ! प्रेम आर विश्वास के इ बंधन पवित्र रिश्ता स शुरू होई या ! हमरा सब क़ सोचबाक चाही की अगर हम सब अपन नव विवाहिता क उपहार स्वरुप दी अनोखा सात फेरा के सात वचन जे हुनका बनाबें किछ खाश त कते निक हेत ? सात फेरा हम सब लगबे छी ! अहू आइ नै त कैल लगेबे करब त आओ मन म ठेंन लिया की जहिया आहा सात फेरा लगेब तहिया अपन जीवन शाथी क देवै उपहार स्वरुप सात फेरा के सात वचन ! आहक उपहार स्वरुप सात फेरा के सात वचन अई तरह के भो सके या ?
वचन - १, जीवन पथ पर चलैत - चलैत कखनो अगर कुनू तरहक तकरार पत्नी स हेत त पत्नी क मनाबे के लेल आहा अपन पुरुष अहं दूर रखैत हुनका मनाबे के पूरा कोशिश और अपन गलती माने के बरप्पन देखाबी ! अई स आहा दुनु के बिचक प्रेम दुगुनित हेत !
वचन - २, विवाह के दिन (Wedding Annivarsary) निक जका याद राखी अई स हुनकर (पत्नी) मन जीते म आसानी हेत ! फेर आहा साल भैर जे चाही के सके छी, अनायास आहा क आजादी मिल जेत !
वचन - ३, हम (पति) कखनो इ नै भूली की हम आर हमर नौकरिये सब किछ छी ! योजी महाराज अहाक खाली समय और छुट्टी पर हुनके (पत्नी) के अधिकार छैन !
वचन - ४, एक बात के ख़याल राखल करू की पत्नी के और हुनकर परिवारक सम्मान कारियोंन हुनका किनको सामने अपमानित नै कारियोंन !
वचन - ५, पत्नी आहाके परमेश्वर मनेथ इ उम्मीद नै करेत स्वयं निक इंसान हुनकर दृष्टि म बने के प्रयास करी, ओ अपने के हर ख़ुशी क़ अपन ख़ुशी मनेथ तयो इ कोशिश राखी की हुनका कुन बात स ख़ुशी मिलैत छैन जाने के प्रयाश करी !
वचन - ६, पत्नी अगर अर्धाग्नी कहलाबेत छैथ त हुनका सच्चा दोस्त मानेत हमराज़ बनाबे के प्रयाश कारियों, हुनका स कुनू बात, दुःख, परेशानी नै छुपाबियोंन ! इ कसम अग्नि क साक्षी मानेत खेबाक चाही !
वचन - ७, प्रेम आर विश्वास के इ बंधन एक पवित्र रिश्ता स शुरुवात होइत आइछ, जाकरा सवारे के दायित्व दुनु के होई या अतः कुनू तरहक अहं नै राखेत हुनका सदैव दोस्त मनैत अधिकार आर सम्मान बराबर देबाक चाही !
हम जाने छी इ बात हमर किछ युवा बंधू क पसंद नै हेत तयो अपने स अनुरोध जे इ बात क अपन जिन्दगी म उतैर क देखब ? बाद म देखियो आहा के जिन्दगी कतेक अनमोल बने या !!

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II श्री सरस्वत्यै नमः II

II श्री सरस्वत्यै नमः II
ॐ शुक्लांब्रह्मविचारसार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं I वीणापुस्तक धारिणींमभयदां जाड्यान्ध्कारापहाम् II हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मसनेसंस्थितां I वन्देतांपरमेश्वरींभगवतीं बुद्धिप्रदाम शारदाम् II

माछक महत्व


हरि हरि ! जनम कि‌ऎक लेल ?
रोहु माछक मूड़ा जखन पैठ नहि भेल ?
मोदिनीक पल‌इ तरल जीभ पर ने देल !
घृत महँक भुजल कब‌इ कठमे ने गेल !
लाल-लाल झिंगा जखन दाँ तर ने देल !
माडुरक झोर सँ चरणामृत ने लेल !
माछक अंडा लय जौं नौवौद्य नहि देल !
माछे जखन छाड़ि देब, खा‌एब की बकलेल!
सागेपात चिबैबक छल त जन्म कि‌ऎ लेल !
हरि हरि.



पग पग पोखैर पान मखान , सरस बोल मुस्की मुस्कान, बिद्या बैभव शांति प्रतिक, ललित नगर दरभंगा थिक l

कर भला तो हो भला अंत भले का भला

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