मिथिला मे बौद्ध तत्व
डॉ० प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’
प्राचीन बौद्ध साहित्यक अनुसार बुद्ध जीवन काल (ई० पू० छठम शताब्दी) मे विदेह एकटा समृद्ध राष्ट्र एवं मिथिला एकटा विकसित राजधानी नगर छल । जातक साहित्यक अनुसार विदेह तीस सय योजन एवं मिथिला सात योजन (वर्ग) मे विस्तृत छल । ओ देशक बीसटा प्रमुख नगरमे परिगणित छल । सभटा नगर व्यापारिक कारणे एक दोसरा संग उन्नत मार्ग सँ सूत्रबद्ध छल । मुदा आइ ओ राष्ट्र (राज्यक अर्थमे) हिमालयक पाद प्रदेश मे गण्डकी, गंगा ओ कोशीक बीच सिमटि कए एकटा सांस्कृतिक जनपद मिथिलांचलक रूपें अवशिष्ट अछि । शाक्य वंशक राजकुमार सिद्धार्थ एहि भूभाग बाटे अरेराज (अलारकालम) होइत राजगृह सेनानीग्राम (बोधगया क्षेत्र) ज्ञानक खोज मे अभिनिषिक्रमित भेल छलाह । ज्ञान प्राप्तिक बाद ओ कैक बेर गंगा पार कए वैशाली एवं चारिका क्रमे मिथिलाक भूमि स्पर्श कयने छलाह ।जातक कथा यद्यपि गौतम बुद्धक पूर्वजन्मक कथा थिक मुदा हुनक जीवनकाल भारतीय जीवनक एकटा सर्वांगीण दृश्य उपस्थित करैत अछि । राजनीति, धर्म, अर्थव्यवस्था, व्यापार, कला, संस्कृति आदिक संदर्भे बहुत किछु ओहिमे उपलभ्य अछि । जातक कथाक माध्यमे बुद्ध सर्वप्रथम अपना केँ ओहि भूभागक कोनो उन्नत राजवंश सँ जोड़ि हुनक चारित्रिक वैशिष्ट्य संग धर्मोपदेश करैत छलाह । मखादेव जातकक अनुसारें बुद्ध पूर्वजन्म मे मिथिलाक मखादेव राजा छलाह । मखादेव राजाक आम्रवन नगरक सीमा सँ बाहर छल । ओहि मखादेव काननक पहिचान केसरिया मे संभावित कयल गेल अछि, जाहिठाम विश्वक सब सँ पैघ स्तूप (१०४ फीट) उत्खनित भेल अछि । तहिना विलीनक जातक मे हुनका निमि राजाक रूप मे क्षत्रिय राजकुल मे जन्म लेबाक उल्लेख प्राप्त होइछ । मिथिला मे बोधिसत्व एक-दू बेरक जन्म सँ संतुष्ट नहि भए अनेक जन्म ग्रहण करैत छथि । निमि जातक मे मिथिला कें केन्द्र मानि सद्धर्मक सम्पूर्णता मे व्याख्या कयल गेल अछि । मिथिला मे कखनो ओ इन्द्रक रूप मे (महापण्णाद जातक), कखनो राजपुत्रक रूप मे (महाजनक जातक), तँ कखनो ओ मिथिलाक श्रीवर्धन सेठक भार्याक कोखि सँ जन्म लैत (महाउम्मग जातक) छथि ।
बौद्धजातक कथाक सर्वेक्षणात्मक अध्ययन सँ निम्नलिखित ऐतिहासिक तथ्य सभक प्राप्ति होइछ-मिथिला एकटा सुख सम्पन्न, विशाल ओ विकसित नगर राज्य छल । नगरक चारू द्वार पर यवमज्झक (वाणिज्य-व्यवसाय केन्द्र) छल । आखेट प्रधान वन्य संस्कृति सँ कृषि संस्कृति दिस संक्रमणक स्थिति बनि गेल छल । बौद्ध साहित्य मे आपणनिगमक उल्लेख भेटैत अछि । ‘महावग्ग’ ओ ‘मज्झिमनिकायक’ अंतःसाक्ष्यक अनुसार बुद्ध कैक बेर अंगुत्तरापक भ्रमण कयने छलाह । ओ अंग देशक भद्दिया सँ आपणनिगम आयल छलाह । आपण ब्राह्मण लोकनिक सघन क्षेत्र छल । पोत्रलिय, कोणिय ओ सेल एहि भूभागक सम्मान्य नागरिक ओ उद्भट विद्वान छलाह । बुद्धक धर्मोपदेश सँ प्रभावित भऽ ओ सभ शिष्य सहित सद्धर्म मे दीक्षित भए गेलाह । आपण निगमक पहिचान वनगाँव-महिषी (सहरसा) सँ कएल गेल अछि । वनगाँव-महिषी सँ प्राप्त पुरातत्वावशेष सभ मे ताम्रपत्र (आठम शताब्दी), बुद्ध ओ ताराक प्रस्तर मूर्त्ति, प्राचीन सिक्का, चीनाचार (हस्तलेख), वशिष्टाधारिता तारा आदि सँ सम्पूर्ण क्षेत्र बौद्ध क्षेत्रक रूपें प्रमाणित होइछ । हाल मे एहि भूभाग सँ (महेशपुर, जगतपुर, बरुआरी) प्राप्त बुद्ध आ ताराक पालकालीन पाथरक मूर्त्ति सभ प्राप्त भेल छल जे सम्प्रति बाबा कारू संग्रहालय, सहरसा मे संग्रहित अछि । सुपौल जनपद सँ एकटा ध्वस्त बौद्ध स्तूप सँ भस्मी अवशेषक सूचना प्रो० अशोक कुमार सिंह देने छलाह । भस्मीक संग माणिक्य ओ मुद्रा सेहो छलैक । सहरसा जिलाक चण्डीस्थान (वरांटपुर) मे तथाकथित बुधाय स्वामीक प्रस्तर मूर्त्ति बुद्धक थिक । ओहिठाम सँ प्राप्त शिलालेख मे बुद्ध वंशक राजाक नामोल्लेख भेल अछि । वनगाँव ताम्रपत्र मे विग्रहपाल तृतीयक अभ्यर्थना बुद्धक रूप मे कयल गेल अछि । ओहि क्षेत्रक जातिवनक पहचान देवनवनक रूप मे कयल गेल अछि ।
किछु इतिहासकार बेगुसराय जनपद कें सेहो अंगुत्तर (अंगुत्तराय) क अंतर्गत मानैत छथि यद्यपि ओ अंग जनपद सँ उत्तर मे नहि अछि । मुदा बेगुसराय जनपद मे बौद्ध मूर्त्ति, एन० वी० पी०, आहत सिक्का ओ विहार विषयक अभिलेखक प्राप्ति प्रचुर मात्रा मे भेल अछि । नौलागढ़क खण्डित अभिलेख मे बौद्ध विहारक संकेत भेटैत अछि । पार्श्ववर्ती जयमंगलगढ़ मे कैकटा स्तूप बोधक टीला सभ उपलभ्य अछि, जाहिठाम चीन ओ श्याम देशक बौद्ध भिक्षु लोकनि १९३६ ई० धरि आबैत जाइत छलाह । जयमंगलगढ़ तांत्रिक पीठ अछि जाहिठाम मंदिरक आलिंद मे एकटा छोट बौद्ध मूर्त्ति बाँचल अछि । एकर अतिरिक्त बेगुसरायक संघौलक पुरातात्विक उत्खनन सँ अभिलेखयुक्त बुद्धमूर्त्ति एवं अन्यान्य अवशेष सभ प्राप्त भेल छल जाहि मे मनौती स्तूपक संख्या अधिक अछि । संघौलक उत्खनन प्रो० फुलेश्वर प्र० सिंह करौने छलाह । एहि जनपदक बौद्ध मूर्त्ति सभ स्थानीय जी० डी० कॉलेज ओ राजकीय संग्रहालय मे संरक्षित अछि, जाहि मे बलियाक बुद्धमूर्त्ति सेहो संकलित अछि । एहि जनपदक वीरपुर-बरीयारपुर, संघौल, नौलगढ़, वीहट, साम्हो, जयमंगलगढ़, बलिया आदि सँ बौद्ध मूत्तिक प्राप्ति सँ ई संकेत प्राप्त होइछ जे एहिठाम मध्यकाल मे बौद्धधर्म लोकप्रिय छल । एहि क्रम मे प्रो० राधाकृष्ण चौधरीक सर्वेक्षणात्मक प्रतिवेदन द्रष्टव्य अछि ।
बुद्धक धर्मयात्रा सँ सम्बद्ध क्षेत्रान्तर्गत वैशाली महत्वपूर्ण केन्द्र छल । बुद्ध कैकबेर वैशाली आबि एहि भूभागक कूटागार शाला मे ठहरैत छलाह आ भिक्षुलोकनिकें प्रवजित करैत छलाह । वैशालीक अशोक स्तंभ, बुद्धक भस्मी स्तूप, मर्कटहृद, अभिषेक प्रस्करणी स्तूप सभक ध्वंसावशेष आदि बौद्ध संस्कृतिक साक्ष्य अछि । बौद्धधर्मक द्वितीय संगीति, भिक्षुणी लोकनि कें संघप्रवेशक अनुमति आदिक व्यापक अनुशीलन कयल गेल अछि । वैशाली वृज्जि संघक राजधानी छल । विदेह मे राजतंत्रक पतनोपरांत ओ वृज्जिसंघ मे एकटा सशक्त घटकक रूप मे सम्मिलित भए गेल । एहिठामक संग्रहालय मे बौद्ध अवशेष संरक्षित अछि ।
वैशालीक बाद बौद्धसंदर्भित मिथिला अथवा तिरहुतक दक्षिणी सीमांत क्षेत्र चेचर ग्राम संकुल मे बौद्ध मंदिरक अभिलिखित पालकालीन बुद्धमूर्त्ति, गुप्तकालीन प्रस्तर मूर्त्ति, पालयुगीन धातुक मूर्त्ति, ब्राह्मी अभिलेख आदि बौद्ध संदर्भित जीवंत साक्ष्य अछि । वैशाली जिलाक पोझा (गोरौल) ओ आसकरनपुर (भगवानपुर) क बुद्ध मूर्त्तिक अलावा इमादपुर (भगवानपुर) सँ प्राप्त अभिलेखयुक्त धातुक बौद्धमूर्त्ति सभ ऐतिहासिक महत्त्वक अछि । महनारक गंगा तटीय ध्वंसावशेष सँ गुप्तकालीन मनौतीस्तूप सभक प्राप्ति उल्लेखनीय अछि ।
दरभंगा ओ मधुबनी मिथिलाक हृदयस्थली अछि । बहुत दिन एहि क्षेत्रक निवासी ब्रह्मविद्याक भूमिक नाम पर एहि भू भाग केँ बौद्धधर्म सँ एकदम अलग रहबाक अवधारणा बनौने छलाह । मुदा किछु उत्साही इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता ओ शौकिया इतिहास प्रेमी लोकनि अपन शोध-सर्वेक्षणक माध्यमे मिथिला मे बौद्धधर्मक अवस्थिति केँ प्रमाणित करबामे समर्थ बनि गेलाह । एहि अनुक्रम मे प्रो० राधाकृष्ण चौधरी, विजयकांत मिश्र, डा० जयदेव मिश्र, प्रो० प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’, पण्डित सहदेव झा, सत्येन्द्र कुमार झा, सत्यनारायण झा ‘सत्यार्थी’ आदिक शोध-सर्वेक्षण उल्लेखनीय अछि । एकर अलावा नित्य नव-नव तथ्य सभ प्रकाश मे आबि रहल अछि । सरकारी-गैरसरकारी सर्वेक्षण सँ लोग उत्साहित भए रहलाह अछि । एहि लेल सम्पूर्ण मिथिलांचलक पुरातात्विक सर्वेक्षणक संगे आवश्यक उत्खनन सेहो जरूरी छैक ।
मिथिलांचल मे सब सँ पैघ शिरहीन बुद्ध मूर्त्ति जरहटिया सँ प्राप्त अछि, जे सम्प्रति महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगाक मुख्य द्वार केँ सुशोभित कए रहल अछि । हमरा जनैत एतेक विशाल पाथरक मूर्त्ति कोना एतय आनल गेलैक आर स्थापनाक विशेष प्रयोजन की छलैक ? संभवतः एहि क्षेत्र मे कोनो मिनी बौद्ध संगीति भेल छलैक । पादपीठ मे उत्कीर्ण अभिलेख घसि कए मेटा देल गेल छैक एवं सिर खण्डित बुद्ध आसनस्थ छथि । एहिना एकटा सिरविहीन बुद्धमूर्त्ति महिया (मधुबनी) मे सेहो प्राप्त छैक । परमेश्वर झा (मिथिलातत्व विमर्श) मनपौरक जाहि बुद्धमूर्त्तिक उल्लेख कयने छथि, ओ मूर्त्ति लेखक क अनुसार धर्मदत्त कोइरी द्वारा प्रदत्त छल । जाहि सँ ई संकेत भेटैत अछि जे बुद्ध ओ बौद्धधर्म उपेक्षित लोग मे प्रिय छल । वाचस्पति संग्रहालय, अंधराठाढ़ी (मधुबनी) मे बुद्ध मूर्त्ति, जरैल (मधुबनी), पस्टन (मधुबनी), मकरनपुर, विदेश्वर स्थान, अकौर, झंझारपुर (स्व० हरिकान्त झा), मंगरौनी, कपिलेश्वर-चौगामा, कोर्थु (दरभंगा) आदि सँ बौद्ध मूर्त्ति सभ प्राप्त छैक । पस्टन (मधुबनी) क तीनटा बौद्धस्तूप, ओहिठामसँ प्राप्त बौद्धमृणमूर्त्ति, धातुमूर्त्ति, मंगरौनीक त्रैलोक्य विजय ओ कपिलेश्वरक लोकेश्अवरक मूर्त्ति विशिष्ट अछि । कोर्थुक एकटा बौद्ध मूर्त्ति बुद्धक (स्थानुक) के पार्श्व मे अवलोकितेश्वर एवं मैत्रेयक मूर्त्ति उत्कीर्ण अछि । एहिठाम एकटा खण्डित देवीमूर्त्तिक प्रभावली मे तिब्बती उछेन लिपि मे अभिलेख उत्कीर्णल अछि । हाले मे श्री सत्येन्द्र कुमार झा द्वारा मरनकान (क्योटी, दरभंगा) मे पूर्वमध्यकालीन बौद्ध स्तूपक खोज नवीनतम सूचना अछि । तहिना परानपुर (पूर्णिया) सँ धातुक बुद्धमूर्त्ति सभक प्राप्ति सँ ई संकेत प्राप्त होइछ जे मिथिला मे बौद्ध धर्म दरभंगा, मधुबनी सँ सहरसा-पूर्णिया धरि पसरल छल । सत्यार्थी जीक नवीन खोजक अनुसारे वारी-सिंगिया (समस्तीपुर) सँ बौद्ध देवी ताराक गुप्तकालीन मूर्त्ति ऐतिहासिक महत्वक थिक, जकर प्रभावली मे ताराक वाराहरूप प्रत्यंकित अछि । मंगरौनीक त्रैलोक्य विजयक मूर्त्ति वस्तुतः ब्राह्मण ओ बौद्धधर्मक बीच चलैत संघर्षक प्रतीकात्मक अभिव्यंजना थिक, जकर शास्त्रीय स्वरूप तत्युगीन दार्शनिक ग्रंथ सभ मे पाओल जाइछ । उदयनाचार्य (करियन, समस्तीपुर) ओ वाचस्पति मिश्र (अंधराठाढ़ी, मधुबनी) बौद्ध धर्म ओ दर्शन कें खण्डित कयने छलाह । एहि तरहें बहुत दिन धरि बौद्धिक संघर्षक समापन बुद्ध कें दशावतार मे परिगणित कयलाक बाद भेल । आइयो मिथिलाक जीवनधारा मे बहुत रास बौद्ध अवधारणा आत्मसात भए गेल अछि ।
संदर्भ:-
१. द फुटप्रिंटस ऑफ बुद्धा, डा० जगदीश पाण्डेय, पटना
२. जातक कालीन भारतीय संस्कृति-मोहनलाल महतो वियोगी, पटना
३. बुद्ध, विदेह और मिथिला-सं० डा० प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’, महनार (वैशाली)
४. बौद्ध धर्म और बिहार-हवलदार त्रिपाठी सहृदय, पटना
५. बिहार का गौरव-राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह, पटना
६. जी०डी० कालेज वुलेटिन, १-४, बेगुसराय
७. होमेज टू वैशाली , सं० डा० योगेन्द्र मिश्र, वैशाली
८. वाजिदपुर का आनंद स्तूप, डा० प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’ , दै० हिन्दुस्तान, पटना
९. कल्चरल हेरिटेज आफ मिथिला-विजयकांत मिश्र, इलाहाबाद, १९७९ ई०
१०. बुद्धिस्ट इकनोग्राफी इन विहार, पटना, १९९२ ई०
११. विहार के बौद्ध संदर्भ, महनार (वैशाली) १९९१ ई०
१२. दर्शनीय मिथिला-(१ से १० खण्ड) लहेरिया सराय, दरभंगा
कुमार संग्रहालाय, पो० हसनपुर (समस्तीपुर)
पिन ८४८२०५
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